क्या कमज़ोर प्रदर्शन सिर्फ कांग्रेस का है?

जिस समय बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे फाइनल राउंड की ओर बढ़ रहे थे, उस समय एक जोक वायरल होने लगा था। 

जोक यह था-

तेजस्वी-भाई हम तो चुनाव हार रहे हैं

राहुल-भाई, तू अपनी देख ले, हम तो हर महीने कहीं न कहीं हारते रहते हैं।

नतीजे आये और राजद ने हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया। यह कहा गया कि कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन से नहागठबन्धन की यह हालत हुई है। बाद में राजद के शिवानन्द तिवारी ने यहां तक कह दिया कि जब चुनाव हो रहा था तब राहुल गांधी प्रियंका गांधी के घर पर पिकनिक मन रहे थे। हालांकि बाद में राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने इसे तिवारी का व्यक्तिगत बयान बताया था और कहा था कि इसे पार्टी का बयान न माना जाए।

सवाल यह है कि कमज़ोर प्रदर्शन सिर्फ कांग्रेस का है? क्या राजद ने पिछले चुनाव से बेहतर परफॉर्म किया है? तेजस्वी यादव ने ऐसा क्या चमत्कार कर दिया है?

2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद ने 80 सीटें जीती थी, जब वह 100 या 101 सीटों पर लड़ा था। इस चुनाव में वह 144 सीटों पर लड़ा और 75 सीटें ही जीत पाया। कांग्रेस 2015 में 41 में से 27 सीटें जीत सकी थी जबकि इस बार 70 में 19 पर ही जीत पाई। इस आधार पर राजद सिर्फ कांग्रेस को पुअर परफॉर्मर कैसे कह सकता है? प्रदर्शन तो उसका भी कमजोर हुआ है। जानकार मानते हैं कि इससे अधिक सीटों पर लड़ने की हैसियत में राजद भी नहीं था। उसने कांग्रेस को अधिक सीटें देकर कोई अहसान नहीं किया था। कांग्रेस को अधिक सीटें जितने के लिए नहीं, बल्कि भाजपा का वोट काटने के लिए दी गई थीं और यह रणनीति उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं हुई। इस बार आरजेडी के साथ समस्त लेफ्ट भी था। लेफ्ट शुरू से कांग्रेस पर इसे लेकर हमलावर है तो फिर लेफ्ट ने अधिक सीटें क्यों नहीं ली? क्यों लेफ्ट पार्टियां सेलेक्टेड सीटों पर ही लड़ीं? टिकट बंटवारा जब सभी दलों ने मिलकर किया था तो लेफ्ट के नेता यह आरोप क्यों लगा रहे थे कि कांग्रेस ने क्षमता से अधिक सीटें ले ली? बंटवारे के दौरान वे अपनी बात पर क्यों नहीं अड़े रहे थे?

दूसरी बात है तेजस्वी यादव के नेतृत्व की। जिन लोगों को तेजस्वी में मैच्योर नेता लगते हैं, उन्हें तेजस्वी की अपरिपक्वता नहीं दिखती। शपथ ग्रहण समारोह का बहिष्कार इन्हीं में से एक है। विरोधी दल के नेता को वहां जरूर मौजूद रहना चाहिए था। वहां तो चुनावी धांधली की शिकायत की जांच होने वाली नहीं थी। दूसरा यह कि नतीजे के बाद जिस तरह राजद कार्यकर्ताओं ने आरा में हंगामा व आगजनी की, लोगों से बदतमीज़ी की, उस पर भी तेजस्वी चुप रहे। उन्होंने कार्यकर्ताओं को मना तो नहीं ही किया, खेद जताना भी जरूरी नहीं समझा। यह राजनीतिक परिपक्वता की कमी को दिखाता है। तीसरा यह कि जब एग्जिट पोल के नतीजे आये तो तेजस्वी की सरकार बनती दिख रही थी। उसी दौरान मोकामा से विधायक अनंत सिंह के लोगों ने इस खुशी में उनके पटना आवास पर 20 हज़ार लोगों के लिए लंगर का इंतज़ाम किया। कोविड प्रोटोकाल के तहत इतने लोग इतने साथ नहीं जुट सकते, लेकिन तेजस्वी ने इसके लिए मना नहीं किया। 

राजद को आगे भी राज्य की राजनीति करनी है। तेजस्वी इस दल के सर्वमान्य नेता हैं, लिहाजा उन्हें जीत-हार की कठोर समीक्षा करनी चाहिए। भावनाओं के बजाय फैक्ट पर फोकस रहना चाहिए।

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