करवट की तलाश में ऊंट
कोरोना काल में ऊंटों पर बुरा असर पड़ा। जब इस महामारी का दौर शुरू हो रहा था तब राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में चैत्र मेले की शुरुआत हो रही थी। इस मेले में बड़ी संख्या में ऊंटपालक भी पहुंचते हैं और जानवरों की खरीद-फरोख्त करते हैं। सरकार ने कोरोना की वजह से मेला बीच में ही बन्द कर दिया, लॉकडाउन हो गया और मेला बिखर गया। मीडिया रिपोर्ट्स है कि कई पशुपालको के सामने अपने ऊंटों को वहीं लावारिस छोड़कर लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था, क्योंकि उनके लिए चारे का इंतज़ाम करना भी मुश्किल था।
अब आते हैं हाथी पर। हाथी बसपा का चुनाव चिह्न है और हाथी छाप पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे छह लोग हाथी का साथ छोड़कर हाथ के साथी बन गए। बसपा ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया, केकिन कांग्रेस ने पूरी बसपा अपने में समाहित कर ली। इसे लेकर राजस्थान हाइकोर्ट में लड़ाई जारी है। इससे पहले 2008 नें भी कांग्रेस ने राजस्थान में सरकार बनाने के लिए बसपा के छह विधायकों को अपने दल में मर्ज कर लिया था।
राजस्थान बीजेपी को देखिए। वहां वसुंधरा राजे शीर्ष नेतृत्व को खटकती हैं, लेकिन उन्हें साइड करने की हिम्मत भी नहीं कर रहा। बताया जाता है कि वसुंधरा के साथ बीजेपी के 45 विधायक हैं, जो सचिन पायलट को समर्थन देने पर मुश्किल कर सकते हैं। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को राज्य में खड़ा करने की कोशिश हो रही है, लेकिन उन पर कई आरोप लग चुके हैं और जांच भी चल रही है। अगर गजेंद्र सिंह शेखावत कहीं उलझते हैं तो राज्य बीजेपी पर वसुंधरा राजे की पकड़ वैसे ही मजबूत रहेगी। माना जा रहा है कि सचिन पायलट प्रकरण में कांग्रेस भले कमज़ोर हुई हो, बीजपी सवालों के घेरे में आई ही, लेकिन वसुंधरा राजे राज्य की राजनीति में मजबूत हुई हैं। जानने वाले बताते हैं कि अगर वसुधरा कहीं उलझीं तो फिर सांसद ओम माथुर को मौका मिल सकता है।
राजस्थान के मेले में बसपा का खेमा दो बार उजड़ चुका है। उसके हाथी (विधायक) दूसरे खेमे में जा चुके हैं। दूसरी बार भी ऐसा हुआ है और पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस के खिलाफ वोट करने के लिए अपने उन विधायकों को व्हिप जारी कर दिया, जो कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। लड़ाई यहीं पर राजस्थान से निकलकर यूपी पहुंच गई। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बिना नाम लिए बसपा को भाजपा का अघोषित प्रवक्ता बता दिया। मायावती और प्रियंका गांधी के मन पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भी नहीं मिले थे, यद्यपि बसपा-कांग्रेस और सपा, ये तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ रहे थे। उस समय प्रियंका गांधी पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी थीं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। इसके बावजूद प्रियंका मेरठ (वेस्टर्न यूपी) के अस्पताल में भर्ती भीम आर्मी के चंद्रशेखर से मिलने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के साथ गई थीं। इस मुलाकात के बाद महागठबंधन दिखावे का ही रह गया था। बसपा प्रमुख मायावती के बारे में कहा जाता है कि वह नहीं चाहतीं कि कोई और दलित नेता उनके सामने उभरे और प्रियंका गांधी ने यही करने की कोशिश की थी।
देखने में तो राजस्थान की लड़ाई राज्य की लग रही है, लेकिन आब इस लड़ाई का ऊंट यूपी तक पहुंचता दिख रहा है। वैसे इस लड़ाई का एक चेहरा सचिन पायलट यूपी के ही हैं और राज्य में उनका विकल्प बनने को आतुर जोगिंदर अवाना भी। लड़ाई राजस्थान की है, लेकिन पहले ही दिन से इन दोनों के गृह जनपद नोएडा में नारेबाजी, प्रदर्शन और पुतला दहन के कार्यक्रम चल रहे हैं। जोगिंदर भले कांग्रेस में सचिन का विकल्प बनने के लिए जोर लगा रहे हों, लेकिन उनके सामने अभी गहलोत के खेल मंत्री अशोक चांदना भी तो हैं, जो इसी समाज से आते हैं।
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