आप के वादे पे ऐतबार किया
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दिल्ली विधानसभा चुनाव की गिनती शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही कांग्रेस के चुनावी दफ्तर साफ किए जाने लगे थे |
पेट और नाक की लड़ाई का फॉर्म्युला
चुनाव
में यह फॉर्म्युला खामोशी से काम करता है। जब कोई अपने पैतृक स्थान पर
होता है और सामान्य जीवन जी रहा है तो उसके सामने चुनाव में नाक की लड़ाई
होती है। दिल्ली जैसे शहर में जहां हर साल लाखों लोग नए आते हैं, वे अपनी
नाक घर पर छोड़कर पेट पालने के लिए आते हैं। फर्ज करिये कोई आदमी यहां 10
हजार रुपये महीना पा रहा है और उसका बिजली या पानी का बिल 300 रुपये औसत आ
रहा है। किसी महीने अगर यह दो हजार आ गया तो वह कहां से देगा? बिजली या जल
बोर्ड के दफ्तर में जाने पर कहा जाता है कि पहले बिल तो भरो, बाद में
एडजस्ट कर देंगे। वह आदमी 10 हजार में दो हजार कहां से एडजस्ट करेगा, यह
कोई नहीं सोचता। यह है पेट की लड़ाई। चुनाव से ऐन पहले 200 यूनिट तक बिजली
फ्री कर दी गई, 20 हजार लीटर तक पानी तो फ्री था ही। अब जिस आदमी के खर्चे
में से हर महीने 700 रुपये बच रहे हों और यहां वह किसी जातीय या क्षेत्रीय
पहचान वाले समूह का हिस्सा नही है तो जाहिर है कि पेट की लड़ाई उसके लिए
महत्वपूर्ण होगी। इस बात को बीजेपी भी बखूबी समझती थी और वह दो रुपये किलो
आटा और फ्री साइकल व स्कूटी का वादा लेकर आई। आप चूंकि सरकार में थी,
इसलिए उसके वादे पर अधिक लोगों ने ऐतबार किया। यहीं जब नाक की लड़ाई में
बदल जाती है तब लालू और मायावती जैसे नेता अपने दल को जिता ले जाते हैं।
शाहीन बाग
शाहीन
बाग दिल्ली चुनाव में मुद्दा था। जिस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही
हो, वह मुद्दा न बने, ऐसा नहीं हो सकता। इस आंदोलन के दो इफेक्ट हैं। एक तो
उधर से गुजरने वाले लाखों लोग परेशान हो रहे हैं दूसरा इससे भारत जो
डेमोक्रेसी इंडेक्स में इस बार 10 अंक गिर गया है, उसे सुधारने में मदद
मिलेगी। देश में जब भी विपक्ष कमजोर होता है, डेमोक्रेसी इंडेक्स गिरता है।
2014 में भारत सबसे बेहतर हालात में था, क्योंकि उस दौर में यूपीए सरकार
के खिलाफ लगातार धरने-प्रदर्शन हो रहे थे। केजरीवाल ने इस आंदोलन से दूरी
बनाई। सीएए के विरोध में चल रहे इस धरने के साथ ही कांग्रेस पूरे देश में
सीएए का विरोध करने वालों के साथ खड़ी हुई, लेकिन उसे इस जमात का भी वोट
नहीं मिला। बीजेपी इसके विरोध में खड़ी थी, लेकिन उसे इसका भी मनवांछित फल
नहीं मिला।
सॉफ्ट हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मसले
यह
शाहीन बाग के चर्चा में आने का ही असर था कि आम आदमी पार्टी को अपने
मैनिफेस्टो में यह रखना पड़ा कि वह हुकूमत में आने पर स्कूलों में देशभक्ति
का पाठ पढ़ाएगी। हनुमान चालीसा का प्रसंग भले ही यूं ही आ गया हो लेकिन
उसके बाद कनॉट प्लेस वाले हनुमान मंदिर में केजरीवाल का जाना सोची-समझी
रणनीति थी। हालांकि गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस ने भी ऐसा किया था और यह
कहा गया था कि राहुल गांधी जनेऊ पहनते हैं, लेकिन उसका फायदा कांग्रेस को
नहीं मिला, आम आदमी पार्टी को मिल गया। हनुमान मंदिर से आने के बाद
