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मंगल पांडेय |
बिहार में एक बार फिर चुनी हुई सरकार ने शपथ ले ली, लेकिन राज्य के सेहत मंत्री रहे मंगल पांडेय को मंत्री बनाना चौंकाने वाला है। सरकार चाहे जो कहे, बिहार में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्टर कमज़ोर है, यह मानने के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं है। 2017 में जब बक्सर में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे का बक्सर में पैर टूट गया था, तब सदर अस्पताल में एक्सरे करनेवाली मशीन काम नहीं कर रही थी। उन्हें प्राइवेट डायग्नोस्टिक सेंटर पर ले जाया गया, फिर इस मामूली इलाज के लिए पहले पटना और फिर दिल्ली चले गए। मुजफ्फरपुर का जानलेवा चमकी बुखार सबको याद ही है। स्वास्थ्य विभाग की कमी का ठीकरा लीची के सिर फोड़ दिया गया। मंगल पांडेय चुनाव भी नहीं लड़े, विधान परिषद के सदस्य हैं। फिर पार्टी के सामने उन्हें मंत्री बनाने की क्या मजबूरी थी? क्या इन्हें मंत्री बनाकर बीजेपी अपने ब्राह्मण वोटरों का ईगो शांत कर रही है?
बीजेपी ही नहीं, पूरा एनडीए शाहबाद क्षेत्र के चारों जिलों, आरा, बक्सर, कैमूर और रोहतास में करीब-करीब साफ हो गया। सिर्फ आरा से अमरेंद्र प्रताप सिंह और इसी जिले की बड़हरा सीट से राघवेन्द्र प्रताप जीते हैं। बीजेपी इस क्षेत्र में एक मंत्री पद देकर दोबारा फैलाव की सोच रही हो, इसलिए भी अमरेंद्र प्रताप का नम्बर आया। शाहबाद में जदयू के दो मंत्री जयकुमार सिंह और संतोष निराला चुनाव लड़े और दोनों ही हार गए हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान आमतौर पर विधायकों और पार्षदों पर सांसद प्रत्याशी के पक्ष में वोटिंग करवाने का दबाव रहता है। यही फार्मूला सांसदों पर ही होना चाहिए। बक्सर लोकसभा के तहत आने वाली सभी 6 सीटों पर एनडीए परास्त हुआ तो इसके लिए स्थानीय सांसद अश्विनी चौबे की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। रोहतास की सभी सीटें एनडीए हारी तो सासाराम के सांसद छेदी पासवान जवाबदेह क्यों नहीं?
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