कहीं सफाई का पिंडदान, कहीं गंगालाभ


कल यानी 20 अगस्त 2020 के अंक में ही तपोभूमि बक्सर का यह फोटो दैनिक भास्कर में आठ कालम छपा था। यह फोटो हालांकि गंगा का जलस्तर बढ़ने वाले आंकड़े के साथ था, लेकिन इस फ़ोटो को देखकर शहर की एक शानदार छवि बनती है। कल ही दोपहर में स्वच्छ सर्वेक्षण के नतीजे आये और पता चला कि 10 लाख तक की आबादी वाले शहरों की कैटिगरी में बक्सर नीचे से दूसरे नम्बर पर है। यानी बक्सर से गन्दा सिर्फ एक और शहर है इस कैटिगरी में। इतना ही नहीं, गंगा किनारे वाले शहरों की कैटिगरी में भी बक्सर लिस्ट में नीचे से दूसरे नम्बर पर है। बक्सर से भी जो गंदा शहर है, वह है बिहार का गया। ये दोनों शहर हिंदू आस्था वाले शहर हैं। एक गंगा किनारे है दूसरा फल्गू किनारे। बक्सर श्मशान घाट पर उनकी चिता जले और गया में वे अपने पूर्वजों का पिंडदान करें, यह आकांक्षा अधिकतर हिंदुओं की होती है। गया में ही बोधगया है, जहां महात्मा बुद्ध को ज्ञान मिला था। इस लिहाज से यह अंतरराष्ट्रीय महत्व का शहर हो गया है। लेकिन वहां के स्थानीय निकाय के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को किस वृक्ष के नीचे सफाई का ज्ञान मिलेगा, इसका जवाब अब आना चाहिए। बक्सर रामकथा से जुड़ा शहर है और प्रस्तावित रामायण सर्किट में भी इसे जगह मिली है। इसके पौराणिक महत्व को देखते हुए देश भर में भ्रमण कराने वाली ट्रेन का करीब 8 घंटे का यहां पर स्टॉपेज दिया गया है। 

क्या है कूड़े की डंपिंग का इंतजाम?

मैं बक्सर नगर परिषद के कई पार्षदो को जानता हूं, जो वार्ड की सफाई के दौरान भी सफाईकर्मियों के साथ-साथ रहते हैं या नीले-हरे डस्टबिन का वितरण करते हैं। मान लीजिये घरों नें सूखे और गीले कूड़े को अलग अलग रखा जाए, लेकिन यह चेन कहां तक मेंटेन रहती है। कूड़े की गाड़ी में तो दोनों एक हो जाते हैं, फिर इस कवायद का क्या फायदा हुआ? इतने युवा पार्षद हैं, जिला प्रशासन पर दबाव क्यों नहीं बनाते? बाईपास रोड जब बना था, तब वहां सुबह दौड़ने वाले युवाओं और किशोरों की भीड़ लगी रहती थी। कुछ समय पहले यह हाल था कि गोवर्धन बाबा के पास से उठने वाली बदबू के कारण वहां से गुजरने वाला हर शख्स धावक बन जाता था और वह जल्दी से जल्दी वहां से दूर हटना चाहता था। कचरे के निस्तारण के लिए कौन सी स्टडी की गई या क्या प्लान आया, जिस पर अमल नहीं हुआ, यह लोगों को बताया जाना चाहिए। बक्सर में गंगा का कौन सा घाट नहाने लायक रह गया है, आचमन की तो बात ही छोड़िए। 

किसी को शहर का गौरव बोध नहीं

जिले में आचार्य शिवपूजन सहाय, बिस्मिल्ला खान, शिवनाथ सिंह जैसे लोगों ने जन्म लिया लेकिन कहीं इनकी एक मूर्ति नहीं दिखेगी। मूर्तियों से शहर पर गौरव बोध भी होता है और वहां लाइटिंग और साफ-सफाई होने से शहर भी सुंदर लगता है। इसके विपरीत कई ऐसे आदमकद बुत लगे हैं जिनकी उपलब्धि या तो वे खुद जानते हैं या खुदा जानते हैं। 1980 के दशक में यहां साउंड एंड लाइट सिस्टम लगा था जहां रामकथा में बक्सर का प्रसारण होता था। एक साल के अंदर वह केंद्र क्यों बंद हो गया, किसी को इसका पश्चाताप तक नहीं हुआ। न ही किसी लेवल के चुनाव में यह मुद्दा बना। शहर जब बस रहा था तब किसी नगर योजनाकार ने यहां पार्क या ओपन स्पेस बनाने की जरूरत क्यों नहीं महसूस की? आज ले-देकर स्टेशन के पास रस्मअदायगी करता एक चिल्ड्रन पार्क है। कमलदह, गौरीशंकर मंदिर सरोवर क्यों बदहाल हैं? यदि बक्सर में सिर्फ गंगाघाट और यहां के सरोवर तालाब ही मेंटेन रहते तो भी यह स्वच्छ सर्वेक्षण में फाइट कर सकता था। 

लोगों की भी कुछ जिम्मेदारी है या नहीं?

जब स्वच्छ सर्वेक्षण होता है तब शहर के लोगों से भी उस पर ऑनलाइन फीडबैक मांगा जाता है। स्मार्ट फोन सबके पास है और जियो का कनेक्शन भी। लेकिन ईमानदारी से बताएं कि कितने लोगों ने ऑनलाइन फीडबैक दिया? नगर परिषद के अधिकारियों-कर्मचारियों के अलावा पार्षदों ने लोगों में क्या अवेयरनेस कैंपेन चलाया? इस फीडबैक और ऐप डाउनलोड करने पर भी नंबर मिलता है, क्या इसे सभी लोग जानते हैं? दातुन करके रोड पर फेंकना छोड़ेंगे नहीं, नाली किनारे पेशाब करने की आदत जाएगी नहीं और पान की पिचकारी सड़क पर थूकने को अपना जन्मजात अधिकार समझना छोड़ना होगा, ताकि यह शर्मनाक रैंकिंग दोबारा न आए। 

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