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Showing posts from July, 2020

करवट की तलाश में ऊंट

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राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में लोग बड़ी संख्या में ऊंटों को पालते हैं। कुछ ऊंट चैत्र मेले में बिछड़ गए और कुछ घर छोड़कर चले गए। इनके मालिक अब फिर से इन्हें वापस लाने की जुगत में हैं, ऐसा वहां के लोग  बताते हैं। पॉलिटिक्स को लेकर पुरानी कहावत है, पता नहीं इस राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा? राजस्थान की राजनीति की भी फिलहाल यही दशा-दिशा है। ऊंट चूंकि राजस्थान का राजकीय पशु है, इसलिए थोड़ी चर्चा ऊंटों की भी। कोरोना काल में ऊंटों पर बुरा असर पड़ा। जब इस महामारी का दौर शुरू हो रहा था तब राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में चैत्र मेले की शुरुआत हो रही थी। इस मेले में बड़ी संख्या में ऊंटपालक भी पहुंचते हैं और जानवरों की खरीद-फरोख्त करते हैं। सरकार ने कोरोना की वजह से मेला बीच में ही बन्द कर दिया, लॉकडाउन हो गया और मेला बिखर गया। मीडिया रिपोर्ट्स है कि कई पशुपालको के सामने अपने ऊंटों को वहीं लावारिस छोड़कर लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था, क्योंकि उनके लिए चारे का इंतज़ाम करना भी मुश्किल था। अब आते हैं हाथी पर। हाथी बसपा का चुनाव चिह्न है और हाथी छाप पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे छह लोग हाथी का सा...

हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहहि सुनहि बहु विधि सब संता

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1980 के दशक में चर्चित टीवी सीरियल रामायण में राम, सीता और लक्ष्मण के रोल इन्हीं तीन कलाकारों-अरुण गोविल, दीपिका और सुनील लहरी ने किए थे कवि-शायर कुंवर जावेद का सवाल है कि श्रीलंका में श्री क्यों लगता है? और किसी देश के नाम के आगे तो श्री नहीं लगता। अपने सवाल का जवाब भी वह अपनी नीचे लिखी रचना में देते हैं। जला के पापों को फिर से उसे बसाना पड़ा तो श्रद्धा आस्था के फूलों से सजाना पड़ा हमारी माता ने कुछ दिन वहां बिताए थे तभी तो नाम के आगे श्री लगाना पड़ा। डॉक्टर राममनोहर लोहिया ने लिखा है-कृष्ण ने कदम-कदम पर चमत्कार दिखलाए, लेकिन राजसत्ता को परिवार की एक शाखा से दूसरी शाखा में स्थानांतरित करने के अलावा वह कुछ बड़ा नहीं कर सके। इसके विपरीत राम जब घर से निकले तो सिर्फ तीन लोग थे और उसमें से दो ही युद्ध कर सकते थे, एक महिला केवल व्यवस्था कर सकती थी, लेकिन जब वे लौटे तो एक विशाल साम्राज्य खड़ा कर चुके थे। राम ने न तो सुग्रीव के राज को अवध में शामिल किया न ही लंका को। इसके विपरीत वहीं के लोगों को हुकूमत सौंप दी और उन्हें अपना मित्र बना लिया। राम अवध के थे औऱ उनकी शादी मिथ...

राजस्थान के रण में छाते रहे हैं 'बाहरी'

राजस्थान की राजनीति में बाहर से गए लोग जब-तब जलवा दिखाते रहे हैं। सचिन पायलट प्रकरण भी इसी का उदाहरण है। सचिन पायलट का परिवार मूल रूप से ग्रेटर नोएडा, यूपी के वैदपुरा गांव का रहने वाला है। इनके पिता यहां से राजस्थान गए और वहां की राजनीति में खुद को स्थापित किया। विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जब सरकार में वापसी की तो उसका काफी श्रेय सचिन पायलट के राजनीतिक प्रबंधन को दिया गया। उसके अगले साल लोकसभा चुनाव हुए और सीएम अशोक गहलोत ( जो वहां के मूल निवासी हैं) के बेटे जोधपुर सीट से चुनाव हार गए। हालिया राजनीतिक उठापटक में अशोक गहलोत जिस नेता के सहारे गुर्जर वोटों के प्रति आश्वस्त होने की कोशिश कर रहे हैं, वह जोगिंदर अवाना भी नोएडा, यूपी के हैं। वह नोएडा की राजनीति में सक्रिय रहे और फिर राजस्थान की नदबई सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीत गए। कहा जाता है कि बाद में जब बसपा के विधायकों को कांग्रेस ने अपने में समाहित कर लिया तो उसमे जोगिंदर अवाना की बड़ी भूमिका थी। इससे पहले 2014 में बीजेपी ने लोकसभा की सभी 25 सीटें जीती थी। उसका श्रेय बीजेपी की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे को भी जाता...

