बिहार : एवरेज वोटिंग में सरकारें रिपीट होती ही हैं

चुनाव का एक बुनियादी फार्म्युला है। कम वोट हो तो वर्तमान सरकार या जनप्रतिनिधि रिपीट होता है। एंटी इनकंबैंसी फैक्टर 65 पर्सेट से कम वोट पर काम नहीं करता। क्षमता से अधिक सीटों पर लड़ने का नुकसान होता है और इससे जीती जा सकनी वाली सीटें भी हाथ से निकल जाती हैं। हारे हुए खिलाड़ियों की टीम बनाकर आप मैच जीत नहीं सकते। अधिकतर लोग शांति के साथ जीना चाहते हैं और वे किसी ऐसी जगह पर वोट नहीं करते, जिसके बाद वे राह चलते सुरक्षित महसूस न करें। पटना की दो सीटों बांकीपुर और कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम वोटिंग हुई। बांकीपुर में 35.85 और कुम्हरार में 35.69 फीसदी वोट पोल हुए। दोनों सीटों पर वर्तमान विधायक दोबारा जीत गए। इस सीट से प्रत्याशी नितिन नवीन लगातार चौथी बार चुनाव जीते। इसी तरह कुम्हरार से बीजेपी के अरुण सिन्हा फिर चुनाव जीते, जबकि मीडिया की निगाह में वह अलोकप्रिय हो चुके थे। बिहार विधानसभा चुनाव के तीनों फेज में औसत मतदान 60 पर्सेंट तक नहीं पहुंचा, ऐसे में एग्जिट पोल और मीडिया में किस तरह सरकार बदल रही थी, यह समझना बहुत मुश्किल था। कांग्रेस ने 2015 में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 सीटें जीती थीं। इस बार उसने 70 सीटें ले ली। नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस 20 सीटें जीतती भी नहीं दिख रही। बांकीपुर में उसके पास प्रत्याशी भी नहीं था, सो शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को उम्मीदवार बना दिया गया। लव सिन्हा के चेहरे से शायद ही कोई वाकिफ हो। उनकी पहचान यही है कि वह शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे हैं और शत्रु खुद इस समय राजनीतिक हाशिये पर हैं। मधेपुरा जिले की बिहारीगंज सीट पर कांग्रेस ने शरद यादव की बेटी सुभाषिनी यादव को प्रत्याशी बनाया। सुभाषिनी को चुनाव न जीतना था न वह जीतीं। जेडीयू के निरंजन कुमार मेहता उन पर 17 हजार निर्णायक मतो की बढ़त बनाए हुए हैं। बक्सर जिले की राजपुर सीट से भी कांग्रेस के पास उम्मीदवार नही था। उसने यहां से पिछले चुनाव में बीजेपी कैंडिडेट रहे विश्वनाथ राम को उम्मीदवार बनाया और इसमें वह सफल रही। हालांकि विश्वनाथ राम को यह जीत उनके भाजपाई बैकग्राउंड की वजह से मिली। कांग्रेसी प्रत्याशी होते हुए भी उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में जेपी जयंती के दिन जेपी के फोटो का भी इस्तेमाल किया था। एग्जिट पोल के आते ही तमाम वेबसाइट्स और चैनल पर तेजस्वी यादव की सफलता की कहानियां चलने लगीं। एक कहानी यह बताई गई कि उन्होंने हरियाणा के लोगों पर भरोसा किया और जीत की दहलीज तक पहुंचे। महेंद्रगढ़ के किसी संजय यादव की कहानी सामने आई। हालांकि तेजस्वी का महागठबंधन जीत नहीं सका। कांग्रेस के रणदीप सुरजेवाला बिहार प्रचार करने गए।सुरजेवारा हरियाणा के हैं और जींद उपचुनाव हारने के साथ-साथ 2019 में विधानसभा चुनाव भी हार चुके हैं। उनके सहारे कांग्रेस बिहार में बढ़िया प्रदर्शन की उम्मीद लगाए बैठी थी। इसी तरह कैप्टन अजय यादव भी बिहार में कांग्रेस के लिए लगे रहे। कैप्टन खुद 2019 का लोकसभा चुनाव गुड़गांव से हार चुके हैं। हां, उनके बेटे चिरंजीव यादव (जो लालू यादव के दामाद हैं) जरूर हरियाणा विधानसभा का चुनाव रेवाड़ी सीट से जीते थे, लेकिन उनकी जीत इस वजह से हुई क्योंकि रेवाड़ी के मौजूदा विधायक रणधीर कापड़ीवास का टिकट काटकर सुनील मुसेपुर को दे दिया गया था। नवादा से राजद ने जिस विभा देवी को कैंडिडेट बनाया, उनके पति राज वल्लभ यादव गैंगरेप में उम्रकैद काट रहे हैं। विभा देवी अपने पति को बेकसूर मानती हैं। विभा देवी यह चुनाव भले जीत रही हों. लेकिन 2019 में लोकसभा का चुनाव वह हार चुकी हैं। संदेश से किरण देवी प्रत्याशी हैं और वह भी जीत रही हैं। उनके पति अरुण यादव रेप और सेक्स रैकेट चलाने का आरोप लगने के बाद से फरार हैं। पहले राउंड की वोटिंग के ठीक पहले जब तेजस्वी यादव ने कहा था कि लालूजी के राज में गरीब लोग बाबूसाहब के सामने सीना तान कर चलते थे तो कई लोगों को सुपौल जिले की त्रिेवेणीगंज (सुरक्षित) सीट से 1990 में जीते योगेंद्र सरदार की याद आ गई थी जिन्होंने मां के पास सो रही लड़की को उठाकर गैंगरेप किया था। अधिकतर लोग यह कहानी भूल भी चुके थे लेकिन योगेंद्र सरदार को इसी साल 31 जनवरी को उम्रकैद हुई, सो लोगों को तत्काल वह घटना याद हो गई थी। लोग जंगलराज को भूल रहे थे, लेकिन नौ को लालूजी की रिहाई और 10 को नीतीश की विदाई, यह कह-कहकर तेजस्वी ने ही लोगों को जंगलराज की याद दिला दी और खुद के लिए चुनावी चक्रव्यूह तैयार कर लिया। अभी कोरोना प्रोटोकॉल की वजह से अधिक संख्या में लोगों के जुटेने पर पाबंदी है, लेकिन एग्जिट पोल के आधार पर ही पटना में राजद के एक प्रत्याशी के लोग 15-20 हजार लोगों को खाना खिलाने के लिए टेंट लगवा रहे थे, यह क्या यह बताने के लिए काफी नहीं था कि जीतने के बाद तेजस्वी के लोग कानून का कितना सम्मान करेंगे? यह ठीक है कि इस घटना के पहले वोटिंग हो चुकी थी लेकिन यह सोच को सामने लाने के लिए काफी था। इस नतीजे के बाद राजद भले सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी हो लेकिन यह देखना भी दिलचस्प रहेगा कि खुद उसके प्रदेश अध्यक्ष जगतानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह किसी तरह 200 से भी कम वोटों से चुनाव जीते हैं। चुनाव एक्चुअल दुनिया में होता है लेकिन कुछ लोग इसे वर्चुअल दुनिया में लड़ते हैं। द प्लूरल्स की पुष्पम प्रिया चौधरी भी इन्हीं में से एक हैं। वह खुद को भावी सीएम बताकर चुनाव लड़ती रहीं लेकिन जिन दो सीटों पर वह उतरीं, उनमें से किसी सीट पर एक हजार वोट भी नहीं पा सकीं।

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