किसान उगाना जानते हैं, बेचना सीख लें

किसान स्थायी दुकान न खोलना चाहें तो
मूविंग शॉप भी खोल सकते हैं।
आखिर गुड़, आम वे घोड़ागाड़ियों या
बैलगाड़ियों पर बेचते ही हैं। सरकार का मुंह
देखने के बजाय खुद समाधान सोंचे। बाकी प्रदर्शन
करने के लिए हर कोई स्वतंत्र है।
कई बार मन में यह सवाल उठता है कि पंजाब समेत जिन इलाको के किसानों ने हरित क्रांति की मलाई खाई, वही बार-बार क्यों आंदोलित होते हैं? हमेशा वही प्रदर्शन करने क्यों दिल्ली आते हैं? हरियाणा और वेस्टर्न यूपी के जाट किसानों की ही अधिकतर भागीदारी इसमें क्यों होती है? अगर ये किसानों के प्रतिनिधि हैं तो बिहार-झारखंड के किसानों को क्यों नहीं बुलाते? क्या उनके पास दिल्ली आने-जाने लायक भी पैसा नहीं है क्योंकि उनमें अधिकतर सीमांत किसान हैं। ईस्टर्न यूपी के किसानों की भागीदारी क्यों नहीं दिखती? 

एक सवाल उठता रहता है मन में। किसान खुद को सिर्फ उत्पादन तक क्यों सीमित रखता है? वह भंडारण क्यों नहीं सीखता? वह उत्पादन को बेचने की कला क्यों नहीं डेवलप करता? फिर उसे एमएसपी के पचड़े में पड़ना ही नहीं पड़ेगा। आखिर किसान अपने जानवरों के लिए भूसे  और अपने खाने लायक साल भर के अनाज का भंडारण तो करता ही है। वह अपनी उतनी ही फसल बेचे जितने में वह अगली फसल की बुआई कर सके और जरूरी काम निपटा सके, जिनमें बच्चों की फीस भी है। इसके बाद वह धान न बेचे, बल्कि उसे चावल में परिवर्तित करके सीधे ग्राहकों को बेचे। यह बात मैं छोटे किसानों के लिए कह रहा हूं जिनके पास एक-डेढ़ एकड़ का मालिकाना हक है। यह ख्याल करे कि रहने वाले घर में भी वह रिहाइश का उतना ही इस्तेमाल करे जितनी उसकी जरूरत है। बाकी स्पेस को वह गोदाम में परिवर्तित कर दे  और अपनी उपज रखे।

किसान को चाहिए कि वह इफरात में किसी एक फसल का उत्पादन न करे। वह सात-आठ प्रकार का उत्पादन करे और शहर में एक दुकान लेकर अपना माल वही पर बेचे। दुकान के लिए वह वाजिब तनख्वाह पर एम्प्लॉई रखे और खुद निगरानी करे। वह सब्जी भी उगाए और मशरूम भी। अनाज भी पैदा करे और तेलहन फस भी। कुछ गाएं रखे और उनका घी बेचे, दूध नहीं। गाय के गोबर का इस्तेमाल पहले गोबर गैस बनाने में करे और फिर देसी केचुओं की मदद से जैविक खाद बनाए। फिर उस खाद का इस्तेमाल अपने खेत में करे। अपने खेत की मिट्टी को आर्गेनिक सर्टिफाइड करवाए और दुकान पर ऑर्गेनेक फूड बेचे। फिर उसे कोई बिचौलिया ठग नहीं पाएगा और न उसे परेशान होना पड़ेगा। किसान यह भ्रम न पालें की वे बनिये का काम क्यों करेंगे। टाटा कम्पनी नमक बेच सकती है और अम्बानी गाजर-मूली, तो किसानों को क्या दिक्कत है?

Comments

Unknown said…
बात एकदम सही है।

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