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Showing posts from August, 2020

जिंदगी को दूर से पहचानने वाले फिराक को नमन

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  Photo Credit - Saurabh Sinha शाम भी थी धुआं-धुआं, हुस्न भी था उदास-उदास,  दिल को कई कहानियां याद सी आकर रह गईं। :-फिराक गोरखपुरी कई कहानियां हैं फिराक की। नाम रघुपति सहाय, चर्चित हुए फिराक के नाम से। इंग्लिश के प्रोफेसर थे और उर्दू-फ़ारसी में शायरी करते थे।  एक किस्सा यूं चर्चित है कि कहीं मुशायरे का आयोजन था। फिराक साहब को ट्रेन पकड़नी थी, लिहाजा उन्होंने आयोजकों से इल्तिज़ा की कि उन्हें जल्दी फारिग कर दिया जाए। अब उन्हें ना कहता भी कौन? फिराक साहब ने अपनी रचनाएं सुनाई लेकिन उनके बाद भी कोई मंच पर हो, यह बात वे नहीं पचा पा रहे थे। असल में मंच की एक परम्परा होती है कि वरिष्ठ कवि या शायर अंत में ही श्रोताओं से रूबरू होता है। सो, अपनी रचनाओं को सुनाने के तत्काल बाद उन्होंने घोषणा कर दी कि आज का मुशायरा खत्म होता है। जो सज्जन मंच का संचालन कर रहे थे, वे सिर पकड़ कर बैठ गए, क्योंकि श्रोताओं को भी पता था कि फिराक की मौजूदगी में उनके बाद कोई नहीं पढ़ता है।  फ़ोटो गोरखपुर के दाउदपुर काली मंदिर चौराहे (फििराक चौराहा भी कहते हैं) पर लगी फिराक की प्रतिमा की है। मई के आखिरी दिनों म...

कहीं सफाई का पिंडदान, कहीं गंगालाभ

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कल यानी 20 अगस्त 2020 के अंक में ही तपोभूमि बक्सर का यह फोटो दैनिक भास्कर में आठ कालम छपा था। यह फोटो हालांकि गंगा का जलस्तर बढ़ने वाले आंकड़े के साथ था, लेकिन इस फ़ोटो को देखकर शहर की एक शानदार छवि बनती है।  कल ही दोपहर में स्वच्छ सर्वेक्षण के नतीजे आये और पता चला कि 10 लाख तक की आबादी वाले शहरों की कैटिगरी में बक्सर नीचे से दूसरे नम्बर पर है। यानी बक्सर से गन्दा सिर्फ एक और शहर है इस कैटिगरी में। इतना ही नहीं, गंगा किनारे वाले शहरों की कैटिगरी में भी बक्सर लिस्ट में नीचे से दूसरे नम्बर पर है। बक्सर से भी जो गंदा शहर है, वह है बिहार का गया। ये दोनों शहर हिंदू आस्था वाले शहर हैं। एक गंगा किनारे है दूसरा फल्गू किनारे। बक्सर श्मशान घाट पर उनकी चिता जले और गया में वे अपने पूर्वजों का पिंडदान करें, यह आकांक्षा अधिकतर हिंदुओं की होती है। गया में ही बोधगया है, जहां महात्मा बुद्ध को ज्ञान मिला था। इस लिहाज से यह अंतरराष्ट्रीय महत्व का शहर हो गया है। लेकिन वहां के स्थानीय निकाय के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को किस वृक्ष के नीचे सफाई का ज्ञान मिलेगा, इसका जवाब अब आना चाहिए। बक्सर रामकथा से ज...

