राजस्थान में सियासी शह-मात (डायरी)

कुछ दिन पहले राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को निकम्मा कह दिया था। उस बयान के विरोध में ग्रेटर नोएडा के ह्र्दयस्थल परी चौक पर गुरुवार को प्रदर्शन हुआ।
बाहरियों का रहा है जलवा (23 जुलाई 2020)
राजस्थान की राजनीति में दूसरे राज्यों से गए लोग जब-तब जलवा दिखाते रहे हैं। सचिन पायलट प्रकरण भी इसका उदाहरण है। सचिन पायलट का परिवार मूल रूप से ग्रेटर नोएडा, यूपी के वैदपुरा गांव का है। इनके पिता राजेश पायलट यहां से राजस्थान गए और वहां की राजनीति में खुद को स्थापित किया। विधानसभा के 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने जब सरकार में वापसी की तो उसका काफी श्रेय सचिन पायलट के राजनीतिक प्रबंधन को दिया गया। उसके अगले साल लोकसभा चुनाव हुए और सीएम अशोक गहलोत ( जो वहां के मूल निवासी हैं) के बेटे जोधपुर सीट से चुनाव हार गए। हालिया राजनीतिक उठापटक में अशोक गहलोत जिस नेता के सहारे गुर्जर वोटों के प्रति आश्वस्त होने की कोशिश कर रहे हैं, वह जोगिंदर अवाना भी नोएडा, यूपी के हैं। अवाना नोएडा की राजनीति में भी सक्रिय रहे और फिर राजस्थान की नदबई सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीत गए। कहा जाता है कि बाद में जब बसपा के विधायकों को कांग्रेस ने अपने में समाहित कर लिया तो उसमे जोगिंदर अवाना की बड़ी भूमिका बताई जाती है।
इससे पहले 2014 में बीजेपी ने लोकसभा की सभी 25 सीटें जीती थी। उसका श्रेय बीजेपी की तत्कालीन सीएम वसुंधरा राजे को जाता है जो मध्य प्रदेश की हैं, हालांकि शादी उनकी राजस्थान में हुई है। हाल के राजनीतिक घटनाक्रम में भी वसुंधरा राजे की अहमियत दिखी और यहां तक कहा गया कि उन्हीं की वजह से अशोक गहलोत की कुर्सी तात्कालिक तौर पर बच गई।
इससे पहले मध्य प्रदेश के गुना में पैदा हुए शिवचरण माथुर को याद करिए। वह दो बार मुख्यमंत्री बने थे। दो दिन पहले मानसिंह एनकाउंटर अदालत से फर्जी साबित होने के बाद शिवचरण माथुर भले ही उस केस को लेकर चर्चा में आए हों लेकिन 1984 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस ने राज्य की सभी 25 सीटें जीती थीं, तब माथुर ही राजस्थान के सीएम थे। यह अलग बात है कि उस चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर भी काम कर रही थी।
1972 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में दिग्गज भैरो सिंह शेखावत चुनाव हार गए थे। उन्हें कांग्रेस के युवा नेता जनार्दन सिंह गहलोत ने हरा दिया था। भैरो सिंह शेखावत उस वक्त तक विधानसभा के कई चुनाव जीत चुके थे। उनकी गहलोत से हुई हार में दूसरे राज्यों से जाकर बसे वोटरों की बड़ी भूमिका थी।----------------------------------------------------------------------------------
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कुछ दिन पहले राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को निकम्मा कह दिया था। उस बयान के विरोध में ग्रेटर नोएडा के ह्र्दयस्थल परी चौक पर गुरुवार को प्रदर्शन हुआ। |
बाहरियों का रहा है जलवा (23 जुलाई 2020)
राजस्थान की राजनीति में दूसरे राज्यों से गए लोग जब-तब जलवा दिखाते रहे हैं। सचिन पायलट प्रकरण भी इसका उदाहरण है। सचिन पायलट का परिवार मूल रूप से ग्रेटर नोएडा, यूपी के वैदपुरा गांव का है। इनके पिता राजेश पायलट यहां से राजस्थान गए और वहां की राजनीति में खुद को स्थापित किया। विधानसभा के 2018 में हुए चुनाव में कांग्रेस ने जब सरकार में वापसी की तो उसका काफी श्रेय सचिन पायलट के राजनीतिक प्रबंधन को दिया गया। उसके अगले साल लोकसभा चुनाव हुए और सीएम अशोक गहलोत ( जो वहां के मूल निवासी हैं) के बेटे जोधपुर सीट से चुनाव हार गए। हालिया राजनीतिक उठापटक में अशोक गहलोत जिस नेता के सहारे गुर्जर वोटों के प्रति आश्वस्त होने की कोशिश कर रहे हैं, वह जोगिंदर अवाना भी नोएडा, यूपी के हैं। अवाना नोएडा की राजनीति में भी सक्रिय रहे और फिर राजस्थान की नदबई सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीत गए। कहा जाता है कि बाद में जब बसपा के विधायकों को कांग्रेस ने अपने में समाहित कर लिया तो उसमे जोगिंदर अवाना की बड़ी भूमिका बताई जाती है।करवट की तलाश में ऊंट (29 जुलाई 2020)
