जब बधार (खेत) में सरसों और तीसी नई उमंग से गलबहियां करने लगती हैं, जब नीम और पीपल में नए पत्ते आ जाते हैं, जब आम नया मौर पहन लेता है, जब महुए की खुशबू नई मादकता फैलाने लगती है, जब गेहूं और कान की बालियां नए अंदाज में मचलने लगती हैं, जब चना मानों नए हिप्पी कट हेयर स्टाइल में बिंदास झूमने लगता है, जब अनाज के रूप में घर में नई सुख-समृद्धि आने लगती है और परदेसी प्रियतम की याद नए सिरे से सताने लगती है, तब शब्द वेदना में डूबकर फूट पड़ते हैं चैता के रूप में, 'ए रामा पिया परदेसवा' फणीश्वर नाथ रेणु ने अपने चर्चित उपन्यास 'मैला आंचल' में एक चैती का जिक्र किया है, सुतल पिया के जगावे हो रामा तोर मीठी बोलिया'। इसका मतलब यह कि नायक सो रहा है। सुबह हो गई है और कोयल की मीठी तान सुनाई दे रही है। नायिका कोयल पर लानत भेजती है कि उस कूक से उसके पति की नींद खुल जाएगी। फिर? फिर वह उससे अलग होकर अनाज काटने खेतों में चला जाएगा। नायिका यही नहीं चाहती। कुछ लोग यह सवाल उठा सकते हैं कि मुंह अंधेरे खेतों में जाने की क्या जरूरत है? थोड़ा रुककर भी तो जा सकता है। जो लोग दरअसल खेती के बारे में...
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