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Showing posts from November, 2020

किसान उगाना जानते हैं, बेचना सीख लें

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किसान स्थायी दुकान न खोलना चाहें तो मूविंग शॉप भी खोल सकते हैं। आखिर गुड़, आम वे घोड़ागाड़ियों या बैलगाड़ियों पर बेचते ही हैं। सरकार का मुंह देखने के बजाय खुद समाधान सोंचे। बाकी प्रदर्शन करने के लिए हर कोई स्वतंत्र है। कई बार मन में यह सवाल उठता है कि पंजाब समेत जिन इलाको के किसानों ने हरित क्रांति की मलाई खाई, वही बार-बार क्यों आंदोलित होते हैं? हमेशा वही प्रदर्शन करने क्यों दिल्ली आते हैं? हरियाणा और वेस्टर्न यूपी के जाट किसानों की ही अधिकतर भागीदारी इसमें क्यों होती है? अगर ये किसानों के प्रतिनिधि हैं तो बिहार-झारखंड के किसानों को क्यों नहीं बुलाते? क्या उनके पास दिल्ली आने-जाने लायक भी पैसा नहीं है क्योंकि उनमें अधिकतर सीमांत किसान हैं। ईस्टर्न यूपी के किसानों की भागीदारी क्यों नहीं दिखती?  एक सवाल उठता रहता है मन में। किसान खुद को सिर्फ उत्पादन तक क्यों सीमित रखता है? वह भंडारण क्यों नहीं सीखता? वह उत्पादन को बेचने की कला क्यों नहीं डेवलप करता? फिर उसे एमएसपी के पचड़े में पड़ना ही नहीं पड़ेगा। आखिर किसान अपने जानवरों के लिए भूसे  और अपने खाने लायक साल भर के अनाज का...

एक था माराडोना, जो हमेशा जिंदा रहेगा

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फोटो : गूगल से 1983 में क्रिकेट का प्रूडेंशियल वल्र्ड कप जीतने के बाद भारत में  क्रिकेट और भी लोकप्रिय हो रहा था। बालक-युवा सभी इसके दीवाने  थे। शहरों से भी अधिक कस्बाई और ग्रामीण भारत में। उसी समय  1986 में फुटबॉल का विश्व कप मेक्सिको में हुआ। महीने भर का कुंभ। और इस कुंभ से निकले थे डियेगो माराडोना, जिनकी लोकप्रियता का डंका उनके देश से निकलकर भारत समेत पूरी दुनिया में बजने लगा  था। लोग क्रिकेट के साथ फिर से फुटबॉल को तरजीह देने लगे थे। उनकी 10 नंबर की जर्सी ही नहीं बाएं कान की बाली भी हिट हो चुकी थी। 1983 में कपिल देव बनने का सपना देखने वालीं कई आंखें माराडोना बनने का ख्वाब सजाने लगी थीं। छोटे कद के इस  गठीले और फुर्तीले खिलाड़ी ने यह दिखा दिया था कि किस तरह मिड फील्ड से गेंद लेकर न सिर्फ गोलपोस्ट तक पहुंचा जा सकता है, बल्कि गोल भी मारा जा सकता है।  भारत के लोग माराडोना से एक बच्चे की तरह प्यार करते थे। एक ऐसा बच्चा जो बिगड़ा हुआ भी है लेकिन वक्त पर काम आता है। पेले की  लोग इज्जत करते थे, पर माराडोना से प्...

क्या कमज़ोर प्रदर्शन सिर्फ कांग्रेस का है?

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जिस समय बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे फाइनल राउंड की ओर बढ़ रहे थे, उस समय एक जोक वायरल होने लगा था।  जोक यह था- तेजस्वी-भाई हम तो चुनाव हार रहे हैं राहुल-भाई, तू अपनी देख ले, हम तो हर महीने कहीं न कहीं हारते रहते हैं। नतीजे आये और राजद ने हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया। यह कहा गया कि कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन से नहागठबन्धन की यह हालत हुई है। बाद में राजद के शिवानन्द तिवारी ने यहां तक कह दिया कि जब चुनाव हो रहा था तब राहुल गांधी प्रियंका गांधी के घर पर पिकनिक मन रहे थे। हालांकि बाद में राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने इसे तिवारी का व्यक्तिगत बयान बताया था और कहा था कि इसे पार्टी का बयान न माना जाए। सवाल यह है कि कमज़ोर प्रदर्शन सिर्फ कांग्रेस का है? क्या राजद ने पिछले चुनाव से बेहतर परफॉर्म किया है? तेजस्वी यादव ने ऐसा क्या चमत्कार कर दिया है? 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद ने 80 सीटें जीती थी, जब वह 100 या 101 सीटों पर लड़ा था। इस चुनाव में वह 144 सीटों पर लड़ा और 75 सीटें ही जीत पाया। कांग्रेस 2015 में 41 में से 27 सीटें जीत सकी थी जबकि इस बार 70 में 19 पर ही जीत पाई।...

