मऊ में सब बंद है, राजनीति चालू है
इस बदलाव पर थोड़ा और गौर करें तो 1996 से यहां के विधायक बन रहे मुख्तार अंसारी की राजनीतिक विरासत बदल गई है। अब उनके बेटे अब्बास अंसारी को यहां से प्रत्याशी बनाया गया है। बदलने पर एक और बात याद आ रही है, मुख्तार अंसारी के पार्टी बदलने की। कभी बसपा से, कभी निर्दलीय, कभी खुद के कौमी एकता दल से और इस बार सुभासपा से चुनाव लड़ने की तैयारी थी। विमर्श के माध्यम बदल रहे हैं। बलराई मोड़ से रैनी की ओर जाने वाले तिराहे पर कभी बड़े घने पेड़ थे, जिनकी छांव में इलाके भर की राजनीति डील होती थी। अब मोड़ फास्ट हो गया है, पेड़ नहीं रहे और राजनीति रोड के बजाय वट्सऐप ग्रुप में डील हो रही है।
शहर के पास से गुजर रही तमसा नदी के हनुमान घाट पर एक नाव बंधी रहती है। नदी के इस पार से उस पार तक करीब 5 फीट ऊंचाई पर मोटा रस्सा बांधा गया है। सवारियां खुद इस रस्सी को धक्का देते हुए नदी के इस पार से उस पार करती हैं। यहीं हाल यहां रोजगार का है। इसका जिम्मा पूरी तरह यहां के निवासियों पर छोड़ दिया गया है।
इस सीट पर गठबंधन की ओर से सुभासपा के टिकट पर मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी हैं, बीजेपी से मुख्तार अंसारी के जानी दुश्मन अशोक सिंह हैं और बसपा से भीम राजभर हैं। भीम राजभर के मैदान में उतरने से राजभरों के एकमुश्त वोट पर सुभासपा का दावा नहीं रह जाएगा। लोग बताते हैं कि राजभरों के वोट मोटे तौर पर दो हिस्सों में बंटेंगे। यह वोट मुस्लिम वोट की तरह एकमुश्त नहीं दिख रहा। पिछली बार मुख्तार अंसारी यहां करीब 9 हजार वोटों से जीते थे। तब भाजपा ने यहां सुभासपा का समर्थन किया था। इस बार सुभासपा, सपा और मुख्तार के वोट एक साथ हैं, इसलिए बीजेपी के लिए मुकाबला मुश्किल है। हालांकि बसपा के प्रभाव वाले खासकर दलित वोट पाना गठबंधन के लिए संभव नहीं लग रहा। बसपा की मौजूदगी मुकाबले को रोचक बना रही है, बाकी लड़ाई आमने-सामने की ही दिख रही है।
फोटो ज्ञानेन्द्र कुमार राय
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