राजस्थान के रण में छाते रहे हैं 'बाहरी'


राजस्थान की राजनीति में बाहर से गए लोग जब-तब जलवा दिखाते रहे हैं। सचिन पायलट प्रकरण भी इसी का उदाहरण है। सचिन पायलट का परिवार मूल रूप से ग्रेटर नोएडा, यूपी के वैदपुरा गांव का रहने वाला है। इनके पिता यहां से राजस्थान गए और वहां की राजनीति में खुद को स्थापित किया। विधानसभा के पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जब सरकार में वापसी की तो उसका काफी श्रेय सचिन पायलट के राजनीतिक प्रबंधन को दिया गया। उसके अगले साल लोकसभा चुनाव हुए और सीएम अशोक गहलोत ( जो वहां के मूल निवासी हैं) के बेटे जोधपुर सीट से चुनाव हार गए। हालिया राजनीतिक उठापटक में अशोक गहलोत जिस नेता के सहारे गुर्जर वोटों के प्रति आश्वस्त होने की कोशिश कर रहे हैं, वह जोगिंदर अवाना भी नोएडा, यूपी के हैं। वह नोएडा की राजनीति में सक्रिय रहे और फिर राजस्थान की नदबई सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीत गए। कहा जाता है कि बाद में जब बसपा के विधायकों को कांग्रेस ने अपने में समाहित कर लिया तो उसमे जोगिंदर अवाना की बड़ी भूमिका थी।


इससे पहले 2014 में बीजेपी ने लोकसभा की सभी 25 सीटें जीती थी। उसका श्रेय बीजेपी की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे को भी जाता है जो मध्य प्रदेश की हैं, हालांकि शादी उनकी राजस्थान में हुई है। हाल के राजनीतिक घटनाक्रम में भी वसुंधरा राजे की अहमियत दिखी और यहां तक कहा गया कि उन्हीं की वजह से अशोक गहलोत की कुर्सी तात्कालिक तौर पर बच गई।

इससे पहले मध्य प्रदेश के गुना में पैदा हुए शिवचरण माथुर को याद करिए। वह भी राजस्थान के दो बार मुख्यमंत्री बने थे। दो दिन पहले मानसिंह एनकाउंटर अदालत से फर्जी साबित होने के बाद शिवचरण माथुर भले ही उस केस को लेकर चर्चा में आए हों लेकिन 1984 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने राज्य की सभी 25 सीटें जीती थीं, तब माथुर ही राजस्थान के सीएम थे। यह अलग बात है कि उस चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर भी काम कर रही थी।

1972 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में दिग्गज भैरो सिंह शेखावत चुनाव हार गए थे। उन्हें कांग्रेस के युवा नेता जनार्दन सिंह गहलोत ने हराया था। भैरो सिंह शेखावत उस वक्त तक विधानसभा के कई चुनाव जीत चुके थे। उनकी गहलोत से हुई हार में दूसरे राज्यों से जाकर बसे वोटरों की बड़ी भूमिका बताई जाती है।

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