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Showing posts from 2019

क्यों रघुबर डूब गए?

सरजू ने धारा बदली और रघुबर उसमें डूब गए। ठीक है रघुबर (रघुबर दास) को सरजू (सरयू राय) के कुपित होने का खमियाजा भुगतना पड़ा, लेकिन उनके अनुज लक्ष्मण (प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ) क्यों हारे? रघुबर जिस सूर्यवंश से आते हैं, उसके दिनेश (विधानसभा अध्यक्ष दिनेश उरांव) पर क्यों ग्रहण लगा? जवाब सीधा नहीं है। घना कुहरा छाया हुआ है। चीजें साफ नहीं दिख रही हैं। चलिए इसका एक कारण पत्थलगड़ी आंदोलन को मानते हैं। आंदोलन का पत्थर जमीन में गड़ता गया और बीजेपी सरकार उखड़ती गई। यह सच है तो फिर उस खूंटी सीट पर भाजपा के नीलकंठ मुंडा कैसे जीते, जहां यह आंदोलन हो रहा था। उसी खूंटी जिले की दूसरी सीट तोरपा पर भाजपा के ही कोचे मुंडा क्यों जीते? जाहिर है कि इसका असर चुनाव में नहीं था। बेरोज़गारी एक कारण हो सकती है। इसका जिक्र रघुबर के कैबिनेट मंत्री के रूप में सरजू राय कई बार कह चुके थे, लेकिन कारणों के रूप में इसकी चर्चा नहीं हो रही। कई लोग बताते हैं कि कई महकमों में कर्मचारी नहीं हैं, वर्कलोड बढ़ता जा रहा है लेकिन बहाली नहीं हो रही। यह रघुबर के खिलाफ अफवाह नहीं थी, बल्कि तल्ख सच्चाई थी, जिस...

CAA -सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला

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इस सरहदी जिले में कम अज़ कम (कम से कम) 5 हज़ार पाकिस्तान से आये शरणार्थी हैं। शायद ही ऐसा कोई मुस्लिम परिवार हो, जिसकी रिश्तेदारी पाकिस्तान में न हो, फिर भी शांति है। CAA को लेकर दिल्ली-लखनऊ की तरह बवाल नहीं है। तारबंदी के बाद उस पार जाना मुमकिन नहीं, फिर भी मलाल नहीं। चौड़ी सड़क है जो आमतौर पर सेना और बीएसएफ के लिए है, गांव इससे जुड़े नहीं हैं, फिर भी कोई शिकवा नहीं। भेड़ और गाय चराने के अलावा रोज़गार नहीं, फिर भी शिकन नहीं। नवंबर से फरवरी तक 6 हज़ार रुपये महीने पर 29 दिन तक ड्राइवर की नौकरी, उस एक दिन की उम्मीद में 29 दिन कब कटते हैं, पता नहीं चलता। यहां लखनऊ-दिल्ली की तरह पढ़े-लिखे लोग नहीं हैं। और यही शांति की वजह है।  यह न तो अदब का शहर लखनऊ होने का दम भरता है न दिलवालों की दिल्ली होने का दावा करता है।यह जैसलमेर है। कई गांव सड़कों से जुड़े नहीं हैं। लोग दो तीन परिवार के समूह में भी रहते हैं। सिर्फ बिजली का कनेक्शन लेने के लिए उन्हें पते में ढाणी लिखना पड़ता है, क्योंकि इससे कम पर कनेक्शन नहीं मिलता। सड़क चाहिए भी नहीं,  क्योंकि लोगों को लगता है कि बाहर से आये लोग...

