चुनावी चैता

पिया नाही अइले हो रामा, पिया नाही अइले, बीत गइले सउँसे चइतवा हो रामा पिया नाही अइले। जैसे ही कॉमरेड चंदू ने चैती गाना शुरू किया, भाजपाई दीनानाथ भड़क गए। खूब बूझते हैं हम इसका मतलब। जब तुम्हारे सांसद जीते थे तब तो वे इलाके में ही पड़े रहते थे। वे तो सदन की कार्यवाही में भी भाग लेने दिल्ली नहीं जाते थे। लेकिन फायदा क्या होता था। याद है तब इलाके के लोग कौन सा चैता गाते थे -कई साल गवना भइल ना खेलवना, सखी सब भइली लरकोरी रे, चैत महीनवा के दिनवा। क्या हुआ था तुम्हारे सांसद के समय? अगल बगल के इलाकों में कितना काम हुआ था और तुम बैठकर रूस और चीन के मौसम का पूर्वानुमान कर रहे थे। इलाके का हाल उस औरत की तरह हो गया था, जिसके गवना को कई साल बीत गए, लेकिन कोई बच्चा न हुआ हो। वह अपनी सहेलियों की ओर देखती थी जिनके कई बाल बच्चे हो गए थे। लेकिन यही संसदीय क्षेत्र कॉमरेड सांसद की वजह से उपेक्षित रह गया था।
तभी बहस में कांग्रेसी मुक्तिचन्द घुसे। याद है, हमारे टाइम में 'आम मोजराइल हो रामा महुआ मोजराइल' की तर्ज़ पर कितनी तरक्की हुई थी इलाके की। सिर्फ बाइक पर हमारा झंडा लगा लो और पम्प पर जाकर 2 लीटर फ्री तेल डलवा लो। जीप है तो दस लीटर डीज़ल फ्री। टीवी टावर भी बना और साउंड एंड लाइट भी लगा था।
तभी बहस में कवि विद्याधर शामिल हुए। हैं तो वह भी वामपंथी, लेकिन कॉमरेड चंदू को छेड़ने के लिए कहा -बुझ चुका है तेरे हुस्न का हुक्का, ये हमारी वफ़ा है कि गुड़गुड़ाए जाते हैं। अब क्या भाजपाई, क्या कांग्रेसी और क्या थर्ड फ्रंटी , चारों ओर से दाद मिलने लगी। चंदू हैरान। लगता है इस जन्म में 'लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान' का सपना साकार नहीं हो पायेगा।
उसी दौरान सब पर भारी बांके बिहारी वहां पधारे। बांके बिहारी सभी दलों में दलदल है, सबसे अच्छा निर्दल है, के सिद्धांत पर चलते हैं और सबकी समभाव से मौज लेते हैं। आते ही बोले - क्या हुआ दीनानाथ? क्या गा रहे थे कॉमरेड चंदू? दीनानाथ अपनी सरकार का बचाव करते बोले -अब सांसद मंत्री हैं तो देश भर में भ्रमण करेंगे या यही पड़े रहेंगे? बांके बिहारी भड़क गए - तो क्या नॉमिनेशन भरने भी नहीं आएंगे? प्रचार करने भी नहीं आएंगे। मंत्री हैं तो चुनाव में क्यों आते हैं भला? फिर वे कांग्रेसी मुक्तिचन्द की ओर मुड़े - लगे हाथों यह भी बता देते कि टीवी टावर कितने साल चला और कैसे चंद महीनों में ही साउंड एंड लाइट की आत्मा मुक्त हो गई थी?
बस शुरू हो गया कोलाहल। कोई बेंच पर ठेका देकर उस्ताद जाकिर हुसैन को मात देने लगा तो कोई साक्षात तानसेन बन गया। अचानक दूर से कई गाड़ियों की लाइट दिखने लगी थीं। दीनानाथ के मोबाइल पर कोई मैसेज आया था। चेहरा खुशी से दमकने लगा था। मंत्री जी का काफिला था। टिकट की उम्मीद पक्की होने के बाद इलाके में आ रहे थे।अब कुछ दिन सुबह शाम यही दिखेंगे। दीनानाथ जोर जोर से गा रहे थे - आई गइले तोहरो बलमुआ हो रामा, चइत महीनवा।
उधर बांके बिहारी कह रहे थे कि पांचवे साल ही यह चैता क्यों गा रहे हैं दीनानाथ? अब तो कई दिन रौनक रहेगी। प्रत्याशियों का आना-जाना लगा रहेगा। वोटरों की आवभगत होगी। केहू लुटाई हो रामा अन धन सोनवा, केहू लुटाई हो कंगनवा हो रामा, चइत महिनवा...

Comments

Popular posts from this blog

सुतल पिया के जगावे हो रामा, तोर मीठी बोलिया

ऐसे सभी टीचर्स को नमन

आज कथा इतनी भयो