बक्सर के राम और देश का रामायण सर्किट
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प्रस्तावित रामायण सर्किट का रूट मैप |
प्रस्तावित रामायण सर्किट। रामकथा से जुड़ी जगहों का कॉरिडोर। योजना परवान चढ़ती है या सिर्फ फाइलों की शोभा बढाती है, यह देखना बाकी है। चूंकि बक्सर के लोग नमामि गंगे प्रॉजेक्ट को लेकर खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। बक्सर रामकथा के लिहाज से कितना महत्वपूर्ण है और इस शहर में राम का कितना असर है, यह जानना जरूरी है।
राम की कहानी
कहा जाता है कि विश्वामित्र राम लक्ष्मण
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खस्ताहाल और बंद हो चुका बक्सर का साउंड एंड लाइट |
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1539 में चौसा की लड़ाई में शेरशाह ने हुमायूं को परास्त किया था |
राम का असर
राम भले ही दोबारा बक्सर न आये हों लेकिन यहां राम का असर गहरा है। हालांकि जय रामजी की का सम्बोधन जय श्रीराम पर भारी है। तिलक और शादी के मंडप में बैठा हर दूल्हा यहां राम होता है, यद्यपि राम की शादी सफल नहीं रही थी। अगहन महीने में यहां राम जानकी विवाह का 9 दिनी भव्य आयोजन होता है जहां देश भर के लोग जुटते हैं। पुराने बनिये तराजू उठाते हैं तो गिनती एक के बजाय राम से शुरू करते हैं। फिर 2, 3, 4। अधिकतर दलितों का सरनेम राम होता है। विश्वामित्र का असर यहां राम से अधिक है। शहर के पीजी कॉलेज का नाम महर्षि विश्वामित्र के नाम पर है। इसके सेंट्रल हॉल का नाम मानस है। इसके अलावा यहां की मशहूर पापड़ी की कई दुकानें विश्वामित्र के नाम पर चलती हैं। एक नर्सिंग होम भी उनके नाम पर है।
राम भले ही दोबारा बक्सर न आये हों लेकिन यहां राम का असर गहरा है। हालांकि जय रामजी की का सम्बोधन जय श्रीराम पर भारी है। तिलक और शादी के मंडप में बैठा हर दूल्हा यहां राम होता है, यद्यपि राम की शादी सफल नहीं रही थी। अगहन महीने में यहां राम जानकी विवाह का 9 दिनी भव्य आयोजन होता है जहां देश भर के लोग जुटते हैं। पुराने बनिये तराजू उठाते हैं तो गिनती एक के बजाय राम से शुरू करते हैं। फिर 2, 3, 4। अधिकतर दलितों का सरनेम राम होता है। विश्वामित्र का असर यहां राम से अधिक है। शहर के पीजी कॉलेज का नाम महर्षि विश्वामित्र के नाम पर है। इसके सेंट्रल हॉल का नाम मानस है। इसके अलावा यहां की मशहूर पापड़ी की कई दुकानें विश्वामित्र के नाम पर चलती हैं। एक नर्सिंग होम भी उनके नाम पर है।
बक्सर का परिचय