यह बीजेपी की स्ट्रैटिजी है

हरियाणा में विरोधी माने जाने वाले जाट बेस्ड जनतांत्रिक गठबंधन पार्टी (जजपा) के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद बीजेपी ने महाराष्ट्र में विरोधी एनसीपी के साथ सरकार बनाने का दावा कर दिया। साथ ही सीएम और डिप्टी सीएम पद की शपथ भी ले ली। बीजेपी की रणनीति को समझिए। उसने पहले कई राज्यों में ऐसा किया कि स्थानीय लेवल पर दबंग जाति या जातियों का जो दल था, उसके विरोध में चुनाव लड़ा। यह दबंगई कई कारणों से है जिनमें से एक जनसंख्या भी है। उस आधार पर ये जातियां इतराती हैं और चुनाव में खुद को प्रभावशाली बताती हैं। बीजेपी ने बिहार और यूपी में यादवों के खिलाफ कम आबादी वाली जातियों को खामोशी से एकजुट कर दिया और यह प्रतिशत यादवों और उनकी मित्र जाति की संख्या से अधिक हो गया। जो लोग विभिन्न कारणों से इन जातियों के साथ ईजी फील नहीं करते थे, उन्हें बीजेपी ने एक प्लैटफॉर्म दिया। दोनों राज्यों में बीजेपी हुकूमत में है। हरियाणा राज्य की स्थापना के मूल में ही जाट अस्मिता है। जाट इस राज्य पर अपनी चौधराहट समझते हैं। लेकिन हकीकत यह है कि इस औद्योगिक राज्य में दूसरे राज्यों से आए लोगों की अच्छी-खासी ...

इस अस्पष्ट जनादेश के संदेश स्पष्ट हैं

छोटा राज्य, बड़ी राजनीति, हरियाणा को लेकर कहा जाने वाला मुहावरा फिर सही साबित हुआ है। मतदान से पहले तक आसानी से जीत रही बीजेपी नतीजों के व्यूह में फंस गई। कांग्रेस को सहानुभूति में वोट मिले या भाजपा से नाराज़ वोटर उसके साथ हो लिए, यह मीमांसा का विषय हो सकता है। शुरू में सिर्फ जजपा किंग मेकर की भूमिका में दिख रही थी, अब कई किंगमेकर हो गए हैं।   कांग्रेस : पार्टी राज्य में न सिर्फ दोबारा जीवित हुई है, बल्कि उसने दमदार वापसी भी की है। चुनाव से ऐन पहले राज्य में नेतृत्व परिवर्तन का पॉजिटिव असर पार्टी के प्रदर्शन पर पड़ा। इस नतीजे ने पार्टी के अंदर क्षेत्रीय क्षत्रपों का कद बड़ा किया है वही यह भी साबित हो गया कि पार्टी कम से कम हरियाणा के अंदर सिर्फ राहुल-प्रियंका पर निर्भर नहीं है। प्रियंका स्टार प्रचारक होने के बावजूद विधानसभा चुनाव के दौरान यूपी में संगठन के चुनाव  में उलझी रहीं, वहीं राहुल ने बेमन से प्रचार की रस्मअदायगी की। पार्टी का जिलों में संगठन भी नहीं था। हालांकि इसका एक दूसरा पक्ष भी है और वह यह कि बिना संगठन चुनाव में इतनी सफलता तभी मिलती है जब जनता विकल...

यमुना की अकाल मौत

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दिल्ली में आईटीओ के पास मृत यमुना यमुना ने अपने भाई यमराज से सभी प्राणियों से मौत का भय खत्म करने या आशीर्वाद मांगा तो यमराज ने इससे इनकार कर दिया। पुनः यमुना ने यह वर मांगा कि भाई दूज के दिन जो यमुना में स्नान करेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। इस तरह यमुना ने मानव जाति को अकाल मृत्यु से मुक्ति का प्रयास किया। और बदले में मनुष्यों ने क्या किया? यमुना की ही अकाल मौत का इंतज़ाम कर दिया। कुछ दिन पहले ब्रज 84 परिक्रमा लगा रहे दो श्रद्धालु हरियाणा-यूपी सीमा पर यमुना के जल का आचमन कर अकाल मौत को प्राप्त हो चुके हैं। नमामि गंगे परियोजना भी अभी इसमें प्राण यानी ऑक्सीज़न का संचार नहीं कर सकी है।

