सीमांचल पर बीजेपी की निगाहें
बीजेपी ने तारकिशोर प्रसाद को विधानमंडल दल का नेता बनाया है, उसका मकसद साफ है। सीमांचल की राजनीति में बीजेपी अब अपनी प्रभावी और सीधी मौजूदगी चाहती है। दूसरा यह कि अगर वह रामविलास पासवान की खाली हुई सीट पर सुशील मोदी को राज्यसभा में भेजती है तो तारकिशोर प्रसाद के बहाने पिछड़ों का जातीय समीकरण उसके साथ रहे।
तारकिशोर प्रसाद जिस कटिहार सीट से जीतते हैं, वह पूर्णिया प्रमंडल में आती है। पूर्णिया प्रमंडल में चार जिले हैं, पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज। यही सीमांचल का इलाका है, जहां कभी किशनगंज वाले तस्लीमुद्दीन के बल पर राजद राज करता था, जो इस बार ओवैसी के पास है। इस इलाके में कहा जाता कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दा चुनाव आते-आते एक ही हो जाता है-हिंदू-मुस्लिम। ओवैसी को बिहार विधानसभा की 5 सीटों पर मिली जीत भी इसकी तस्दीक करती है। अगर अनुभव ही विधानमंडल दल का नेता चुने जाने का आधार होता तो गया के प्रेम कुमार का दावा सबसे अधिक बनता था। वह आठवीं बार जीते हैं और पार्टी में अति पिछड़ा चेहरा भी हैं। इसी तरह पटना साहिब से सातवीं बार जीतने वाले नन्द किशोर यादव का दावा भी बनता, लेकिन उससे पार्टी को फिलहाल कोई फायदा होता नहीं दिखता। नन्द किशोर यादव पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं, लेकिन बीजेपी को फिलहाल पटना के गया के किसी विधायक को विधानमंडल दल का नेता चुनने से कोई फायदा नहीं होता।
अगर यही हालात रहे तो अगले चुनाव तक सीमांचल में राजद और जेडीयू का प्रभाव कम होगा और मुकाबला बीजेपी बनाम aimim हो सकता है। तारकिशोर प्रसाद के डिप्टी सीएम बनने की भी चर्चा चल रही है।
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