चमकी : लीची बदनाम, मंगल को इनाम

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मंगल पांडेय बिहार में एक बार फिर चुनी हुई सरकार ने शपथ ले ली, लेकिन राज्य के सेहत मंत्री रहे मंगल पांडेय को मंत्री बनाना चौंकाने वाला है। सरकार चाहे जो कहे, बिहार में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्टर कमज़ोर है, यह मानने के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं है। 2017 में जब बक्सर में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे का बक्सर में पैर टूट गया था, तब सदर अस्पताल में एक्सरे करनेवाली मशीन काम नहीं कर रही थी। उन्हें प्राइवेट डायग्नोस्टिक सेंटर पर ले जाया गया, फिर इस मामूली इलाज के लिए पहले पटना और फिर दिल्ली चले गए। मुजफ्फरपुर का जानलेवा चमकी बुखार सबको याद ही है। स्वास्थ्य विभाग की कमी का ठीकरा लीची के सिर फोड़ दिया गया। मंगल पांडेय चुनाव भी नहीं लड़े, विधान परिषद के सदस्य हैं। फिर पार्टी के सामने उन्हें मंत्री बनाने की क्या मजबूरी थी? क्या इन्हें मंत्री बनाकर बीजेपी अपने ब्राह्मण वोटरों का ईगो शांत कर रही है? बीजेपी ही नहीं, पूरा एनडीए शाहबाद क्षेत्र के चारों जिलों, आरा, बक्सर, कैमूर और रोहतास में करीब-करीब साफ हो गया। सिर्फ आरा से अमरेंद्र प्रताप सिंह और इसी जिले की बड़हरा सीट से राघवेन्द्र प्रताप...

सीमांचल पर बीजेपी की निगाहें

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बीजेपी ने तारकिशोर प्रसाद को विधानमंडल दल का नेता बनाया है, उसका मकसद साफ है। सीमांचल की राजनीति में बीजेपी अब अपनी प्रभावी और सीधी मौजूदगी चाहती है। दूसरा यह कि अगर वह रामविलास पासवान की खाली हुई सीट पर सुशील मोदी को राज्यसभा में भेजती है तो तारकिशोर प्रसाद के बहाने पिछड़ों का जातीय समीकरण उसके साथ रहे। तारकिशोर प्रसाद जिस कटिहार सीट से जीतते हैं, वह पूर्णिया प्रमंडल में आती है। पूर्णिया प्रमंडल में चार जिले हैं, पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज। यही सीमांचल का इलाका है, जहां कभी किशनगंज वाले तस्लीमुद्दीन के बल पर राजद राज करता था, जो इस बार ओवैसी के पास है। इस इलाके में कहा जाता कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दा चुनाव आते-आते एक ही हो जाता है-हिंदू-मुस्लिम। ओवैसी को बिहार विधानसभा की 5 सीटों पर मिली जीत भी इसकी तस्दीक करती है। अगर अनुभव ही विधानमंडल दल का नेता चुने जाने का आधार होता तो गया के प्रेम कुमार का दावा सबसे अधिक बनता था। वह आठवीं बार जीते हैं और पार्टी में अति पिछड़ा चेहरा भी हैं। इसी तरह पटना साहिब से सातवीं बार जीतने वाले नन्द किशोर यादव का दावा भी बनता, लेकिन उससे पार्टी क...