व्यक्ति और समाज के ऐसे विकास का जिम्मेदार कौन?

एक युवक था, मनबढ़। छोटी-मोटी बदमाशी परिवार नज़रअंदाज़ करता रहा। पड़ोसी शिकायत करते रहे और परिवारवाले नज़रंदाज़। फिर एक दिन उसने किसी की हत्या कर दी। कहीं और नहीं, थाने में घुसकर, पुलिसवालों के सामने, लेकिन कोई गवाह नहीं मिला। हत्या किसी पुलिस वाले की हुई नहीं थी, तो पुलिस ने भी जाने दिया। अब उस युवक पर नेताओं की निगाह पड़ी। जातीय क्षेत्रीय सम्बन्ध जोड़े गए। जनप्रतिनिधि बनने के लिए उसकी मदद ली जाने लगी। वह क्राइम की दुनिया में घुसता गया।  परिवार और पुलिस ने उसकी गलतियों को इग्नोर किया था, जबकि नेताओं ने उसे प्रोत्साहित किया। फिर एक साबुन-सर्फ बनाने वाली कम्पनी आई। उसने युवक को आर्थिक सुरक्षा दी। युवक का वाइट कालर जॉब करने वालों के बीच उठना-बैठना शुरू हुआ। फिर वह कम्पनी डेयरी के फील्ड में उतरी। उसने युवक के खौफ का इस्तेमाल किया। नतीजतन इलाके के गोपालकों ने सारा दूध उस नई कम्पनी को देना शुरू किया। दूध के धंधे में पहले से लगे लोगों के यहां दूध पहुंचना बन्द हो गया। फिर एक दिन पुलिस ने उउसे एनकाउंटर में मार दिया। अब बताइये। युवक की इस अवस्था के लिए कौन अधिक जिम्मेदार है? परिवार, जिसने...

वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति

तात्पर्य  यह है कि राजसत्ता धर्म और विचारधारा जब एकल या सामूहिक हत्या या कानून विरोधी एक्शन करते हैं तो उसे जायज़ भी ठहरा देते हैं, सबूत भी पेश कर देते हैं। कानपुर के बिकरु गांव में पिछले दिनों रेड करने गई पुलिस पर फायरिंग हुई। आठ पुलिस वाले मारे गए। यह दुखद घटना थी। पुलिस वालों की ऐसी हत्या से हर किसी के लिए तकलीफदेह थी। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? विकास दुबे के घर पर बुलडोजर चलवा दिया गया। ऐसा किसके आदेश पर हुआ? किसी ने न पूछा न किसी ने बताया। रेड डालने गई उस पुलिस टीम में विनय तिवारी जैसा इंस्पेक्टर भी था, जो मुखबिरी के आरोप में सस्पेंड हो चुका है। इस हमले में मारे गए सीओ देवेंद्र मिश्रा से उसकी अनबन जगजाहिर है। तो पड़ताल में इसे क्यों नहीं शामिल किया गया कि पुलिस वालों पर गोलियां चली किधर से थीं?  इसके विपरीत पूरा घर तोड़कर सबूत ही नष्ट कर दिया गया। उज्जैन में विकास ने अपनी मौजूदगी के पहले तो सारे सबूत जुटाए, अपने नाम से महाकाल के दर्शन की पर्ची कटवाई और पकड़े जाने के बाद चिल्लाकर बोला- मैं विकास दुबे हूँ, कानपुर वाला। इतने सबूत क्या वह मरने के लिए जुटा रहा था? विकास ...