यूक्रेन-अफगानिस्तान और यूपी चुनाव का सातवां चरण

बनारस के अस्सी में पप्पू की अड़ी (दुकान) पर मिनी पार्लियामेंट चल रही है। कल प्रधानमंत्री यहां से चाय पीकर जा चुके हैं। इस पार्लियामेंट की खासियत यह है कि यहां मुद्दे के मुताबिक सदन के अध्यक्ष बदलते रहते हैं। चाहे अपनी सीट पर से बोलो चाहे वेल में जाओ, कोई पाबंदी नहीं है। हर-हर महादेव।

शंकर जी के त्रिशूल पर बसे इस नगर में भी रूस और यूक्रेन के बहाने लोकल चुनाव और कैंडिडेट चर्चा में हैं। लोग गाजीपुर जिले की एक सीट को यूक्रेन बता रहे हैं और वहां के एक उम्मीदवार को जेलेन्सकी। यूक्रेन की तरह यह प्रत्याशी भी रूस से अलग हुए हैं और अब उसी को आंखें दिखाते हुए लाल-पीले हो रहे हैं। प्रत्याशी के बड़बोलेपन पर लोग मज़े ले रहे हैं और उन्हें मंच से गाने के बोल सुनाते देख दाद दे रहे हैं। लोग बतिया रहे हैं कि इन्हें भी किसी नाटो ने चढ़ा दिया है। अब यह सबकी गर्मी शांत करने की धमकी दे रहे हैं। अगर चुनाव के बाद नाटो कही कमज़ोर पड़ा तो इसका क्या होगा? वैसे भी जो समीकरण है, उसमें इस जेलेन्सकी की सीट जहुआ (भोजपुरी शब्द जिसका अर्थ गड़बड़ाना होता है) रही है। 

बनारसियों की निगाह में मऊ जिले की एक सीट अफगानिस्तान हो गई है। सीधे हिसाब-किताब करने की धमकी दी जा रही है। टाइम बाउंड सारा हिसाब करने का दावा है। लोग कह रहे हैं बाप नम्बरी तो बेटा दस नम्बरी। जिन भैया का नाम लेकर फ़रियाने का ऐलान किया जा रहा है, वे खुद किसी भी विवाद से अलग दिखने की कोशिश कर रहे हैं। भैया अपने कुनबे के लीडर हैं। यहां भैया की हालत देखकर कभी लखनऊ के घोघा बसंत कार्यक्रम में कही गई दो लाइनें याद आ रही हैं-
बैठा है चुपचाप मदारी
गठबंधन की है लाचारी।

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