मुख़्तार से मुख्तारी तक
अब तो लगता है कि मुख्तार से शुरू हुआ मुद्दा मुख्तारी तक पहुंच गया है। जिसे देखो वही अपने को प्रधान साबित करने पर तुला है। भतीजे से छीनकर चाचा को राज्य का इंचार्ज बना दिया गया है और चाचा बाकायदा उसका यूज भी कर रहे हैं। चचेरे ही सही, भांजे तक को बाहर का रास्ता दिखा रहे हैं। दूसरी तरफ नेताजी हैं जो अपनी चौधराहट दिखाने के लिए सबको धता बताकर अमर बेल को महासचिव की झाड़ पर चढ़ा चुके हैं। सब चिल्ला रहे हैं कि यह बाहरी अमर बेल परिवार रूपी वट वृक्ष पर चढ़कर अंदर की शांति चूस रही है लेकिन यही तो चौधराहट शो करने का जरिया है।
थोड़ा इधर-उधर
कहते हैं एक बार भगवान शंकर को दुनिया का प्रधान बनने का चस्का लगा था। उन्होंने धरती के सारे मनुष्यों को बुलाया और अपनी इच्छा जताई। मानवों ने कहा कि सारी कायनात आपकी है। जैसा आप कहें, वैसा होगा। भोले भंडारी ने कहा कि इस साल धरती पर तुम लोग जो कुछ भी बोओगे, उसका नीचे का हिस्सा मेरा और ऊपर वाला हिस्सा तुमलोगों का। धरतीवासियों ने कहा कि प्रभु जैसी आपकी इच्छा। उस साल धरती पर धान और गेहूं बोए गए और बेचारे शंकर जी के हिस्से कुछ नहीं आया। उन्होंने अगले साल फिर धरतीवासियों को बुलाया और कहा कि ऐसा नहीं होगा। इस बार ऊपर का हिस्सा मेरा और नीचे वाला हिस्सा तुमलोगों का। मनुष्यों ने कहा कि भगवन, हम आपसे बाहर कहां हैं? उस साल पूरी धरती पर आलू और शकरकंद की खेती हुई और त्रिशूलधारी के पास हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। तीसरे साल मारे क्रोध के उनका तीसरा नेत्र खुलने लगा। उन्होंने फिर मनुष्यों को अपने हुजूर में पेश होने का हुक्म दिया और फरमाया कि इस बार धरती पर जो कुछ भी पैदा होगा उसका ऊपर वाला हिस्सा भी मेरा और नीचे वाला भी। तुमलोगों का हिस्सा बीच वाला होगा। मनुष्यों ने फिर उनकी बात मान ली। कहते हैं उस साल धरती पर इफरात में भुट्टे की खेती की गई और बेचारे शंकर जी की इंचार्ज बनने और नजराना वसूलने की हसरत अधूरी ही रह गई। महाभारत काल में भी यही हुआ था। जिसने हस्तिनापुर का अखंड साम्राज्य भोगा हो उसके लिए 5 गांव की क्या हैसियत थी। फिर भी पांचों भाई पांडव ये सोचकर सब्र करने को तैयार थे कि पांच गांव के प्रधान तो वे होंगे ही।
कहते हैं एक बार भगवान शंकर को दुनिया का प्रधान बनने का चस्का लगा था। उन्होंने धरती के सारे मनुष्यों को बुलाया और अपनी इच्छा जताई। मानवों ने कहा कि सारी कायनात आपकी है। जैसा आप कहें, वैसा होगा। भोले भंडारी ने कहा कि इस साल धरती पर तुम लोग जो कुछ भी बोओगे, उसका नीचे का हिस्सा मेरा और ऊपर वाला हिस्सा तुमलोगों का। धरतीवासियों ने कहा कि प्रभु जैसी आपकी इच्छा। उस साल धरती पर धान और गेहूं बोए गए और बेचारे शंकर जी के हिस्से कुछ नहीं आया। उन्होंने अगले साल फिर धरतीवासियों को बुलाया और कहा कि ऐसा नहीं होगा। इस बार ऊपर का हिस्सा मेरा और नीचे वाला हिस्सा तुमलोगों का। मनुष्यों ने कहा कि