महाभारत और भाजपा

महाभारत काल में दुर्योधन ने दो बड़ी गलतियां की। पहली बार कृष्ण की बात नहीं मानकर और दूसरी बार कृष्ण की बात मानकर। जब कृष्ण ने कहा कि पांडवों को सिर्फ पांच गांव दे दो तब उसने कृष्ण की नहीं सुनी थी। दूसरी बार जब वह गांधारी के सामने बिना कपड़ों में जा रहा था, तब कृष्ण ने उसे ऐसा करने से रोका औऱ उसने यह बात मान ली, जो उसकी मौत का कारण बनी। कुरुक्षेत्र के सत्ता संग्राम में बीजेपी ने भी दो गलतियां की और वह सामान्य बहुमत से पीछे रह गई। एक तो उसने अलोकप्रिय हो चुके मंत्रियों-रामबिलास शर्मा, कविता जैन, कैप्टन अभिमन्यु और ओमप्रकाश धनखड़ जैसे लोगों को टिकट दिया, जिनका हारना तय था। दूसरा उसने अपने उन लोगों को टिकट नहीं दिया जो या तो जीत गए या जिनकी वजह से बीजेपी का कैंडिडेट भी नहीं जीत सका और वे खुद भी हार गए। जैसे-पृथला से नयनपाल रावत, पुन्हाना से रहीश खान और रेवाड़ी से रणधीर कापड़ीवास। अब बीजेपी को जजपा के साथ का दोहरा फायदा होगा। एक यह कि अब सिर्फ भूपेंद्र सिंह हुड्डा जाटों के सबसे बड़े नेता नहीं रह जाएंगे। जाटों की निष्ठा हुड्डा और चौटाला में बंट जाएगी। इस विधानसभा के चुनाव...

रोम पोप का, रेवाड़ी किस गोप का?

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गुड़गांव के रास्ते जाने पर साबी नदी का यह पुल पार कर ही रेवाड़ी जा सकते हैं बरसों पहले बिहार के मधेपुरा से लालू यादव और शरद यादव चुनाव लड़ते थे और नारा लगता था रोम पोप का, मधेपुरा गोप का। आज हरियाणा के रेवाड़ी में उसी लालू के दामाद चिरंजीव राव कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। मतदाता भले मुखर नही हो रहा हो लेकिन खामोश हवाओ से यही सदा सुनाई देती है कि रेवाड़ी किस गोप का? शरद यादव इस बार कांग्रेस के स्टार प्रचारक हैं।  जहां मैं खड़ा हूं, उसके पीछे साबी नदी के बहाव क्षेत्र के अवशेष हैं। राजस्थान से निकलकर रेवाड़ी की सरहद से होकर गुजरने वाली साबी नदी 40 साल से सूखी है। कभी यह नदी बरसात में लबालब रहती थी। कांग्रेस को देखें तो उसकी हालत साबी नदी जैसी हो रही है। लगातार 5 बार यहां से जीतकर मंत्री बने कैप्टन अजय यादव विधानसभा के पिछले चुनाव में तीसरे नम्बर पर चले गए थे। फिर वह मई में हुआ लोकसभा का चुनाव भी हारे। चिरंजीव राव इन्हीं के बेटे हैं। राजस्थान से बहकर रेवाड़ी आने वाली साबी नदी सूख चुकी है। क्या राजस्थान विधानसभा से कांग्रेस के विजय की जो हवा बही थी, कांग्रे...

तू चांद है...

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वह चांद जो सदियों से रोज़ छत पर आता है, मुंडेर पर आता है, नदी किनारे आता है, आंगन में आता है, बच्चों के लिए सोने के कटोरे में दूध-भात लाता है, उनके साथ खेलता है वह हमसे इतनी दूर है, यकीन नहीं होता। कहा जाता है कि जब भगवान राम का जन्म हुआ तो सूर्यास्त हो ही नहीं रहा था। जब सारे देवी-देवताओं ने भगवान राम के दर्शन कर लिए तब रात हुई और चांद को भगवान राम का दर्शन करने का मौका मिला था। चांद ने उलाहना भरे शब्दों में इसकी शिकायत राम से की थी और यह गलती मानते हुए राम ने अपने नाम के साथ ही चन्द्र को स्थापित किया। सूर्यवंशी राम इसीलिए रामचंद्र हुए। वह चांद जो रात में रास्ता दिखाता है, कभी किसी चौबारे पर चमकता है तो कभी कहीं जुल्फों की घनी छांव में छुपने की कोशिश करता है, कभी किसी के बाजुओं में कसमसाता है तो कहीं किसी के होठों पर फिसलता है। कभी किसी की करधन में समाता है तो कभी किसी की हंसली बनकर नितांत व्यक्तिगत क्षणों में चुभन का अहसास कराता है। वह चांद जो हर पल हमारे साथ होता है, वह इतनी दूर है कि पहुंचने में 48 दिन लग गए। वह भी दो किमी प्रति सेकंड की स्पीड पर। वह चां...

