किसकी गोद में वामपंथ ; जसोदा मैया या पूतना के
आज ही की तरह वह सम्भवतः 31 मार्च 1997 की तारीख थी। बिहार में गरीब-गुरबों और सामाजिक न्याय की सरकार थी। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके आइसा से जुड़े चंद्रशेखर सिवान में व्यवस्था विरोधी कार्यक्रम कर रहे थे। उसी दौरान वहां फायरिंग हुई और चंद्रशेखर समेत 3 लोग मारे गए। मुख्य आरोप लालू के खासमखास शहाबुद्दीन पर लगा। कहा गया कि सामंतों ने वहां एमएल को बैलेंस करने के लिए शहाबुद्दीन को आगे बढ़ाया था।
अब करीब दो दशक बाद एमएल की पूरी राजनीति राजद की लालटेन से रोशनी और कांग्रेस के पंजे से ताकत ले रही है। चालू चुनाव में आरजेडी ने उसके लिए आरा संसदीय सीट पर कैंडिडेट नहीं उतारा तो बदले में एमएल ने पाटलिपुत्र सीट से दावेदारी छोड़ने की बात कही है। दोनों एक दूसरे को पंत और निराला कह रहे हैं। एमएल के नवागन्तुक शायद यह नहीं जानते होंगे कि 1989 में पूरे देश में वीपी सिंह की लहर थी, तब वैसे दौर में आरा संसदीय सीट ने माले के रामेश्वर प्रसाद को अपना सांसद चुना था। इतना ही नहीं, बगल की बक्सर सीट से सीपीआई के तेज नारायण सांसद बने थे।
दिल्ली से सटे गाज़ियाबाद के झंडापुर गांव में सिस्टम विरोध का झंडा बुलंद करने पर सफदर हाशमी को 1 जनवरी 1989 को मार डाला गया था, उसी गांव में अब कोई लाल झंडा उठाने वाला नहीं है। विकिपीडिया बता रहा है कि एक बड़े राजनीतिक दल से जुड़े गुंडों ने इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। अभी कुछ दिन पहले शेखर गुप्ता ने एक लेख लिखा है, जिसके मुताबिक कहा जा रहा है कि जेएनयू के प्रांगण में आइसा की कोख से निकले संदीप सिंह राहुल गांधी का भाषण लिख रहे हैं। बगल की गौतमबुद्ध नगर संसदीय सीट पर सीपीएम गठबन्धन पर लहालोट हो रहा है। बिसाहड़ा कांड के समय वृंदा करात यहां कितनी सक्रिय थीं, लेकिन क्यों फिर भी जमीन नहीं मिली?
वामपंथी आंदोलन अब शैशवावस्था में नहीं है, तरुणाई में भी नहीं है बल्कि कई साल पहले वयस्क हो चुका है। यह आंदोलन बेशक कन्हैया बन जाए, पर यह ख्याल रखना होगा कि वह जिस गोद में घुस रहा है वह जसोदा मैया की है या पूतना की?
(जिसकी गोद में हो वह जसोदा मैया की है या पूतना की, कासी का अस्सी किताब से उधार लेकर)
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