गद्दी पा गए गौड़ा के कुमार

जेठ की गर्मी से झुलसी दूब की शिराओं में फिर से प्राण प्रवाह होने लगा है। परिंदे ट्वीट करने यानी चहचहाने लगे हैं, मोरों का फेस फेसबुक पर दिखने लगा है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वे भी मारे खुशी के नाच रहे हैं। भाट और चारण विरुदावली गाने लगे हैं, वर्चुअल दुनिया में विचरण करनेवाले प्रगतिशीलों और धर्मनिरपेक्षों को एक्चुअल में आज़ादी का अहसास होने लगा है, एससी-एसटी मामले में दिए फैसले को लेकर कोर्ट से डगमगाई आस्था फिर से कायम हो गई है, अल्लाह की रहमतें बरसने लगी हैं।
चुनाव पूर्व गठबंधन बनाकर लड़े दो दलों को सत्ता मिलने वाली है, दोनों को एक दूसरे की नीतियों में यकीन है और यह बात उनके रहनुमाओं ने चुनाव प्रचार के दौरान अपने वोटरों से कहा भी था। लोकतंत्र की हत्या तो हो ही गई थी, लेकिन अब डेमोक्रेसी की डुगडुगी फिर से बजनेवाली है। जो दो दल सत्ताधीश होने वाले हैं उनमें से किसी पर प्रजातंत्र को द्रोपदी की साड़ी बनाने का आरोप कहां है? इमरजेंसी लगाने और राज्यपालों पर दबाव बनाने का तो हरगिज़ नहीं। बापू बेटे दोनों की किस्मत एक ही कलम से लिखी गई है। दोनों का राजयोग अपने से बड़े दलों के सहयोग से था/है।
फ्लैशबैक
1982 में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके थे। 90 सीटों के हाउस में 36 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। 2 साल की उम्र वाली बीजेपी ने देवीलाल के लोकदल से गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। देवीलाल की पार्टी ने 31 और बीजेपी ने 6 सीटें जीती थीं। न तो कांग्रेस और न ही इस गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत था। राज्य में सीपीआई और सी.पी.एम. मोक्ष प्राप्त कर चुकी थीं यानी उन्हें कोई सीट नहीं मिली थी। सब कुछ तत्कालीन राज्यपाल G.D.Tapase के स्वविवेक पर निर्भर था।
राज्यपाल ने 22 मई 1982 को देवीलाल को सरकार बनाने को आमंत्रित किया और 24 मई तक बहुमत साबित करने को कहा। बताया जाता है कि इस बीच भजनलाल ने ऐसे राजनीतिक प्रबंधन का परिचय दिया कि देवीलाल राजभवन में विधायकों को लेकर राज्यपाल का इंतज़ार करते रह गए और कांग्रेसी नेता रह चुके राज्यपाल ने अंदर भजनलाल को पद और गोपनीयता की शपथ दिलवा दी थी।
आज कई जानकार कह रहे हैं कि कांग्रेस ने बीजेपी को उसी की चाल से मात दी है लेकिन यह वाक्य तो बता रहा है कि कांग्रेस को राजकाज के लिए किसी शाह का अनुसरण करने की जरूरत नहीं।





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