बिहार में दो असफल राजनीतिक उत्तराधिकारी

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चिराग पासवान और तेजस्वी यादव में कई समानताएं है। दोनों अपनी इच्छा से जिस फील्ड में गए, वहां असफल रहे। चिराग फ़िल्म इंडस्ट्री में और तेजस्वी क्रिकेट ग्राउंड पर। इसके बाद दोनों को विरासत में राजनीति मिली, जिसे वे सम्भाल नहीं पा रहे। रामविलास पासवान या लालू यादव ने खुद को राजनीति में स्थापित करने के लिए जो संघर्ष किया, उसका दशांश भी ये विरासत को संभालने में भी नहीं कर रहे। चिराग पासवान ने हालिया विधानसभा चुनाव के दौरान जो नकारात्मक और भ्रम की राजनीति की, उसका परिणाम सामने है। 135 पर लड़कर एक पर विजय। अगर उनका उद्देश्य सिर्फ जेडीयू को रोकना था तो उसमें वह जरूर सफल रहे। लेकिन कोई राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए लड़ता है या सिर्फ किसी को हराने के लिए कैंडिडेट उतारता है? तेजस्वी यादव भले यह सोचकर राहत महसूस करें कि राजद बिहार विधानसभा में सबसे बड़ा दल बना है और उसने 75 सीटें जीती हैं। लेकिन उसे यह भी देखना चाहिए राजद राज्य की 144 सीटों पर चुनाव लड़ भी तो रहा था। इसके मुकाबले 110 सीटों पर लड़कर बीजेपी ने 74 सीटें जीतीं। जाहिर हैं कि बीजेपी ने राजद से बेहतर परफॉर्म किया। राजद ने बीजेपी से सिर्फ एक ...

बिहार : एवरेज वोटिंग में सरकारें रिपीट होती ही हैं

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चुनाव का एक बुनियादी फार्म्युला है। कम वोट हो तो वर्तमान सरकार या जनप्रतिनिधि रिपीट होता है। एंटी इनकंबैंसी फैक्टर 65 पर्सेट से कम वोट पर काम नहीं करता। क्षमता से अधिक सीटों पर लड़ने का नुकसान होता है और इससे जीती जा सकनी वाली सीटें भी हाथ से निकल जाती हैं। हारे हुए खिलाड़ियों की टीम बनाकर आप मैच जीत नहीं सकते। अधिकतर लोग शांति के साथ जीना चाहते हैं और वे किसी ऐसी जगह पर वोट नहीं करते, जिसके बाद वे राह चलते सुरक्षित महसूस न करें। पटना की दो सीटों बांकीपुर और कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम वोटिंग हुई। बांकीपुर में 35.85 और कुम्हरार में 35.69 फीसदी वोट पोल हुए। दोनों सीटों पर वर्तमान विधायक दोबारा जीत गए। इस सीट से प्रत्याशी नितिन नवीन लगातार चौथी बार चुनाव जीते। इसी तरह कुम्हरार से बीजेपी के अरुण सिन्हा फिर चुनाव जीते, जबकि मीडिया की निगाह में वह अलोकप्रिय हो चुके थे। बिहार विधानसभा चुनाव के तीनों फेज में औसत मतदान 60 पर्सेंट तक नहीं पहुंचा, ऐसे में एग्जिट पोल और मीडिया में किस तरह सरकार बदल रही थी, यह समझना बहुत मुश्किल था। कांग्रेस ने 2015 में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 ...

सुपौल : मद्य निषेध मंत्री की सीट पर शराबबंदी का कितना असर?

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कोसी बैराज। Photos Sanjay Kumar अब जश्ने जम्हूरियत का फाइनल पैग बचा है यानी बिहार विधानसभा चुनाव में लास्ट राउंड की वोटिंग जो सात नवंबर को है। तीसरे दौर की एक महत्वपूर्ण सीट है सुपौल सदर, जहां से राज्य के मद्य निषेध मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य में शराबबंदी का नशा चुनाव परिणाम को किधर ले जाता है, यह इस सीट के रिजल्ट से भी साबित होगा। बिजेंद्र यादव इस चुनाव में जनता दल यू के उम्मीदवार हैं। उनके सामने हैं कांग्रेस के मिन्नत रहमानी। विजेंद्र यादव  इस सीट से 1990 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। 1990 और 1995 में जनता दल के टिकट पर। उसके बाद जेडीयू के प्रत्याशी बनकर। पिछली बार जनता दलयू के दूसरे उम्मीदवारों की तरह इन्हें भी राजद का समर्थन हासिल था और इस बार भाजपा का। चुनाव में सब कुछ वैसे ही है जैसे पहले था लेकिन गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया की हत्या में उम्रकैद काट रहे आनंद मोहन का राजद को समर्थन इस बार इनके चुनावी गणित पर असर डाल सकता है। कांग्रेस उम्मीदवार कितना राजपूत और यादव वोट ले पाते हैं, इसी में उनकी सफलता का पैमाना छिपा है। दूसरी ओर, वि...