SSR का फरीदाबाद कनेक्शन

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फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच अब सीबीआई के पास है। इस केस में मुंबई पुलिस की किरकिरी हो रही है, कई सवाल उठ रहे हैं। एक अजीब संयोग यह है कि सुशांत सिंह राजपूत का धीरे-धीरे फरीदाबाद कनेक्शन बन गया है। सुशांत सिंह राजपूत के जीजा ओपी सिंह आईपीएस अधिकारी हैं और फिलहाल फरीदाबाद में पुलिस कमिश्नर के पद पर हैं। सुशांत के पिता भी आज कर उन्हीं के पास रह रहे हैं। बीच में यह भी चर्चा आई कि सुशांत का डॉगी फज भी उनके साथ फरीदाबाद के पुलिस कमिश्नर के आवास पर ही है। 19 अगस्त को सुशांत केस जब सीबीआई को सौंपने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया, तब उनके पिता केके सिंह ने फरीदाबाद से ही एक मैसेज जारी किया था। दूसरी ओर मुंबई पुलिस के कमिश्नर परमबीर सिंह हैं। परमबीर सिंह मूलरूप से फरीदाबाद के पावटा गांव के रहने वाले हैं और फरवरी में मुंबई पुलिस के चीफ बने थे। परमबीर सिंह तेज-तर्रार अफसर माने जाते हैं लेकिन सुशांत सिंह राजपूत केस में मुंबई पुलिस की विश्वसनीयता पर मीडिया में सवाल उठ रहे हैं। इस मामले में परमबीर सिंह ने मीडिया को बताया था कि पहले सुशांत के परिवार ने किसी पर कोई शक नहीं जताया था।

छूट रहे हैं परिंदों से पेड़

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परिंदों के नाम पर चलने वाले एनसीओ और सरकारी नुमाइंदे ऐसे फ्लैट पर लहालोट हो रहे हैं महलों में गरुण न होता है,  कंचन पर कभी न सोता है बसता वह कहीं पहाड़ों में,  शैलों की फटी दरारों में। -रश्मिरथी क्या आपने परिंदों का घोंसला देखा है? उसकी मजबूत बनावट को महसूस किया है? क्या आपको हर पक्षी में जन्म से मौजूद इंजीनियर, हेल्पर, लेबरर दिखा है? प्रसव से पहले घोंसले बनाने की दूरदर्शिता दिखी है? उनके लिवइन रिलेशनशिप में ईमानदारी और समर्पण महसूस किया है?   अगर आपने यह सब महसूस किया है और यदि उनके लिए कुछ करना चाहते हैं तो उनके प्राकृतिक आश्रय स्थल यानी पेड़ों को घना होने दीजिए। मनुष्यों की तरह उन्हें एलआईजी, एमआईजी, एचआईजी और विला में क्यों बांटना चाहते हैं। क्या आप ये चाहते हैं कि कोयल अपने अंडे छोड़ने के लिए कौए के फ्लैट का पता पूछती रहे और फिर अपने अंडों के साथ उसका डोरबेल बजाए? तब कौआ क्या कोयल को अपने फ्लैट में एंट्री करने देगा? उनके बीच तो शुरू से ही सोशल डिस्टेंसिंग होती है। बाज़ के बच्चे आंगन में नहीं फुदकते और गौरैया ऊंची उड़ान नहीं भरती। दोनों की अपनी फितरत होती है। मांसाहारी कौव...

बनारस की दालमंडी : अब यहां महफिलों के साजिंदे नहीं, दुकानों के कारिंदे दिखते हैं

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बनारस का चौक थाना जो दालमंडी तिराहे पर स्थित है। वैसे शहर कोतवाल तो काल भैरव हैं।  यह है बनारस का चौक थाना। मैदागिन से विश्वनाथ मंदिर या दशाश्वमेध घाट की ओर जाने वाले रास्ते पर पड़ता है। इसके अगले मोड़ पर बन रहा है विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर और इसके ठीक बगल में है दालमंडी, जो अपना  पुराना रुतबा और पहचान दोनों खो चुकी है। 'गुंडा' कहानी में जयशंकर प्रसाद लिखते हैं कि जब कभी नन्हकू सिंह चौक में आता तो काशी की रंगीली वेश्याएं मुस्कुराकर उसका स्वागत करतीं। वह ऊपर कोठे पर नही जाता, बल्कि वहीं मन्नू तमोली की दुकान पर बैठे-बैठे उनका गाना सुनता और नाल पर से जीते रुपये उछालता। आमतौर पर चौराहे को चौक भी कहा जाता है। यहां दरअसल चौक नहीं है, लेकिन इसका नाम चौक है। हुआ यह होगा कि दालमंडी में कोठों के आबाद होने के बाद जब वंशी का जुआघर (पढ़ें जयशंकर प्रसाद की कहानी गुंडा) भी यहाँ चलने लगा होगा तब कानून व्यवस्था को संभालने के लिए पुलिस चौकी बनी होगी। बाद में जब वह थाना बना होगा तो जाहिर है कि चौकी नाम हटना था, तो वह थाना चौक हो गया होगा।  अब बात दालमंडी की। "काशी का अस्सी' उपन्यास में काशीन...

