जिंदगी को दूर से पहचानने वाले फिराक को नमन

Photo Credit - Saurabh Sinha शाम भी थी धुआं-धुआं, हुस्न भी था उदास-उदास, दिल को कई कहानियां याद सी आकर रह गईं। :-फिराक गोरखपुरी कई कहानियां हैं फिराक की। नाम रघुपति सहाय, चर्चित हुए फिराक के नाम से। इंग्लिश के प्रोफेसर थे और उर्दू-फ़ारसी में शायरी करते थे। एक किस्सा यूं चर्चित है कि कहीं मुशायरे का आयोजन था। फिराक साहब को ट्रेन पकड़नी थी, लिहाजा उन्होंने आयोजकों से इल्तिज़ा की कि उन्हें जल्दी फारिग कर दिया जाए। अब उन्हें ना कहता भी कौन? फिराक साहब ने अपनी रचनाएं सुनाई लेकिन उनके बाद भी कोई मंच पर हो, यह बात वे नहीं पचा पा रहे थे। असल में मंच की एक परम्परा होती है कि वरिष्ठ कवि या शायर अंत में ही श्रोताओं से रूबरू होता है। सो, अपनी रचनाओं को सुनाने के तत्काल बाद उन्होंने घोषणा कर दी कि आज का मुशायरा खत्म होता है। जो सज्जन मंच का संचालन कर रहे थे, वे सिर पकड़ कर बैठ गए, क्योंकि श्रोताओं को भी पता था कि फिराक की मौजूदगी में उनके बाद कोई नहीं पढ़ता है। फ़ोटो गोरखपुर के दाउदपुर काली मंदिर चौराहे (फििराक चौराहा भी कहते हैं) पर लगी फिराक की प्रतिमा की है। मई के आखिरी दिनों म...