ओलम्पिक में हम मेडल क्यों नहीं ला पाते


2 नंबर की जर्सी में शिवनाथ सिंह

60 या 70 के दशक की बात है। बिहार के बक्सर जिले के मंझरिया गांव का एक नौजवान शिवनाथ सिंह खाना खाने जा रहा था। घर में नींबू नहीं था। उसने अपनी मां से खाना तैयार कर परोसने को कहा और उतनी देर में वह गांव से दौड़ते हुए बक्सर आया और नींबू खरीद कर दौड़ते हुए घर पहुँच गया। यह दूरी 20 km से अधिक थी। कहा जाता है कि माँ तब तक खाना परोस ही रही थी।

शिवनाथ सिंह
शिवनाथ सिंह
यह किस्सा बक्सर में कई लोग सुनाते हैं । कहानी कितनी सच है पता नहीं। पर शिवनाथ सिंह धावक थे ये सच है। 1976 में कनाडा में हुए ओलम्पिक में शिवनाथ सिंह भारत की तरफ से मैराथन में दौड़े थे और 2 घंटे 16 मिनट और 20 सेकंड में दौड़ पूरी कर 11वे नंबर पर रहे थे। यह नेशनल रेकॉर्ड था। 2 साल बाद जालंधर में शिवनाथ सिंह ने यह दौड़ 2 घंटे 12 मिनट में पूरी की। इन्टरनेट पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक यह नेशनल रेकॉर्ड आज भी कायम है। कनाडा ओलंपिक में 71 लोगों ने ये दौड़ पूरी की थी। तेहरान में हुए एशियन गेम्स में शिवनाथ सिंह ने 10 हज़ार मीटर में गोल्ड जीता था।


अब बात मैडल की। यदि 40 साल में हम शिवनाथ सिंह का नेशनल रिकॉर्ड नहीं तोड़ सके तो हम किस मुंह से मैडल की उम्मीद करते हैं। 100 मीटर में हमारा नेशनल रिकॉर्ड 10. 26 सेकंड का है और ओलंपिक रिकॉर्ड 9.58 सेकंड के करीब है। फिर हम चाहे अपना ही रेकॉर्ड तोड़ दें ओलंपिक मैडल तो हरगिज नहीं ला पाएंगे। हम अपने हीरो के बारे में कहानियां गढ़ने लगते हैं और साइंटिफिक तरीके से उसकी परफॉर्मेन्स का विश्लेषण करना बंद कर देते हैं। हम स्ट्रैटिजी नही बनाते बस सेंटी हो जाते है। अंत समय में हम प्रदर्शन से अधिक दुआओं में यकीन करने लगते हैं।
और नतीजा .....

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