सुनहुँ तात यह ‘अमर’ कहानी



लड़कों को कितनी बार कहा बड़ो बूढ़ों से पंगा मत लो लेकिन वे तो यही साबित करना चाहते हैं कि बाप नम्बरी तो बेटा 10 नम्बरी। इसी उत्साह में चाचा से टकरा गए। अब चाचा ठहरे पुराने अखाड़ेबाज, जैसे ही यादवी गर्जना के साथ ताल ठोंकी, भतीजे के सारे दावं एक झटके में झंड हो गए। शायद मुगालता ये था कि, "पहले समय में ज्यों सुरों के मध्य में सजकर भले, थे तारकासुर मारने गिरी नंदिनी नंदन चले' (जयद्रथ वध) वैसे ही साइकिल सेना के वे ही एकमात्र सम्भावित सेनापति हैं। खुद को मोदी और चाचा को आडवाणी समझ लिए थे। लगता है भतीजा भूल गया था कि बैल बूढ़ा होने पर भी हल में चलना नहीं भूलता।
थोड़ा और पीछे
महाभारत की लड़ाई भूल गए। 18 दिन की लड़ाई में भीष्म, द्रोण और कृप का कितना बोलबाला था। अकेले भीष्म ही थे जो रोज 10 हज़ार रथियों का संहार कर रहे थे। युवा तुर्क चंद्रशेखर बुजुर्ग होने पर ही प्रधानमंत्री बन सके थे। ज्योति बाबू और हरिकिशन सिंह सुरजीत कैसे चौथेपन तक सरकार और संगठन को अपने इशारे पर चला रहे थे।
ताज़ा हाल
महाभारत भी सत्ता के लिए हुआ पारिवारिक संघर्ष था और हाल में अवध में चल रही लड़ाई भी कमोबेश यही है। वैसे अवध का रिकॉर्ड यह है कि एक शख्श नें अपने सौतेले भाई का 14 साल इंतज़ार किया और उसे उसका राज लौटा दिया। इसके विपरीत हस्तिनापुर में वैसे ही राज की खातिर 5 भाइयों ने 100 चचेरे भाइयों को मार दिया था। तब से आज तक में अंतर आया है कि वैसे राज की खातिर अवध में सगे चाचा भतीजे आमने सामने हैं। एक अंतर और दीखता है। तब शिखंडी की आड़ में पितामह पर तीर चलाया गया था, आज बाहरी शख्स पर आरोप है कि वह चाचा के पीछे से भतीजे पर बाण वर्षा क्र रहा है।
पुरानी कहावत
अगर आपके घर में शांति नहीं रह रही है तो आप अपने पड़ोसी से बातचीत बंद कर दीजिए, आपके घर की शांति लौट आएगी। इसी तरह आपके देश में शांति नहीं है तो पड़ोसी देश पर चढ़ाई कर दीजिये, देश में शांति आ जायेगी। यहां भी परिवार की शांति खतरे में पड़ी तो उस बाहरी की तलाश होने लगी जो परिवार में घुस गया है।
क्या है अमर बेल
यह परजीवी लता हमेशा किसी बड़े पेड़ पर पलती और इतराती है। दिक्कत तब होती है जब वो पेड़ की अहमियत दरकिनार कर खुद पेड़ बनने लगती है। बेचारा बड़ा पेड़ उसे इस मोह में नहीं छोड़ता कि उसका सारा सिंगार पटार उसी की बदौलत है और इसी वजह से वह अमर बेल के प्रति मुलायम रहता है।
परिवारवाद
भुखमरी के रुत में नग्मे लिख रहे हैं प्यार के
आज के फनकार भी हैं दोगले किरदार के
दोस्तो, इस मुल्क में जम्हूरियत के नाम पर
कब तलक सिक्के चलेंगे एक ही परिवार के।
-अदम गोंडवी
आज ये कहा जा रहा है कि परिवार में कोई बाहरी घुस आया है। वजह ये है कि बाप पार्टी सुप्रीमो, बेटा सीएम, भाई स्टेट हेड, अपनी बहू सांसद और भाई की पत्नी को लालबत्ती। जाहिर है कि कोई कुछ करेगा या बोलेगा तो वह परिवार के खिलाफ ही जायेगा। पार्टी के खिलाफ तो तब जाता जब कोई दूसरा भी इस समाजवादी सिस्टम में आगे बढ़ता। इस पार्टी में आगे बढ़ने के लिए तो परिवार का मेंबर बनना ही पड़ेगा।
अब आगे क्या
हो सकता है ये अमर बेल एक बार फिर उस बड़े पेड़ से नोचकर अलग कर दी जाये जो उसके प्रति मुलायम रहता है और भैंस वाले खां साहब को "बिन मारे मुद्दई मरे' वाली फीलिंग आये।

Comments

Unknown said…
समाजवादी पार्टी में मचे घमासान को समझने के लिए ब्लॉग काफी अच्छा है।

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