बक्सर की पहचान क्या सिर्फ भगवान राम से है?

श्रीराम कर्म भूमि यानी बक्सर। आजकल एक यज्ञ भी हो रहा है वहां, अयोध्या से निकली श्रीराम चरण पादुका यात्रा भी पहुंचेगी, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के माध्यम से बक्सर और अयोध्या सीधे जुड़ जाएंगे। लेकिन बक्सर की महत्ता क्या सिर्फ श्रीराम से है?

ऐसा कहा जाता है कि सिद्धाश्रम जैसा तीर्थ न कभी हुआ है न होगा। अब सवाल यह है कि सिद्धाश्रम क्या है? सतयुग में जो सिद्धाश्रम था, त्रेता में वह वामनाश्रम, द्वापर में वेदगर्भापुरी और कलियुग में व्याघ्रसर हुआ। बक्सर इसी व्याघ्रसर का अपभ्रंश है।

काशी, जिसे दुनिया का प्राचीनतम नगर माना जाता है, उसके बहुत पहले से यह स्थान आबाद था। यह मनोरम स्थान देव-दानव सभी को लुभाता था। शानदार वातावरण, मीठे जल की उपलब्धता और रसीले फलों के वृक्षों से भरा इलाका था यह। बहुत बाद में ऋषियों ने इसे तपस्या के लिए चुना। नारद, उद्दालक, भार्गव, गौतम, च्वयन जैसे ऋषि यहां तप करते थे। यहां नारद मुनि पहले से थे, श्रीराम बाद में महर्षि विश्वामित्र के साथ आए। बक्सर की गौरवमयी यात्रा में श्रीराम एक पड़ाव हैं। शहर में कई जगहों पर श्रीराम के धनुष का आकार के स्वागत द्वार बने हुए हैं, लेकिन स्थानीय निवासियों का मिजाज देखें तो वह भगवान शंकर जैसा है। परस्पर विरोधाभास के साथ रहना और उमंग से जीना। यहां आया हुआ कोई बाहरी नहीं है। न देवर्षि नारद न मर्यादा पुरुषोत्तम राम। ऋषि वेदशिरा को दुर्वासा के शाप से मुक्ति दिलाकर उंस उपलब्धि पर इतराना तो दूर, उसकी चर्चा से भी दूर रहनेवाला क्षेत्र है बक्सर।

बरसों पहले रामरेखा घाट पर जाने वाला रास्ता बहुत गंदा रहता था। बक्सर ने एक कहावत चर्चित है : ऊपर से ठाट बाट, नीचे रमरेखा घाट। यानी कुछ हिस्सा तो चमक रहा है और बाकी वैसे ही है जैसा रामरेखा घाट वाला रास्ता।

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