कोसने से पहले सोचिए

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यह है गाजियाबाद संसदीय क्षेत्र का दलित मोहल्ला बीचफटा। यहां लोगों ने साफ कहा कि उनके कच्चे मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के हो रहे हैं और वे बीजेपी के अलावा किसी और को वोट नहीं देंगे। चुनाव आयोग ने कई जगहों पर रोक विजय जुलूस निकालने पर लगाई है, लेकिन मातम मनाने पर नहीं, इसलिए पानी पी पीकर कोसिए। लेकिन आपको यह बताना होगा कि 5 साल तक सिवाय कोसने के आपने क्या किया है? यह सवाल कांग्रेस से भी है और लेफ्ट से भी। आप अपने समर्थकों के साथ आभासी दुनिया में मोदी को कोसते रहे। राजस्थान, एमपी और छतीसगढ़ में जीत के बाद आप इतराते रहे लेकिन यह समझ नहीं पाए कि वहां की जनता का गुस्सा इस हार के साथ उतर गया है और वे लोकसभा चुनाव में मोदी के साथ आएंगे। राजस्थान ने तो खुलकर कहा था कि मोदी तुझसे बैर नहीं, रानी तेरी खैर नहीं। आप नारे का मर्म समझने की जगह कोसने में तल्लीन रहे।  एनसीआर में इखलाक और जुनैद हत्याकांड हुए। सीपीएम की वृंदा करात की आवाजाही वहां लगी रही। उसी दौरान दिल्ली में एक मुस्लिम लड़की से प्रेम करनेवाले फोटोग्राफर अंकित सक्सेना की हत्या कर दी गई। वृंदा क्या, कोई अदना वामपंथी...

बेगूसराय बनाम बगोदर

पहले बिहार फिर झारखंड के गिरिडीह जिले की बगोदर विधानसभा सीट से लड़ते और जीतते थे। विधायक रहते हुए शहीद हुए। हमलावरों ने जब पूछा कि तुममे से कौन है महेंद्र सिंह तो निर्भीक हो ...

किसकी गोद में वामपंथ ; जसोदा मैया या पूतना के

आज ही की तरह वह सम्भवतः 31 मार्च 1997 की तारीख थी। बिहार में गरीब-गुरबों और सामाजिक न्याय की सरकार थी। जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके आइसा से जुड़े चंद्रशेखर सिवान में व्यवस्...

यह नुमाइश सराब की सी है

हस्ती अपनी हबाब की- सी है यह नुमाइश सराब की- सी है नाज़ुकी उसके लब की क्या कहिए पंखुड़ी इक गुलाब की- सी है मीर तकी मीर ने कई साल पहले जब यह रचना की तो सराब का इस्तेमाल बड़ी नज़ाकत से कि...

चुनावी चैता

पिया नाही अइले हो रामा, पिया नाही अइले, बीत गइले सउँसे चइतवा हो रामा पिया नाही अइले। जैसे ही कॉमरेड चंदू ने चैती गाना शुरू किया, भाजपाई दीनानाथ भड़क गए। खूब बूझते हैं हम इसका म...

होली को नष्ट कर रही यह शिष्टता

हरसु ने गुलेल को दुरुस्त कर लिया था। मिट्टी की गोलियां बनाकर उन्हें धूप में सूखा ही नहीं लिया था, बल्कि कंचे भी खरीद लिए थे। कानून व्यवस्था सम्भालने को चौकस दरोगा की तरह गोल...

मैं बक्सर हूँ

मैं बक्सर हूं। जी हां, गंगा और ठोरा या गंगा और करमनासा के संगम पर बसा हुआ। मेरी सीमा से ही बिहार में गंगा नदी प्रवेश करती है, मेरी ही धरती पर 1539 में शेरशाह ने हुमायूं को और 1764 में अं...

इहै हउवै भइया इलेक्शन का मेला

इहै हउवै भइया इलेक्शन का मेला अभी आपने प्रयागराज के कुंभ का मजा लिया होगा अब इलेक्शन रूपी सत्ता के कुंभ में डुबकी लगाने को तैयार हो जाइए। यहां भी वैसा ही नजारा रहता है। अब आ...