दोमुंहापन

कुछ साल पहले एक रिसर्च आई थी। उसके मुताबिक जो लोग सार्वजनिक जगहों पर महिला सम्मान के ज्यादा पैरोकार दिखते हैं वे दरअसल ऐसे होते नहीं। ऐसे अधिकतर लोग एकांत में महिलाओं से अलग अपेक्षा रखते हैं। दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री संदीप कुमार दावा करते हैं कि घर से निकलने से पहले वे अपनों पत्नी के पैर छूते हैं। तरुण तेजपाल पर जब लिफ्ट में महिला सहकर्मी से गलत काम करने का आरोप लगा तब वह कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न सब्जेक्ट पर आयोजित सेमिनार में लेक्चर देकर लौट रहे थे। ये बात तब एक इंग्लिश अख़बार में छपी थी।
दलित कार्ड
पिछले हफ्ते बीजेपी सांसद उदित राज ने एक लेख लिखा था। उसमें रियो ओलिम्पिक मेंडल जीतने के बाद पीवी सिंधू की जाति तलाशने की बात कहने के बाद ये लिखा गया कि विनोद कांबली तेंदुलकर से कमतर नहीं थे लेकिन उन्हें कम मौके इसलिए मिले क्योंकि वे दलित थे। यानी सचिन तेंदुलकर को गैर दलित होने का फायदा और कांबली को दलित होने का नुकसान उठाना पड़ा। सेक्स स्कैंडल की बात सामने आने के बाद संदीप कुमार की तत्काल प्रतिक्रिया यह थी कि दलित होने के कारण उनके खिलाफ साजिश की गई है।
मजबूरी का फायदा
संदीप कुमार मामले में महिला ने जो FIR दर्ज कराई है ABP न्यूज़ चैनल पर चल रही ख़बरों के मुताबिक संजीव ने राशन कार्ड बनवाने की बात कहकर उसके साथ न सिर्फ सेक्स किया बल्कि उसका वीडियो भी बना लिया। राशन कार्ड चाहे जिस सरकार का मुद्दा हो लेकिन इस घटना से यह भी साबित हो गया कि इसे हासिल करने के लिए ये सब भी करना पड़ता है।
दलित होने का मिसयूज
इसे क्या रामबाण की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है कि कोई आरोप लगे तो तुरंत ये कह दिया जाये कि दलित होने के कारण उसके साथ ऐसा किया जा रहा है। पिछले साल ग्रेटर नोएडा में एक दलित फॅमिली ने पुलिस पर रिपोर्ट दर्ज नहीं करने की बात कहकर निर्वस्त्र प्रदर्शन किया था। राज्य sc st आयोग ने उनकी बात सही नहीं मानी और सार्वजनिक जगह पर कपड़े उतारने के आरोप में इस परिवार के कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था।
दलितों के सवर्ण
ब्राह्मणवाद को याद करिये। क्या होता है। कुछ जातियों पर इसलिये सवाल नहीं उठाये जाते हैं क्योंकि वे सिस्टम से ऊपर माने जाते हैं। एक तरीके से उन्होंने खुद को अछूत कर लिया है। अछूत निकृष्ट होकर नहीं बल्कि उत्कृष्ट होकर। उसी ब्राह्मणवाद के रास्ते दलितवाद चल रहा है। अपने को दबा दिखाकर लाभ लेने की कोशिश। दलितों में भी उनके सवर्ण और महादलित क्यों हो रहे हैं। जगजीवन राम से लेकर मीरा कुमार व् उदित राज और रामविलास पासवान तक रिज़र्व सीट से चुनाव क्यों लड़ते हैं। मायावती की दिलचस्पी राज्य सभा और विधान परिषद में क्यों होती है। दरअसल दलितों ने इन्हें अपने ग्रुप का सवर्ण मान लिया है और इनके किसी फैसले पर सवाल नहीं उठाने के लिए अभिशप्त हो गए हैं। दलितों के ये सवर्ण भी अपनी बेहतरी इसी में मानते हैं कि दलित उसी हालत में रहें।
हर मुद्दे पर दलित या अल्पसंख्यक होने का अलाप उन दलितों और अल्पसंख्यकों को कमज़ोर कर सकता है जो वाकई दबे हुए हैं। लोग उनकी मजबूरी का मजाक बना देंगे।

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