पायलट तो लैंड कर गए, भाजपा को क्या मिला?
राजस्थान मे महीने भर तक चले सियासी उठापटक के बाद यह सवाल उठा कि सचिन पायलट को इससे क्या मिला? उनकी उपमुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष दोनों की कुर्सी जाती रही। विधानसभा में बैक बेंच हो गए। उनके सिपहसालार भी प्रभावहीन हो गए।
लेकिन एक दूसरा बड़ा सवाल जो अब उठना शुरू हुआ है वह यह कि भाजपा को कांग्रेस के इस झगड़े से क्या राजनीतिक लाभ मिला? लाभ के बजाय उसकी प्रदेश में गुटबाजी सामने आ गई। पायलट की शिकायत पर तो प्रदेश कांग्रेस प्रभारी अविनाश पांडेय हटा दिए गए लेकिन भाजपा जो संगठन होने का दावा करता है, में व्यक्ति की ताकत दिखी। कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व या यों कहें कि गांधी परिवार ने मामले को संभाल लिया, तीन सदस्यीय कमिटी भी बना दी और प्रदेश प्रभारी को वहां से रुखसत भी कर दिया, लेकिन बीजेपी तो खंड-खंड होती दिखी। एक खंड मैडम का और दूसरा शेखावत, कटारिया और राठौड़ का।
वसुंधरा राजे बीजेपी की सीनियर लीडर हैं और राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। पूरे प्रकरण के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी। राजनीतिक हलकों में चर्चा रही कि उनका मौन समर्थन अशोक गहलोत को हासिल है। अशोक गहलोत उनकी राजनीतिक ताकत समझते हैं तभी उनकी सरकार ने अदालती आदेश के बाद भी वसुंधरा राजे से सिविल लाइंस में 13 नंबर का बंगला यह कह कर खाली नहीं करवाया कि उनकी वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए यह बंगला आवंटित किया जाता है। गौरतलब है कि वसुंधरा इस समय सिर्फ विधायक हैं। न नेता विपक्ष और न ही उपनेता प्रतिपक्ष।
बीजेपी जो खुद को अनुशासित संगठन होने का दावा करती है, जहां व्यक्ति से अधिक संगठन की चलती है, ऐसा महसूस हुआ कि वहां चली तो सिर्फ वसुंधरा राजे की। मीडिया रिपोर्ट्स है कि उनके समर्थक विधायकों ने गुजरात जाने से इनकार कर दिया। संगठन का सबसे अधिक मजाक उड़ा 14 अगस्त को विधानसभा में। वहां बीजेपी के चार विधायक लापता हो गए। ये विधायक हाउस में पहुंचे थे और फिर धीरे-धीरे उनका कोई पता नहीं चला। मोबाइल भी स्विच ऑफ हो गए। अपने इन एमएलए की यह हरकत देख कर ही बीजेपी ने विश्वास मत पर मत विभाजन की मांग नहीं की और विश्वास प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हो गया। जब भी बीजेपी कभी आत्मवलोकन करेगी, उसमें राजस्थान का यह चैप्टर जरूर शामिल होगा कि व्हिप जारी होने के बाद भी उसके चार विधायकों ने विधानसभा छोड़ दी थी और पार्टी उन्हें शो कॉज भी नहीं कर सकी।
विधानसभा में विश्वास मत पेश होने के दौरान बाहर घनघोर बारिश हुई और उसका असर अभी तक जयपुर के कई इलाकों में दिख रहा है। बीजेपी में संगठन पर जो व्यक्तिवाद बरसा है, वह भी राजनीतिक हलकों में लंबे समय तक महसूस होता रहेगा। हालांकि इस विवाद के दौरान बीजेपी ने अपनी प्रदेश इकाई को पुनर्गठित किया, लेकिन संगठन का करिश्मा दिखा नहीं।
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