बिहार में दो असफल राजनीतिक उत्तराधिकारी
चिराग पासवान और तेजस्वी यादव में कई समानताएं है। दोनों अपनी इच्छा से जिस फील्ड में गए, वहां असफल रहे। चिराग फ़िल्म इंडस्ट्री में और तेजस्वी क्रिकेट ग्राउंड पर। इसके बाद दोनों को विरासत में राजनीति मिली, जिसे वे सम्भाल नहीं पा रहे। रामविलास पासवान या लालू यादव ने खुद को राजनीति में स्थापित करने के लिए जो संघर्ष किया, उसका दशांश भी ये विरासत को संभालने में भी नहीं कर रहे।
चिराग पासवान ने हालिया विधानसभा चुनाव के दौरान जो नकारात्मक और भ्रम की राजनीति की, उसका परिणाम सामने है। 135 पर लड़कर एक पर विजय। अगर उनका उद्देश्य सिर्फ जेडीयू को रोकना था तो उसमें वह जरूर सफल रहे। लेकिन कोई राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए लड़ता है या सिर्फ किसी को हराने के लिए कैंडिडेट उतारता है?
तेजस्वी यादव भले यह सोचकर राहत महसूस करें कि राजद बिहार विधानसभा में सबसे बड़ा दल बना है और उसने 75 सीटें जीती हैं। लेकिन उसे यह भी देखना चाहिए राजद राज्य की 144 सीटों पर चुनाव लड़ भी तो रहा था। इसके मुकाबले 110 सीटों पर लड़कर बीजेपी ने 74 सीटें जीतीं। जाहिर हैं कि बीजेपी ने राजद से बेहतर परफॉर्म किया। राजद ने बीजेपी से सिर्फ एक सीट अधिक जीती है। दूसरी बात, इस चुनाव में राजद का एम फैक्टर उसके हाथों से निकलकर ओवैसी के aimim के पास चला गया है। अब राजद क्या सिर्फ वाई फैक्टर पर बिहार की राजनीति करेगा?
राजनीति में कुछ भी सम्भव है। कल हो सकता है कि तेजस्वी चिराग और नीतीश कुमार के साथ मिलकर सरकार बना लें, लेकिन फिलहाल तो दोनों राजनीतिक उत्तराधिकारियों पर असफलता का ठप्पा लग ही चुका है
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