क्रोएशिया : आप तो ऐसे न थे

नायकत्व की परिभाषा है संघर्ष करते हुए परास्त हो जाना या मर जाना। आप परास्त तो हुए लेकिन आपका वह संघर्ष नहीं दिखा जो इस टूर्नामेंट में अभी तक दिखा था। आप समर्पण भाव से खेल रहे थे। आपका दूसरा गोल भले ही आपके काम का रहा हो लेकिन किसी क्लास का नहीं था। आपने आसानी से फ्रांस के सिर मोर मुकुट सजा दिया।
नायक संघर्ष करते हुए किस तरह परास्त होता है यह देखा था हमने 1987 में। भारत और पाकिस्तान में आयोजित विश्व कप क्रिकेट में न्यूजीलैंड और जिंबाब्वे का मैच हो रहा था। न्यूजीलैंड की टीम ने 242 रन का स्कोर किया था। सामने कमजोर जिंबाब्वे की टीम थी। उस दौर में 50 ओवर में यह बड़ा स्कोर माना जाता था। जवाब में खेलने उतरी जिंबाब्वे की टीम के कप्तान डेव हटन ने जीत के लिए संघर्ष किया था। उन्होंने 137 गेंद में 142 रन बनाए थे जिसमें 6 छक्के और 13 चौके थे। इतना ही नहीं, दुनिया ने पहली बार रिवर्स स्विप का नजारा भी हटन के बैट से ही देखा था। ठीक है कि जिंबाब्वे की टीम हार गई थी लेकिन नायकत्व की परिषाभा को हटन ने दुनिया के सामने पेश किया था।
हीरो की दूसरी परिभाषा सचिन तेंदुलकर ने दुनिया को 1989 में दिखाई थी। जब उन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध असंभव से लक्ष्य को करीब-करीब पा लिया था। उन्होंने पाकिस्तान के चर्चित स्पिनर अब्दुल कादिर के एक ओवर में 27 रन बनाए थे, हालांकि टीम इंडिया हार गई थी।

आपने रशिया को हराया, इंगलैंड को हराया लेकिन फाइनल में बिना संघर्ष किए हार गए, इसका अफसोस रहेगा। हम तो इंतज़ार कर रहे थे कि 1950 में जिस तरह उरुग्वे ने ब्राजील को हराया, आप लोग उसी तरह का उलटफेर करेंगे। आज आपमें न तो तेज़ी थी न ही तुर्शी, न जीतने वाला तेवर था और न ही विजेताओं वाला तरीका।

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