पॉलिटिक्स को लेकर पुरानी कहावत है, पता नहीं इस राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा? राजस्थान की राजनीति की भी फिलहाल यही दशा-दिशा है। ऊंट चूंकि राजस्थान का राजकीय पशु है, इसलिए थोड़ी चर्चा ऊंटों की भी।
कोरोना काल में ऊंटों पर बुरा असर पड़ा। जब इस महामारी का दौर शुरू हो रहा था तब राजस्थान के विभिन्न क्षेत्रों में चैत्र मेले की शुरुआत हो रही थी। इस मेले में बड़ी संख्या में ऊंटपालक भी पहुंचते हैं और जानवरों की खरीद-फरोख्त करते हैं। सरकार ने कोरोना की वजह से मेला बीच में ही बन्द कर दिया, लॉकडाउन हो गया और मेला बिखर गया। मीडिया रिपोर्ट्स है कि कई पशुपालको के सामने अपने ऊंटों को वहीं लावारिस छोड़कर लौटने के अलावा कोई चारा नहीं था, क्योंकि उनके लिए चारे का इंतज़ाम करना भी मुश्किल था।
अब आते हैं हाथी पर। हाथी बसपा का चुनाव चिह्न है और हाथी छाप पर चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे छह लोग हाथी का साथ छोड़कर हाथ के साथी बन गए। बसपा ने कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए समर्थन दिया, केकिन कांग्रेस ने पूरी बसपा अपने में समाहित कर ली। इसे लेकर राजस्थान हाइकोर्ट में लड़ाई जारी है। इससे पहले 2008 नें भी कांग्रेस ने राजस्थान में सरकार बनाने के लिए बसपा के छह विधायकों को अपने दल में मर्ज कर लिया था।
राजस्थान बीजेपी को देखिए। वहां वसुंधरा राजे शीर्ष नेतृत्व को खटकती हैं, लेकिन उन्हें साइड करने की हिम्मत भी नहीं कर रहा। बताया जाता है कि वसुंधरा के साथ बीजेपी के 45 विधायक हैं, जो सचिन पायलट को समर्थन देने पर मुश्किल कर सकते हैं। केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को राज्य में खड़ा करने की कोशिश हो रही है, लेकिन उन पर कई आरोप लग चुके हैं और जांच भी चल रही है। अगर गजेंद्र सिंह शेखावत कहीं उलझते हैं तो राज्य बीजेपी पर वसुंधरा राजे की पकड़ वैसे ही मजबूत रहेगी। माना जा रहा है कि सचिन पायलट प्रकरण में कांग्रेस भले कमज़ोर हुई हो, बीजपी सवालों के घेरे में आई ही, लेकिन वसुंधरा राजे राज्य की राजनीति में मजबूत हुई हैं। जानने वाले बताते हैं कि अगर वसुधरा कहीं उलझीं तो फिर सांसद ओम माथुर को मौका मिल सकता है।
राजस्थान के मेले में बसपा का खेमा दो बार उजड़ चुका है। उसके हाथी (विधायक) दूसरे खेमे में जा चुके हैं। दूसरी बार भी ऐसा हुआ है और पार्टी सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस के खिलाफ वोट करने के लिए अपने उन विधायकों को व्हिप जारी कर दिया, जो कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। लड़ाई यहीं पर राजस्थान से निकलकर यूपी पहुंच गई। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बिना नाम लिए बसपा को भाजपा का अघोषित प्रवक्ता बता दिया। मायावती और प्रियंका गांधी के मन पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भी नहीं मिले थे, यद्यपि बसपा-कांग्रेस और सपा, ये तीनों दल मिलकर चुनाव लड़ रहे थे। उस समय प्रियंका गांधी पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी थीं और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया थे। इसके बावजूद प्रियंका मेरठ (वेस्टर्न यूपी) के अस्पताल में भर्ती भीम आर्मी के चंद्रशेखर से मिलने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर के साथ गई थीं। इस मुलाकात के बाद महागठबंधन दिखावे का ही रह गया था। बसपा प्रमुख मायावती के बारे में कहा जाता है कि वह नहीं चाहतीं कि कोई और दलित नेता उनके सामने उभरे और प्रियंका गांधी ने यही करने की कोशिश की थी।
देखने में तो राजस्थान की लड़ाई राज्य की लग रही है, लेकिन आब इस लड़ाई का ऊंट यूपी तक पहुंचता दिख रहा है। वैसे इस लड़ाई का एक चेहरा सचिन पायलट यूपी के ही हैं और राज्य में उनका विकल्प बनने को आतुर जोगिंदर अवाना भी। लड़ाई राजस्थान की है, लेकिन पहले ही दिन से इन दोनों के गृह जनपद नोएडा में नारेबाजी, प्रदर्शन और पुतला दहन के कार्यक्रम चल रहे हैं। जोगिंदर भले कांग्रेस में सचिन का विकल्प बनने के लिए जोर लगा रहे हों, लेकिन उनके सामने अभी गहलोत के खेल मंत्री अशोक चांदना भी तो हैं, जो इसी बिरादरी से आते हैं।