कहा जाता है कि सतयुग में यहां 88 हज़ार ऋषि तपस्या करते थे। तब इस जगह का नाम सिद्धाश्रम था। भगवान वामन ने यहां अवतार लिया था और त्रेता में इस जगह का नाम वामनाश्रम था। द्वापर में वेदगर्भा पुरी और कलियुग में व्याघ्रसर, जो बिगड़कर बक्सर हो गया। कथा है कि एक बार वेदशिरा मुनि ने बाघ बनकर ऋषि दुर्वासा को डराने का प्रयास किया था। दुर्वासा के शाप से उनका मुंह बाघ जैसा हो गया था। बाद में भगवान शंकर के नन्दी की सलाह पर वेदशिरा मुनि ने यहां के एक सरोवर में स्नान किया तो उनका चेहरा फिर से मानव का हो गया। उसी सरोवर के नाम पर इस जगह का नाम व्याघ्रसर यानी बाघ वाला सरोवर पड़ा था। सरोवर आज भी है लेकिन बदहाल। गंगा और कर्मनासा नदियां इसे यूपी से अलग करती हैं। 80 के दशक में यहा साउंड एंड लाइट खोला गया जो पहली बरसात में जो बन्द हुआ तो फिर नहीं खुला। इसमें बक्सर में राम के बारे नें बताया जाता था।
कहा जाता है कि सतयुग में यहां 88 हज़ार ऋषि तपस्या करते थे। तब इस जगह का नाम सिद्धाश्रम था। भगवान वामन ने यहां अवतार लिया था और त्रेता में इस जगह का नाम वामनाश्रम था। द्वापर में वेदगर्भा पुरी और कलियुग में व्याघ्रसर, जो बिगड़कर बक्सर हो गया। कथा है कि एक बार वेदशिरा मुनि ने बाघ बनकर ऋषि दुर्वासा को डराने का प्रयास किया था। दुर्वासा के शाप से उनका मुंह बाघ जैसा हो गया था। बाद में भगवान शंकर के नन्दी की सलाह पर वेदशिरा मुनि ने यहां के एक सरोवर में स्नान किया तो उनका चेहरा फिर से मानव का हो गया। उसी सरोवर के नाम पर इस जगह का नाम व्याघ्रसर यानी बाघ वाला सरोवर पड़ा था। सरोवर आज भी है लेकिन बदहाल। गंगा और कर्मनासा नदियां इसे यूपी से अलग करती हैं। 80 के दशक में यहा साउंड एंड लाइट खोला गया जो पहली बरसात में जो बन्द हुआ तो फिर नहीं खुला। इसमें बक्सर में राम के बारे नें बताया जाता था।
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बक्सर की खुदाई में मिली थीं टेराकोटा काल की मूर्तियां |
यहां के लोग
पुरानी बात है। बनारस के अस्सी मुहल्ले के यूनिफार्म (पढ़ें काशीनाथ सिंह का विवादास्पद उपन्यास काशी का अस्सी) यानी कमर में गमछा लपेटे और जनेऊ से पीठ खुजलाते एक सज्जन सुबह सुबह जा रहे थे। सामने से दूसरे सज्जन उसी यूनिफार्म में आ रहे थे। दूसरे वाले सज्जन परम् तृप्ति के भाव से हथेली पर कुछ रगड़ रहे थे। पहले वाले को देखते ही वे जोर से बोले-वे रहीम नर मर चुके जे कहीं मांगन जाहिं। सूरज पूरी तरह नहीं उगा था लेकिन उनकी बुलन्द आवाज़ से कई लोगों की नींद खुल गई थी। पहले वाले भी यह पैंतरा समझते थे। उन्होंने और बुलन्द आवाज़ में दोहा पूरा किया-उन ते पहिले वे मुएँ जिन मुख निकसत नाहिं। और हथेली फैला दी। दिव्य निपटान का माहौल बनानेवाले उस दिव्य पदार्थ का दोनों लोगों में बंटवारा हो चुका था। आप किसी से पूछकर देखिये कि क्या उसने चौसा का लड़ाई का मैदान देखा है जहां शेरशाह ने हुमायूं को परास्त किया था तो वह छूटते ही पूछेगा कि तो क्या हम शेरशाह की चरवाही करें?