भगवन, हम आपसे बाहर कहां हैं? उस साल पूरी धरती पर आलू और शकरकंद की खेती हुई और त्रिशूलधारी के पास हाथ मलने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। तीसरे साल मारे क्रोध के उनका तीसरा नेत्र खुलने लगा। उन्होंने फिर मनुष्यों को अपने हुजूर में पेश होने का हुक्म दिया और फरमाया कि इस बार धरती पर जो कुछ भी पैदा होगा उसका ऊपर वाला हिस्सा भी मेरा और नीचे वाला भी। तुमलोगों का हिस्सा बीच वाला होगा। मनुष्यों ने फिर उनकी बात मान ली। कहते हैं उस साल धरती पर इफरात में भुट्टे की खेती की गई और बेचारे शंकर जी की इंचार्ज बनने और नजराना वसूलने की हसरत अधूरी ही रह गई। महाभारत काल में भी यही हुआ था। जिसने हस्तिनापुर का अखंड साम्राज्य भोगा हो उसके लिए 5 गांव की क्या हैसियत थी। फिर भी पांचों भाई पांडव ये सोचकर सब्र करने को तैयार थे कि पांच गांव के प्रधान तो वे होंगे ही।
खुद लिखे, खुदा पढ़े
मुख्तारी के मसले पर सारा कुनबा भले ही आपस में भिड़ा हो लेकिन एक मुद्दे पर सभी एकमत हैं कि जो नेताजी कहेंगे, वही होगा। अब नेताजी कहते क्या हैं यह अधिकतर लोगों के पल्ले नहीं पड़ता। फिर भी उनके कहे पर सभो एक पैर पर खड़े हो जाते हैं। लोगों की नजर में वह समाजवादी साधना के प्रतीक हैं।
मुख्तारी के मसले पर सारा कुनबा भले ही आपस में भिड़ा हो लेकिन एक मुद्दे पर सभी एकमत हैं कि जो नेताजी कहेंगे, वही होगा। अब नेताजी कहते क्या हैं यह अधिकतर लोगों के पल्ले नहीं पड़ता। फिर भी उनके कहे पर सभो एक पैर पर खड़े हो जाते हैं। लोगों की नजर में वह समाजवादी साधना के प्रतीक हैं।
जब चली, तब चलाया
जब भतीजे की चली तब उसने चाचा के पर कतर दिए। जब चाचा के हाथ में पावर आई तो भतीजे के सारे सिपहसालारों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। चाचा का चक्रव्यूह द्रोणाचार्य के कौशल की याद दिला रहा है। हाल ही में उसे मंडी परिषद् से भी हटना पड़ा। भतीजा कहीं अभिमन्यु न बन जाये। उस टाइम तो कम से कम अर्जुन द्रोण के प्रति कठोर थे अभी तो चाचा के प्रति बड़े भाईसाहब मुलायम ही हैं। ऐसे ही पंजे वाली पार्टी का युवराज अपने ही बुजुर्ग महारथियों के जाल में फंस गया था।
कैसा कप्तान
चाचा ने अपनी मुख्तारी की टेस्टिंग के लिए ही मुख़्तार को चुना था। वह इस बारो प्लेयर को तो अपनी टीम में शामिल नहीं करा सके, लेकिन अगले साल होने जा रहे राज्यस्तरीय टूर्नामेंट में टीम के लिए सिलेक्शन कमेटी के हेड तो वो बना ही दिए गए हैं। भतीजा भले ही कैप्टन बना रहे लेकिन टीम तो चाचा की ही खेलेगी।
चाचा ने अपनी मुख्तारी की टेस्टिंग के लिए ही मुख़्तार को चुना था। वह इस बारो प्लेयर को तो अपनी टीम में शामिल नहीं करा सके, लेकिन अगले साल होने जा रहे राज्यस्तरीय टूर्नामेंट में टीम के लिए सिलेक्शन कमेटी के हेड तो वो बना ही दिए गए हैं। भतीजा भले ही कैप्टन बना रहे लेकिन टीम तो चाचा की ही खेलेगी।
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