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Showing posts from September, 2016

मुख़्तार से मुख्तारी तक

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अब तो लगता है कि मुख्तार से शुरू हुआ मुद्दा मुख्तारी तक पहुंच गया है। जिसे देखो वही अपने को प्रधान साबित करने पर तुला है। भतीजे से छीनकर चाचा को राज्य का इंचार्ज बना दिया गया है और चाचा बाकायदा उसका यूज भी कर रहे हैं। चचेरे ही सही, भांजे तक को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं। दूसरी तरफ नेताजी हैं जो अपनी चौधराहट दिखाने के लिए सबको धता बताकर अमर बेल को महासचिव की झाड़ पर चढ़ा चुके हैं। सब चिल्ला रहे हैं कि यह बाहरी अमर बेल परिवार रूपी वट वृक्ष पर चढ़कर अंदर की शांति चूस रही है लेकिन यही तो चौधराहट शो करने का जरिया है। थोड़ा इधर-उधर कहते हैं एक बार भगवान शंकर को दुनिया का प्रधान बनने का चस्का लगा था। उन्होंने धरती के सारे मनुष्यों को बुलाया और अपनी इच्छा जताई। मानवों ने कहा कि सारी कायनात आपकी है। जैसा आप कहें, वैसा होगा। भोले भंडारी ने कहा कि इस साल धरती पर तुम लोग जो कुछ भी बोओगे, उसका नीचे का हिस्सा मेरा और ऊपर वाला हिस्सा तुमलोगों का। धरतीवासियों ने कहा कि प्रभु जैसी आपकी इच्छा। उस साल धरती पर धान और गेहूं बोए गए और बेचारे शंकर जी के हिस्से कुछ नहीं आया। उन्होंने अगले साल फिर धरतीव...

सुनहुँ तात यह ‘अमर’ कहानी

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लड़कों को कितनी बार कहा बड़ो बूढ़ों से पंगा मत लो लेकिन वे तो यही साबित करना चाहते हैं कि बाप नम्बरी तो बेटा 10 नम्बरी। इसी उत्साह में चाचा से टकरा गए। अब चाचा ठहरे पुराने अखाड़ेबाज, जैसे ही यादवी गर्जना के साथ ताल ठोंकी, भतीजे के सारे दावं एक झटके में झंड हो गए। शायद मुगालता ये था कि, "पहले समय में ज्यों सुरों के मध्य में सजकर भले, थे तारकासुर मारने गिरी नंदिनी नंदन चले' (जयद्रथ वध) वैसे ही साइकिल सेना के वे ही एकमात्र सम्भावित सेनापति हैं। खुद को मोदी और चाचा को आडवाणी समझ लिए थे। लगता है भतीजा भूल गया था कि बैल बूढ़ा होने पर भी हल में चलना नहीं भूलता। थोड़ा और पीछे महाभारत की लड़ाई भूल गए। 18 दिन की लड़ाई में भीष्म, द्रोण और कृप का कितना बोलबाला था। अकेले भीष्म ही थे जो रोज 10 हज़ार रथियों का संहार कर रहे थे। युवा तुर्क चंद्रशेखर बुजुर्ग होने पर ही प्रधानमंत्री बन सके थे। ज्योति बाबू और हरिकिशन सिंह सुरजीत कैसे चौथेपन तक सरकार  और संगठन को अपने इशारे पर चला रहे थे। ताज़ा हाल महाभारत भी सत्ता के लिए हुआ पारिवारिक संघर्ष था और हाल में अवध में चल रही लड़ाई भी कमोबेश यही है...

बिहार में बहार

बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है अभियोजन लाचार है, सामाजिक न्याय की सरकार है। अद्भुत वहां भागलपुर का कारागार है फ्रेश होकर निकलता जहां से गुनहगार है। स्वागत में खड़ी वहां राज्य की सरकार है फिर गाड़ियों के काफिले पे रॉबिनहुड सवार है। तीन बेटों को खो चुका वो बूढ़ा लाचार है उसकी आवाज़ सत्ता तक नहीं असरदार है। सिवान में बना हुआ भव्य तोरणद्वार है कहाँ गए पापा, राजदेव के बच्चों की पुकार है। ये कैसी बहार है, ये कैसी सरकार है? 'परिस्थतियों के सीएम' धिक्कार है, धिक्कार है।

