इहै हउवै भइया इलेक्शन का मेला
इहै हउवै भइया इलेक्शन का मेला
अभी आपने प्रयागराज के कुंभ का मजा लिया होगा अब इलेक्शन रूपी सत्ता के कुंभ में डुबकी लगाने को तैयार हो जाइए। यहां भी वैसा ही नजारा रहता है। अब आप वहां जिस कविता 'अमौसा का मेला' को लाउडस्पीकर पर सुने होंगे उसकी कुछ पंक्तियां नए सन्दर्भ के साथ पढ़िये।
कलौता के माई के झोरा हेराइल
बुद्धू के बड़का कटोरा हेराइल.
टिकुलिया के माई टिकुलिया के जोहै
बिजुलिया के माई बिजुलिया के जोहै
मचल हउवै हल्ला त सगरो ढुढ़ाई
चमेंला के बाबू चमेंला के माई.
गुलबिया सभत्तर निहारत चलेले
मुरहुआ मुरहुआ पुकारत चलेले.
वहां टिकुलिया की मां उसे खोज रही है यहां बीजेपी वाले अपने प्रयागराज के सांसद श्यामाचरण गुप्त की तलाश में लगे हैं जो चुपचाप साइकल (सपा) की सवारी करने लगे हैं। समाजवादियों ने उन्हें बांदा से कैंडिडेट भी बना दिया है।
बिजुलिया के माई की तरह जेडी (एस) वाले दानिश अली को तलाश रहे हैं जो अब हाथी (बसपा) की सवारी कर रहे हैं। उत्तराखंड में बीजेपी नेता बीसी खंडूड़ी अपने बेटे मनीष की तलाश में गुलबिया की तरह सभत्तर निहारते चल रहे हैं जिन्होंने पंजे (कांग्रेस) से हाथ मिला लिया है। हरियाणा में कांग्रेस करनाल से सांसद रहे अपने अरविंद शर्मा को ढूंढ रही है जो कमल दल का हिस्सा बन चुके हैं।
गोबरधन के सरहज किनारे भेंटइली.
गोबरधन का संगे पँउड़ के नहइली.
घरे चलतऽ पाहुन दही गुड़ खिआइत
भतीजा भयल हौ भतीजा देखाइत.
उहैं फेंक गठरी, परइले गोबरधन,
ना फिर फिर देखइले धरइले गोबरधन.
जिस तरह कुंभ के मेले में गोबरधन की सरहज मिल गई थीं, उसी तरह 2004 में कांग्रेस और राजद की मुलाकात हुई थी। सत्ता की सरिता में दोनों गोबरधन और उनकी सरहज की तरह साथ-साथ तैर कर नहाए थे। लेकिन जिस तरह गोबरधन की सरहज ने जब यह ऑफर किया कि घर चलो तो दही-गुड़ खिलाऊंगी और जो भतीजा पैदा हुआ है, उसे भी दिखाऊंगी। गोबरधन को लगा कि फ्री का दही गुड़ खाकर भरीजे को मुंह दिखाई देनी पड़ेगी और वे गठरी वही फेककर परा गए। अब उसी तरह दोनों सीट को लेकर तने हुए हैं और कंजूस इतने कि एकाध अधिक सीट देकर तत्काल समझौता नहीं कर रहे हैं।
और यह है हिंदुस्तान का आम वोटर
फटल हउवे कुरता टूटल हउवे जूता
खलीता में खाली किराया के बूता
तबो पीछे पीछे चलल जात हउवें
गदोरी में सुरती मलत जात हउवें.
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