किसे पड़ी है जो जा सुनाए पियारे पी को हमारी बतियां

आज के माहौल में अमीर खुसरो की चर्चा प्रासंगिक लग रही है। फ़ारसी और ब्रज का जैसा संगम उनकी रचना में है, उसमें डुबकी लगाने के बाद लगता है कि दोनों में कितना नैसर्गिक रिश्ता स्थापित कर दिया था खुसरो ने। खुसरो भी उसी यूपी में पैदा हुए थे जहां काशी-ज्ञानवापी, अयोध्या-बाबरी और मथुरा-जामा मस्जिद है। वह उसी यूपी के थे जहां मेरठ, अलीगढ़ व सहारनपुर हैं। आपको फ़ारसी नही आती तो ब्रज में बिंदास डूब जाइए और ब्रज की बोली समझने में दिक्कत है तो इसके साहिल पर बैठे-बैठे फारसी की लहरों संग झूमिये ,:

जिहाले मिस्की मकुन तगाफुल दुराय नैना बनाये बतियां
कि ताब ए हिज़्रा न दारम ए जा, न लेहु काहे लगाय छतियां।
शबान ए हिज़्रा दराज़ चूं जुल्फ, वरोज़ ए वसलत चूं उम्र कोताह
सखी पिया को जो मैं न देखूं, तो कैसे काटूं अंधेरी रतियां।

रचना लम्बी है, और सन्देश भी उतनी दूर तक जाना चाहिए। कहा जाता है कि पिछली सदी के चर्चित गीत सुनाई देती है जिसकी धड़कन तुम्हारा दिल या हमारा दिल है, की प्रेरणा और पहली पंक्ति इसी से ली गई थी।

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