बसन्ती हो गई चुनरी

ख़ुशी के रंग लेकर ही हमेशा आती है होली
सनक जाता बुढ़ापा भी निगलकर भांग की गोली
भला यौवन बचाये खुद को कैसे इसके जादू से
बसन्ती हो गई चुनरी, गुलाबी हो गई चोली

हिया में हूक उठती सुन के कोयल की मधुर बोली
पपीहे ने कहा तू क्यों बड़ी गुमसुम सी है भोली
पिया परदेस से आएंगे अबकी बार फगुआ में
खड़ी ड्योढ़ी पे है दुल्हन उम्मीदों की भरे झोली

मंजर गये आम औ गदरा गए महुआ के जोबन भी
मदन रस की बहे पुरुआ सुलग जाये ये तन-मन भी
खड़ी सरसों कही परसों मेरे हमराज ओ हमदम
चले आओ अ र र र र बोलते पाजेब कंगन भी

वहीं गोकुल वहीं कान्हा वही जमुना का तट होता
वहीं मुरली वही वंशी वही एक वंशीवट होता
जहां खेले परस्पर फाग हिलमिल श्याम संग राधा
बिरज की गोधूलि होती भरा माखन का घट होता

ओ मेरे यार हाँ दिलदार तू इस बार होली में
गिरा दे नफरतों की हो कोई दीवार होली में
न आये आज कोई आंच ये प्रह्लाद पर देखो
न बचने पाए कोई होलिका इस बार होली में।

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