पान है जान
पान खाने का फैशन इतना है कि कई पुराने लोग सुबह खाना खाकर निकल जाते थे तो फिर रात में ही खाते थे। पूरा दिन पान खाकर निकाल देते थे। पान से प्रेम देखिये। एक सज्जन के लड़के को पुलिस पकड़ कर ले गई। क्यों, यह जानने के लिए वह लपकते हुए थाने जा रहे हैं। लेकिन पहले पहुंचते हैं पान की दुकान पर। अरे भाई, जल्दी पान खिला दो, थाने जाना है। बुलंद आवाज़ में अपने लड़के को गरियाते हुए पहली पीक थूकी, पान का रंग देखा और उसके मुताबिक चूना चाटा और फिर थाने के लिए रवाना हुए, जहां जल्दी पहुंचने वाले थे। मिज़ाज़ में अकड़ इतनी कि पूर्व प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर के बारे में लोग कहते थे कि वे ट्रेन पकड़ने बक्सर आते हैं, हम तो जरा मन बहलाने के लिए कभी कभी बलिया (आशय रेड लाइट एरिया यानी गुदड़ी बाजार से होता था) चले जाते हैं। जबसे बिहार में शराबबंदी लागू हुई है, तबसे पीने वालों की गंगा पर बने पुल के रास्ते यूपी में आवाजाही बढ़ गई है। सामने बलिया जिले के उजियार में पीकर लौटने के दौरान थोड़ी देर तक पुल पर रुकते हैं और पीछे देखते हुए कहते हैं कि देखो, आज यूपी वाले हमारे पैसे से बन गए हैं। दुनिया भले बक्सर को राम और विश्वामित्र के बहाने जानती हो, लेकिन बक्सर वाले यह मानने में नहीं हिचकते कि मूलवासी तो यहां की ताड़का थी, राम तो बाहर से आये थे।
पुरानी बात है। बनारस के अस्सी मुहल्ले के यूनिफार्म (पढ़ें काशीनाथ सिंह का विवादास्पद उपन्यास काशी का अस्सी) यानी कमर में गमछा लपेटे और जनेऊ से पीठ खुजलाते एक सज्जन सुबह सुबह जा रहे थे। सामने से दूसरे सज्जन उसी यूनिफार्म में आ रहे थे। दूसरे वाले सज्जन परम् तृप्ति के भाव से हथेली पर कुछ रगड़ रहे थे। पहले वाले को देखते ही वे जोर से बोले-वे रहीम नर मर चुके जे कहीं मांगन जाहिं। सूरज पूरी तरह नहीं उगा था लेकिन उनकी बुलन्द आवाज़ से कई लोगों की नींद खुल गई थी। पहले वाले भी यह पैंतरा समझते थे। उन्होंने और बुलन्द आवाज़ में दोहा पूरा किया-उन ते पहिले वे मुएँ जिन मुख निकसत नाहिं। और हथेली फैला दी। दिव्य निपटान का माहौल बनानेवाले उस दिव्य पदार्थ का दोनों लोगों में बंटवारा हो चुका था। आप किसी से पूछकर देखिये कि क्या उसने चौसा का लड़ाई का मैदान देखा है जहां शेरशाह ने हुमायूं को परास्त किया था तो वह छूटते ही पूछेगा कि तो क्या हम शेरशाह की चरवाही करें?
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बक्सर की जीत के बाद अंग्रेजों ने बनवाया था यह विजय स्तूप |
पान है जान
पान खाने का फैशन इतना है कि कई पुराने लोग सुबह खाना खाकर निकल जाते थे तो फिर रात में ही खाते थे। पूरा दिन पान खाकर निकाल देते थे। पान से प्रेम देखिये। एक सज्जन के लड़के को पुलिस पकड़ कर ले गई। क्यों, यह जानने के लिए वह लपकते हुए थाने जा रहे हैं। लेकिन पहले पहुंचते हैं पान की दुकान पर। अरे भाई, जल्दी पान खिला दो, थाने जाना है। बुलंद आवाज़ में अपने लड़के को गरियाते हुए पहली पीक थूकी, पान का रंग देखा और उसके मुताबिक चूना चाटा और फिर थाने के लिए रवाना हुए, जहां जल्दी पहुंचने वाले थे। मिज़ाज़ में अकड़ इतनी कि पूर्व प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर के बारे में लोग कहते थे कि वे ट्रेन पकड़ने बक्सर आते हैं, हम तो जरा मन बहलाने के लिए कभी कभी बलिया (आशय रेड लाइट एरिया यानी गुदड़ी बाजार से होता था) चले जाते हैं। जबसे बिहार में शराबबंदी लागू हुई है, तबसे पीने वालों की गंगा पर बने पुल के रास्ते यूपी में आवाजाही बढ़ गई है। सामने बलिया जिले के उजियार में पीकर लौटने के दौरान थोड़ी देर तक पुल पर रुकते हैं और पीछे देखते हुए कहते हैं कि देखो, आज यूपी वाले हमारे पैसे से बन गए हैं। दुनिया भले बक्सर को राम और विश्वामित्र के बहाने जानती हो, लेकिन बक्सर वाले यह मानने में नहीं हिचकते कि मूलवासी तो यहां की ताड़का थी, राम तो बाहर से आये थे।
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