वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति
तात्पर्य
यह है कि राजसत्ता धर्म और विचारधारा जब एकल या सामूहिक हत्या या कानून विरोधी एक्शन करते हैं तो उसे जायज़ भी ठहरा देते हैं, सबूत भी पेश कर देते हैं।
कानपुर के बिकरु गांव में पिछले दिनों रेड करने गई पुलिस पर फायरिंग हुई। आठ पुलिस वाले मारे गए। यह दुखद घटना थी। पुलिस वालों की ऐसी हत्या से हर किसी के लिए तकलीफदेह थी। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? विकास दुबे के घर पर बुलडोजर चलवा दिया गया। ऐसा किसके आदेश पर हुआ? किसी ने न पूछा न किसी ने बताया। रेड डालने गई उस पुलिस टीम में विनय तिवारी जैसा इंस्पेक्टर भी था, जो मुखबिरी के आरोप में सस्पेंड हो चुका है। इस हमले में मारे गए सीओ देवेंद्र मिश्रा से उसकी अनबन जगजाहिर है। तो पड़ताल में इसे क्यों नहीं शामिल किया गया कि पुलिस वालों पर गोलियां चली किधर से थीं? इसके विपरीत पूरा घर तोड़कर सबूत ही नष्ट कर दिया गया।
उज्जैन में विकास ने अपनी मौजूदगी के पहले तो सारे सबूत जुटाए, अपने नाम से महाकाल के दर्शन की पर्ची कटवाई और पकड़े जाने के बाद चिल्लाकर बोला- मैं विकास दुबे हूँ, कानपुर वाला। इतने सबूत क्या वह मरने के लिए जुटा रहा था? विकास के एनकाउंटर से पहले उसके एक साथी प्रभात मिश्रा को, जो फरीदाबाद से गिरफ्तार हुए था, पुलिस ने ऐसे ही मुठभेड़ में मारा था। तब पुलिस ने कहा था कि गाड़ी पंक्चर हो गई थी। उसी दौरान प्रभात ने पुलिसवाले से उसका तमंचा छीन लिया और भागने लगा। पकड़ने की कोशिश में वह मारा गया। क्या उसका हश्र देखने के बाद विकास पुलिस के हथियार छीनकर भागने की मूर्खता करता?
क्या यूपी एसटीएफ में ऐसे गुड्डे-गुड़िया रखे गए हैं जो अपने असलहे की भी सुरक्षा नहीं कर सकते? विकास इतना दुर्दांत अपराधी था तो उसे हथकड़ी क्यों नहीं लगाई गई थी? पुलिस को फॉलो कर रहे मीडिया कर्मियों को इस मुठभेड़ से दो किमी पहले रोके जाने की जो रिपोर्ट टीवी चैनलों पर आ रही है, उसकी सच्चाई क्या है?
विकास दुबे के नाबालिग बच्चे को पुलिस ने कस्टडी में लिया और उसका तालिबानी अंदाज़ में फ़ोटो भी वायरल कर दिया।
उज्जैन मंदिर में एक रात पहले वहां के डीएम-एसपी जाते हैं और अगली सुबह विकास पहुंच जाता है। वायरल वीडियो में वह मंदिर के गार्ड के साथ जाते दिखता है। अगर उसे भागना ही होता तो वह निहत्थे गार्ड के चंगुल से नहीं भाग जाता?
जहां सवाल यह उठने थे कि एसटीएफ के गठन का मकसद पूरा हुआ या नहीं? मुखबिरी के नाम पर जाने वाली बड़ी रकम का क्या इस्तेमाल हुआ? ये सवाल नेप थ्य में चले गए हैं। जिस सुधीर सिंह को दो दिन पहले अनंत देव तिवारी को हटाकर एसटीएफ में भेजा गया है, उन पर ट्रांसफर पोस्टिंग वाले विवाद की विभागीय जांच चल ही रही है। गंभीर बात यह है कि यह आरोप एक अन्य आईपीएस और गौतम बुद्ध नगर के तत्कालीन एसएसपी रहे वैभव कृष्ण ने लगाए हैं।
ऑन रिकॉर्ड क्या है, पता नहीं। लेकिन कहा जाता है कि एक पूर्व मुख्यमंत्री की निगाह में चढ़ने पर श्रीप्रकाश शुक्ला का असली वाला एनकाउंटर हुआ था और एक पूर्व मुख्यमंत्री को बड़ा भाई बताने के दो दिनों के अंदर निर्भय गुर्जर ढेर कर दिया गया था।
निहितार्थ
यूपी एसटीएफ ने एक ऐसे आरोपी को हीरो बना दिया जो अपराधी था और लोग जिससे नफरत करते थे। अपराधी आमतौर पर अपनी जाति का तो हीरो होता है लेकिन अब दूसरी जातियों में भी पुलिस के विरोध में आवाज उठ रही है। कोरोना काल में पुलिस ने अपनी जो इमेज बनाई थी, वह ध्वस्त हो सकती है।
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