पायलट तो लैंड कर गए, भाजपा को क्या मिला?

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राजस्थान मे महीने भर तक चले सियासी उठापटक के बाद यह सवाल उठा कि सचिन पायलट को इससे क्या मिला? उनकी उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों की कुर्सी जाती रही। विधानसभा में बैक बेंच हो गए। उनके सिपहसालार भी प्रभावहीन हो गए। लेकिन एक दूसरा बड़ा सवाल जो अब उठना शुरू हुआ है वह यह कि भाजपा को कांग्रेस के इस झगड़े से क्या राजनीतिक लाभ मिला? लाभ के बजाय उसकी प्रदेश में गुटबाजी सामने आ गई। पायलट की शिकायत पर तो प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय हटा दिए गए लेकिन भाजपा जो संगठन होने का दावा करता है, में व्यक्ति की ताकत दिखी। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व या यों कहें कि गांधी परिवार ने मामले को संभाल लिया, तीन सदस्यीय कमिटी भी बना दी और प्रदेश प्रभारी को वहां से रुखसत भी कर दिया, लेकिन बीजेपी तो खंड-खंड होती दिखी। एक खंड मैडम का और दूसरा शेखावत, कटारिया और राठौड़ का। वसुंधरा राजे बीजेपी की सीनियर लीडर हैं और राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। पूरे प्रकरण के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी। राजनीतिक हलकों में चर्चा रही कि उनका मौन समर्थन अशोक गहलोत को हासिल है। अशोक गहलोत उनकी राजनीतिक ताकत स...

जयपुर ने गाया मेघ मल्हार

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जयपुर जब बसा था तभी इसकी मुख्य सड़कों की चौड़ाई करीब 100 फीट रखी गई थी। कहीं पांच-दस फीट कम और पांच-सात फीट अधिक। पुराने जयपुर में दुकानों के आगे बने बरामदों से भी आगे रोड पर एक लेन पार्किंग होती है और उसके बाद ट्रैफिक चलता रहता है। दिल्ली-एनसीआर से जाने वाले वहां सामान्य ट्रैफिक देखकर काफी राहत महसूस करते हैं वहीं जयपुर वाले दिल्ली-एनसीआर में ड्राइव करने से कतराते हैं। पिंक सिटी की सड़कें और बरामदे शुक्रवार को एकाकार हो गए। दोनों के ऊपर समान हाइट पर बारिश का पानी नदी का दृश्य उपस्थित कर रहा था और जो लोग गाड़ी हटाने से चूक गए वे जलमहल बन गए। जलमहल जयपुुर का एक टूरिस्ट स्पॉट भी है। चारों तरफ पानी के बीच बनी इमारत। राजस्थान की गर्मी और राजा-रानी की इससे राहत पाने की कोशिश है यह जलमहल। उसी दौरान जयपुर विधानसभा में सरकार विश्वास प्रस्ताव पेश कर रही थी। वहां बाहर मेघ बरस रहे थे और अंदर विधायक बरस रहे थे, गरज रहे थे और तड़प रहे थे। सत्ता पक्ष विपक्ष को लक्ष्य कर मेघ गर्जन कर रहा था तो विपक्ष उसमें छेद करने की कोशिश में था। विधायकों की खरीदारी में नोटों की बारिश करने के भी आरोप लगे। पायलट...