कांग्रेस और खाट

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यूपी में अपनी खड़ी हो चुकी खाट को बिछाने के लिए कांग्रेस ने खाट पंचायत की। द की तुकबंदी बनाने के लिए देवरिया से दिल्ली तक की यात्रा शुरू की है। यूपी में कांग्रेस की खाट बिछेगी या खड़ी ही रहेगी ये तो 2017 में पता चलेगा लेकिन फिलहाल तो खाट लुट गई हैं। थोड़ा विषयान्तर डुमराँव के पूर्व महाराजा के परिवार में किसी की मौत हो गई थी। दशकर्म के दिन उन्होंने महा ब्राह्मणों को चांदी की फुल साइज चौकी दी थी। महा पात्रों ने डुमराँव की सीमा से निकलते ही चौकी आपस में झगड़ा कर तोड़ दी और पाया-पटिया जिसके हाथ जो लगा वो ले गया। महर्षि देवराहा बाबा के इलाके देवरिया में भी लालच इस कदर हावी था कि राहुल गांधी के जाते ही पाया-पटिया जिसे जो मिला वो ले गया। शायद यह सोच रहे होंगे कि यूपी में कहीं कांग्रेस की सरकार बनी और सरकारी दफ्तरों में कोई काम पड़ा तो खाट की पाट सबूत के तौर पर लेकर जाएंगे कि देखो हम भी राहुल की सभा में थे। 1992 में जब अयोध्या कांड हुआ उसके बाद उस विवादित ढांचे के ईंट-पत्थर कई घरों में हैं। लोग गर्व से बताते थे कि वे भी उस वक़्त अयोध्या में थे। खाट है क्या? खाट और आँख में कई समानत...

दोमुंहापन

कुछ साल पहले एक रिसर्च आई थी। उसके मुताबिक जो लोग सार्वजनिक जगहों पर महिला सम्मान के ज्यादा पैरोकार दिखते हैं वे दरअसल ऐसे होते नहीं। ऐसे अधिकतर लोग एकांत में महिलाओं से अलग अपेक्षा रखते हैं। दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री संदीप कुमार दावा करते हैं कि घर से निकलने से पहले वे अपनों पत्नी के पैर छूते हैं। तरुण तेजपाल पर जब लिफ्ट में महिला सहकर्मी से गलत काम करने का आरोप लगा तब वह कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न सब्जेक्ट पर आयोजित सेमिनार में लेक्चर देकर लौट रहे थे। ये बात तब एक इंग्लिश अख़बार में छपी थी। दलित कार्ड पिछले हफ्ते बीजेपी सांसद उदित राज ने एक लेख लिखा था। उसमें रियो ओलिम्पिक मेंडल जीतने के बाद पीवी सिंधू की जाति तलाशने की बात कहने के बाद ये लिखा गया कि विनोद कांबली तेंदुलकर से कमतर नहीं थे लेकिन उन्हें कम मौके इसलिए मिले क्योंकि वे दलित थे। यानी सचिन तेंदुलकर को गैर दलित होने का फायदा और कांबली को दलित होने का नुकसान उठाना पड़ा। सेक्स स्कैंडल की बात सामने आने के बाद संदीप कुमार की तत्काल प्रतिक्रिया यह थी कि दलित होने के कारण उनके खिलाफ साजिश की गई है। मजबूरी का फायदा संदीप कुमार ...

ओलम्पिक में हम मेडल क्यों नहीं ला पाते

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2 नंबर की जर्सी में शिवनाथ सिंह 60 या 70 के दशक की बात है। बिहार के बक्सर जिले के मंझरिया गांव का एक नौजवान शिवनाथ सिंह खाना खाने जा रहा था। घर में नींबू नहीं था। उसने अपनी मां से खाना तैयार कर परोसने को कहा और उतनी देर में वह गांव से दौड़ते हुए बक्सर आया और नींबू खरीद कर दौड़ते हुए घर पहुँच गया। यह दूरी 20 km से अधिक थी। कहा जाता है कि माँ तब तक खाना परोस ही रही थी। शिवनाथ सिंह शिवनाथ सिंह यह किस्सा बक्सर में कई लोग सुनाते हैं । कहानी कितनी सच है पता नहीं। पर शिवनाथ सिंह धावक थे ये सच है। 1976  में कनाडा में हुए ओलम्पिक में शिवनाथ सिंह भारत की तरफ से मैराथन में दौड़े थे और 2 घंटे 16 मिनट और 20 सेकंड में दौड़ पूरी कर 11वे नंबर पर रहे थे। यह नेशनल रेकॉर्ड था। 2 साल बाद जालंधर में शिवनाथ सिंह ने यह दौड़ 2 घंटे 12 मिनट में पूरी की। इन्टरनेट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह नेशनल रेकॉर्ड आज भी कायम है। कनाडा ओलंपिक में 71 लोगों ने ये दौड़ पूरी की थी। तेहरान में हुए एशियन गेम्स में शिवनाथ सिंह ने 10 हज़ार मीटर में गोल्ड जीता था। अब बात मैडल की। यदि 40 साल में हम शिवनाथ ...