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नसुंधरा बनाम दीया (02 अगस्त 2020)
राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे के लिए खतरे की घण्टी बजने की बात लोग कहने लगे हैं। प्रदेश कार्यकारिणी के हालिया विस्तार को देखकर ऐसा लग भी रहा है।
बीजेपी ने राजसमंद से सांसद दीया कुमारी को प्रदेश महामंत्री बनाया है। दीया जयपुर के पूर्व सवाई राजघराने की बेटी हैं और इस परिवार का काफी असर है। वसुंधरा राजे का जन्म राजपूत सिंधिया परिवार में हुआ, उनकी शादी धौलपुर के जाट परिवार में हुई और बेटे दुष्यंत की शादी उन्होंने गुर्जर परिवार में की। ये तीनों परिवार आज़ादी से पहले राजघराने थे। इस तरह तीन प्रभावशाली जातियों में वसुंधरा राजे की स्वीकार्यता दिखती है।
मीडिया रिपोर्ट्स है कि वसुन्धरा राजे के मुख्यमंत्रित्व काल में जाटों की अधिक पूछ थी और इससे राजपूत उपेक्षित महसूस करते थे। अब अगर वसुंधरा को किनारे किये जाने पर जाट नाराज़ होते हैं तो बीजेपी ने इसे मैनेज करने के लिए पहले से ही जाट प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। वसुंधरा राजे के मुकाबले दीया कुमारी को आगे बढ़ाया जाता है तो राजपूत बीजेपी के करीब ही आएंगे। दीया की शादी के समय राजपूतों ने विरोध किया था, क्योंकि दोनों एक गोत्र के थे। अब दीया के तलाक के साथ ही यह किस्सा भी खत्म हो चुका है। साथ ही वह पार्टी का महिला फेस भी होंगी और इस तरह भी वसुंधरा की कमी पूरी होगी । जाट कांग्रेस के साथ भी रहेंगे क्योंकि कांग्रेस ने हाल ही में गुर्जर नेता सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष से हटाने के बाद जाट गोविंद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है। सामने से तो नहीं लगता लेकिन हो सकता है कि भरतपुर के जाट नेता (राजा के नाम से चर्चित) मानसिंह एनकाउंटर में तत्कालीन डीएसपी कान सिंह भाटी पर हत्या का आरोप साबित होने का फैक्टर भी खामोशी से काम करे।
राजस्थान की राजनीति में वहां के भूतपूर्व राजघरानों का अभूतपूर्व असर है। इस लिहाज से भी दीया का कद बढ़ना वसुंधरा राजे के लिए चिंता की बात होगी। जयपुर में जाने वाले पर्यटकों को पैसे देकर ही सही, वहां दीया कुमारी एंड फैमिली के साथ लंच करने का मौका मिल रहा था। इस तरह दीया कुमारी की इमेज पब्लिक में बन ही रही होगी। ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह की बेटी दीया कुमारी और उनके बच्चे ही अब सवाई घराने के उत्तराधिकारी हैं।
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आरक्षण का लॉलीपॉप (3 अगस्त 2020)
राज्य में जारी सियासी गहमागहमी के बीच सीएम अशोक गहलोत ने मोस्ट बैकवर्ड क्लास को राज्य न्यायिक सेवा में 5 फीसदी आरक्षण देकर बड़ी बढ़त ले ली है। इसमें गुर्जर, गड़रिया, बंजारा, रायका-रेबारी, गाड़िया-लुहार शामिल हैं। बीजेपी अभी जहां अपने घर का डैमेज कंट्रोल करने में वसुंधरा राजे-दीया कुमारी तक उलझी रही, वही कांग्रेस ने रिजर्वेशन की चाल से गुर्जर वोटरों को रिझाने की कोशिश की है, जो राज्य की राजनीति में प्रभावशाली हैं।
सचिन पायलट को डिप्टी सीएम और प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद कांग्रेस का गुर्जर वोटों को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक था। रिजर्वेशन की यह घोषणा उस चिंता को कम करने का प्रयास माना जा सकता है। राज्य में राजपूत और जाट वोटों को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों प्रमुख दल अपनी-अपनी चाल चल चुके हैं। अब गुर्जर वोटों की खींचतान शुरू हुई है। हालांकि गुर्जर वोटों को साधना किसी पार्टी के लिए आसान भी नहीं है, क्योंकि एक राजनीतिक म्यान में जाट और गुर्जर रूपी दो तलवारें नहीं रहतीं।
कहा जाता है कि एक बार चौधरी चरण सिंह ने अजगर (अहीर, जाट, गुर्जर) सनुदाय बनाने की कोशिश की थी, जो सफल नहीं हुई थी।
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