सिकुड़ रहा है अखिलेश यादव के ‘परिवार’ का दायरा?
मुलायम सिंह यादव के निधन की वजह से मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। अखिलेश यादव वहां पूरे मनोयोग से कैंपेन में लगे हुए हैं। लगातार रैलियां कर रहे हैं। इस चुनाव के लिए उन्होंने आने चाचा शिवपाल सिंह यादव के सार्वजनिक रूप से पैर छुए। कहा जाता है कि इस इलाके में शिवपाल यादव का प्रभाव है। इसी समय रामपुर और खतौली विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव हो रहे हैं, जहां पार्टी प्रमुख होने के नाते अखिलेश यादव को जाना चाहिए था, लेकिन अभी तक नहीं पहुंचे हैं। उनका सारा फोकस मैनपुरी सीट पर है। यह तय करना आसान भी है और नहीं भी कि उनका उद्देश्य अपनी पत्नी को चुनाव जिताना है या मुलायम सिंह यादव की विरासत बचाना। इससे पहले आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में इसी परिवार के धर्मेंद्र यादव सपा से लड़ रहे थे। अखिलेश एक दिन भी प्रचार करने नहीं गए। नतीजे आए तो अखिलेश यादव की खाली की गई सीट पर समाजवादी पार्टी हार चुकी थी। उसी दौरान रामपुर लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव हुआ था। अखिलेश यादव वहां भी नहीं गए। वह सीट भी समजवादी पार्टी के हाथ से निकल गई है।
अब अखिलेश यादव के राजनीतिक परिवार को देखते हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के साथ समझौता किया था। राहुल गांधी और अखिलेश यादव का फोटो और यूपी को ये साथ पसंद है, का स्लोगन चर्चित हुआ। नतीजे प्रतिकूल रहे और साइकल और हाथ का साथ छूट गया। 2019 के आम चुनाव में बुआ-भतीजे की जोड़ी बनी। अखिलेश और मायावती एक साथ आए। मायावती अखिलेश मिलके दे दिहले संदेश, लहर छाई यूपी में, गाना बजा। मनमाफिक रिजल्ट नहीं आने पर गाना बेसुरा हो गया था। इस साल हुए विधानसभा चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से सपा का गठबंधन हुआ। अखिलेश मुख्यमंत्री नहीं बन पाए और सुभासपा प्रमुख ओम प्रकाश राजभर का टारगेट योगी आदित्यनाथ के बजाय अखिलेश यादव हो गए। अखिलेश उन्हें संभाल नहीं पाए। गठबंधन के महान दल से खटपट हुई तो समाजवादी पार्टी ने केशव देव मौर्य को गिफ्ट में दी गई लग्जरी कार वापस मंगवा ली थी।
सपा नेता आज़म खां के साथ साये की तरह रहने वाले फ़साहत अली खां शानू ने पिछले हफ्ते उनका साथ छोड़ा, भाजपा जॉइन की और कहा कि अब्दुल अब दरी नहीं बिछाएगा, कमल खिलाएगा। अब्दुल सिर्फ दरी नहीं बिछाएगा, यह बात रामपुर में कुछ महीने पहले उठ चुकी है। उंस समय अब्दुल क्या करेगा, यह बताया नहीं गया था। अब अब्दुल क्या करेगा, इसकी घोषणा भी हो गई है। अखिलेश अपने इस परिवार को भी एकजुट नहीं रख पा रहे, जिसके लिए कभी उनके पिताजी को मौलाना मुलायम कहा जाता था। कानपुर के मेहरबान सिंह का पुरवा वाले दिवंगत हरमोहन सिंह यादव जीवन भर मुलायम सिंह के साथ रहे। अब उनके परिवार पर भाजपा का प्रभाव है। इस साल खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरमोहन यादव की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये सम्बोधित किया था। उनके बेटे और राज्य विधान परिषद के पूर्व सभापति सुखराम सिंह यादव ने अखिलेश पर कई गम्भीर आरोप लगाए थे। अब मेहरबान सिंह का पुरवा वाला यह परिवार अखिलेश पर मेहरबान नहीं दिखता।
मुलायम सिंह यादव पर परिवारवाद का आरोप लगता था। इस बिना पर कि सांसद-विधायक से लेकर पंचायत स्तर पर भी इसी परिवार के लोग काबिज़ थे। लेकिन क्या सपा में मुलायम युग खत्म होने के साथ ही परिवार का दायरा भी सिकुड़ रहा है?
(फोटो गूगल से)
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