राहत पर आफत

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शायर  राहत इंदौरी मौत के बाद से चर्चा में हैं। उनके कुछ शेर पर जितनी बहस अब हो रही है, उतनी शायद उनके जीते जी भी नहीं हुई होगी। लगातार विवाद बढ़ता जा रहा है। इन्हीं में से एक है घुटनों वाला। राहत के चाहने वाले कह रहे हैं कि शायर का समग्रता में मूल्यांकन होना चाहिए, किसी एक रचना से नहीं। हालांकि यह भी सच है कि कभी-कभी कोई रचना कवि या शायर की पहचान बन जाती है। गुलेरी की 'उसने कहा था' ऐसी ही रचना है। तुलसीदास ने कई रचनाएं की, लेकिन अधिकतर लोग रामचरित मानस को ही जानते हैं। बच्चन कभी 'मधुशाला' से मुक्त नहीं हो पाए और नीरज 'कारवां गुजर गया' से।  कुछ साल पहले निदा फ़ाज़ली की भी मौत हुई थी। उस निदा की जिन्होंने  'अंदर मूरत पर चढ़े घी-पूरी मिष्ठान्न बाहर दरवाजे खड़ा ईश्वर मांगे दान।'  लेकिन विरोध नहीं हुआ क्योंकि इसी के साथ निदा यह भी कहते हैं कि  'बच्चा बोला देखकर मस्जिद आलीशान अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान।' कबीर 'मन ना रंगाए, रँगाये जोगी कपड़ा' के साथ-साथ 'क्या बहरा हुआ खुदाय' का सवाल भी उठाते थे। उनकी मौत के बाद हिन्दू-मुसलमान दोनों उन्हें...

राजनिति में भंवर या भंवर की राजनीति

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 इंदिरा गांधी नहर परियोजना आने से राजस्थान के कई सीमावर्ती इलाकों में पीने के पानी की समस्या का समाधान हुआ था। भंवरलाल शर्मा राजस्थान में इंदिरा गांधी नहर परियोजना के ही मंत्री बनाये गए थे। जानकार बताते हैं कि भंवरलाल शर्मा कई बार पानी पर राजनीति की इबारत लिखने की कोशिश कर चुके हैं, हालांकि असफलता के बाद भी उनकी लोकप्रियता पर कहीं से कोई असर नहीं पड़ता। राजस्थान में सियासी संकट वक्ती तौर पर भले टल गया हो और कांग्रेस ने राहत की सांस ली हो, लेकिन एक सवाल यह उठ रहा है कि इस महीने भर की हलचल से किसे क्या मिला? क्या इससे लोकतंत्र कहीं से भी मजबूत हुआ? चलिए, इस कहानी को हम भी वक्त पर छोड़ देते हैं और चलते हैं राजस्थान की राजनीति को कई बार मंझधार में लाने वाले विधायक भंवरलाल शर्मा की ओर। भंवरलाल शर्मा चुरू जिले की सरदार शहर सीट से जीतते हैं। सात बार विधानसभा पहुंच चुके हैं लेकिन मंत्री एक बार ही बन पाए। रहते विभिन्न दलों में हैं लेकिन लोहिया की इस उक्ति पर सदा भरोसा करते हैं कि 'जिंदा कौमें पांच साल इंतजार नहीं करतीं।' इसलिए राज्य की सरकारों के लिए कई बार संकट खड़ा कर देते हैं। इस बार...

राजस्थान में सियासी शह-मात (डायरी)

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कुछ दिन पहले राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को निकम्मा कह दिया था। उस बयान के विरोध में ग्रेटर नोएडा के ह्र्दयस्थल परी चौक पर गुरुवार को प्रदर्शन हुआ। बाहरियों का रहा है जलवा (23 जुलाई 2020) राजस्थान की राजनीति में दूसरे राज्यों से गए लोग जब-तब जलवा दिखाते रहे हैं। सचिन पायलट प्रकरण भी इसका उदाहरण है। सचिन पायलट का परिवार मूल रूप से ग्रेटर नोएडा, यूपी के वैदपुरा गांव का है। इनके पिता राजेश पायलट यहां से राजस्थान गए और वहां की राजनीति में खुद को स्थापित किया। विधानसभा के 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने जब सरकार में वापसी की तो उसका काफी श्रेय सचिन पायलट के राजनीतिक प्रबंधन को दिया गया। उसके अगले साल लोकसभा चुनाव हुए और सीएम अशोक गहलोत ( जो वहां के मूल निवासी हैं) के बेटे जोधपुर सीट से चुनाव हार गए। हालिया राजनीतिक उठापटक में अशोक गहलोत जिस नेता के सहारे गुर्जर वोटों के प्रति आश्वस्त होने की कोशिश कर रहे हैं, वह जोगिंदर अवाना भी नोएडा, यूपी के हैं। अवाना नोएडा की राजनीति में भी सक्रिय रहे और फिर राजस्थान की नदबई सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीत गए। कहा जाता है कि बाद में जब...