केजरीवाल ने यह भी कहा कि भगवान ने उनसे कहा है कि सब अच्छा होगा। साथ ही
वोट देने जाने से पहले माता-पिता का आशीर्वाद लेने को भी प्रचारित करना एक
संस्कारित शख्स की छवि गढ़ने जैसा था।
बीजेपी की असफलता
बीजेपी
दिल्ली नगर निगम के चुनाव लगातार जीत रही है लेकिन जब विधानसभा चुनाव की
बात आती है तो वह 1998 से हार रही है। इस चुनाव में कोई उसके दावे पर यकीन
नहीं कर रहा। लोकसभा की सभी सीटें भी उसके पास हैं। ऐसा क्यों हो रहा है,
इससे पहले लोग कांग्रेस पर यकीन करते थे। भाजपा का पूरा समीकरण बदल गया
लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में हालात नहीं बदले तो उसे सोचना होगा।
बीजेपी के पास कोई सीएम फेस नहीं था। दिल्ली में बीजेपी अपने नेताओं को
बुजुर्ग होने से पहले मौका नहीं देती और नतीजे भोगती रहती है। वीके
मल्होत्रा को तब सीएम फेस बनाया गया जब उनकी उम्र बीत चुकी थी। इस चक्कर
में जगदीश मुखी बुढ़ा गए। फिर 2008 में उन्हें लाया गया। उस वक्त यदि किरण
बेदी को लाया जाता तो यह सीन बदल सकता था। किरण बेदी को उसके बाद लाया
गया। दूसरी बात यह कि बीजेपी का कौन सा नेता जनता से सीधा संवाद करता है,
यह पता नहीं चलता। वे कांग्रेसियों की तरह केंद्रीय नेतृत्व के भरोसे बैठे
रहना सीख रहे हैं और लोगों से सीधे संवाद से बच रहे हैं। आरएसएस भी इस
चुनाव में सक्रिय नहीं दिखा। पार्टी ने कश्मीर के मुद्दे पर हरियाणा का
चुनाव लड़ा था और फंस गई थी। इससे भी उसने सीख नहीं ली और हिन्दू-मुस्लिम का
घिसा-पिटा फार्मूला लेकर आई और पिट गई।
कांग्रेस क्या करेगी?
कांग्रेस
को यह याद रखना होगा कि दिल्ली की सत्ता में आप उसे हराकर आई है, बीजेपी
को नहीं। इसलिए यह बीजेपी से अधिक कांग्रेस की साख का सवाल होना चाहिए।
लेकिन कांग्रेस की हालत यह है कि वह दिवंगत को चुकी शीला दीक्षित के फोटो
लगाकर प्रचार करती रही। जिस दिल्ली में कांग्रेस ने लगातार तीन बार सरकार बनाकर रेकॉर्ड कायम किया ता, उसका लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव में खाता तो नहीं ही खुला, 2015 के मुकाबले उसके
वोट भी करीब 5 फीसदी कम हो गए और बीजेपी के इतने ही बढ़ गए। अगर यह
शिफ्टिंग कांग्रेस से बीजेपी में हुई है तो यह कांग्रेस के लिए और चिंता की
बात होगी। अब तो मजाक में यह कहा जाने लगा है कि कांग्रेस को राज्यों में
अपनी फ्रेंचाइजी दे देनी चाहिए। जैसे-दिल्ली में केजरीवाल को या महाराष्ट्र में
शरद पवार को।
आप भी देखे
जिस
मनीष सिसोदिया और आतिशी के एजुकेशन मॉडल का प्रचार कर आप ने बम्पर जीत
हासिल की, उसके कर्ता-धर्ता मनीष सिसोदिया और आतिशी ने किसी तरह जीत हासिल
की।
रिंकिया के पापा
यह
एक भोजपुरी गीत है और मनोज तिवारी पर निशाना साधने के नाम पर गीत का अपमान
नहीं होना चाहिए। भोजपुरी भाषी बहुत भावुक होते हैं और इसे उन्होंने अपनी
बोली के अपमान के तौर पर ले लिया तो हालात बिगड़ सकते हैं। बिहारियों के
बोलने के लहजे का जिस तरह मज़ाक उड़ाया जाता है, यह आक्रमण भी कहीं उसी दिशा
में न बढ़ जाये। बिहारी में सिर्फ बिहार के लोग भी शामिल नहीं हैं, इनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग भी हैं।
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