डुमरांव : क्रॉसिंग वाले दोराहे पर खड़े हैं वोटर
बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान आज बात करते हैं बक्सर जिले की महत्वपूर्ण सीट डुमरांव की। छठिया पोखरा और डुमरेजिन माई वाले इस शहर की। पिछले परिसीमन में इसकी कई पंचायतें मठिला, अटांव आदि राजपुर रिजर्व क्षेत्र में जा चुकी हैं।
डुमरांव रेलवे स्टेशन की पश्चिमी गुमटी (वेस्टर्न क्रॉसिंग) से दो रास्ते उत्तर की ओर जाते हैं। एक भोजपुर चौरस्ता (चौराहे) पर पहुंचता है और दूसरा नया भोजपुर, जहां कई दशक से डुमरांव का पूर्व राज परिवार किलेनुमा मकान में रहता है। यद्यपि ये दोनों रास्ते उसी रोड में मिलते हैं जहां से राइट टर्न लेकर पटना (विधानसभा) पहुंचा जा सकता है। इसी दोराहे पर फिलहाल खड़े हैं एनडीए के वोटर। भाजपा के भी और जदयू के भी और सोच रहे हैं कि कौन सा टर्न राइट (उचित) होगा? एक हद तक राजद के वोटर भी इसी दोराहे पर हैं। पुराने लोग बताते हैं कि नया भोजपुर जानेे वाले रास्ते पर पहले एक बोर्ड लगा था, जिसपर लिखा था कि यह आम रास्ता नहीं है। लेकिन अब इस रास्ते का इस्तेमाल सभी करते हैं।
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डुमरांव का राजगढ़ |
टिकट दिया है, जो बीजेपी और जेडीयू के वोटों के सहारे मैदान में हैं। दूसरी तरफ ददन यादव हैं
जिन्हें स्वजातीय वोटों के अलावा अपनी परफॉर्मेंस के आधार पर वोट मिलने की उम्मीद है। महागठबंधन ने यहां से माले के अजीत सिंह को मैदान में उतारा है। दिलचस्प यह है कि माले भी राजद के वोटों के सहारे मैदान में है जिसमें जातिगत आधार पर अधिकतर हिस्सा यादवों का है।
ददन यादव भी इसी वोट पर दावा करेंगे। ददन यादव पहले निर्दलीय जीत चुके हैं और एक बार
राजद में शामिल होकर मंत्री भी बन चुके हैं, दूसरी तरफ माले ने कहा है कि महागठबंधन की
जीत होने की स्थिति में वह सरकार में शामिल नहीं होगा।
एनडीए के परंपरागत वोटों में सेंध लगाने के लिए एलजेपी ने यहां से अखिलेश कुमार सिंह को मैदान
में उतारा है। इस पॉइंट पर देखें तो एनडीए के वोटर तिराहे पर दिखते हैं क्योंकि एलजेपी एनडीए
का पुराना सहयोगी है और जीत के बाद जो समीकरण बनेगे, उसमें वह बीजेपी के करीब जाता
दिख रहा है।
प्लूरल्स के रवि सिन्हा का नॉमिनेशन कैंसिल हो चुका है। इस दल की चीफ पुष्पम प्रिया चौधरी ने
पहले राउंड में अपने 28 कैंडिडेट्स का नॉमिनेशन कैंसिल होने पर लोकतंत्र अमर रहे और जो डर गया समझो मर गया #सुशासन जैसी व्यंग्यात्मक बातें लिखी हैं, लेकिन नॉमिनेशन कैंसल होने के बाद यहां के कैंडिडेट ने फेसबुक पर लाइव होकर कहा था कि उन्हें कागजात के साथ 11 बजे बुलाया गया था, लेकिन वह 11.30 बजे वहां पहुंचे थे। उन्होंने अपनी किस्मत को दोषी ठहराया था।
चुनाव में दिलचस्पी ला चुके हैं डुमरांव के पूर्व राजघराने के शिवांग विजय सिंह, जो निर्दलीय लड़ रहे हैं। इनके दादाजी कमल सिंह पहली और दूसरी लोकसभा के लिए निर्दलीय चुने गए थे लेकिन 1989 और 1991 में जब वह बीजेपी के टिकट पर लड़े तो परास्त हो गए थे। यह परिवार तब से बीजेपी समर्थक है लेकिन शिवांग का निर्दलीय लड़ना लोगों की समझ में नहीं आ रहा। यह चर्चा आम है कि क्या उन्होंने बीजेपी के अंदर अपनी यह इच्छा जताई थी?
थोड़ा विषयांतर
डुमरांव का राजगढ़ (देखें दूसरी फोटो) जहां से कभी डुमरांव रियासत संचालित होती थी। राजस्थान के जैसलमेर और डुमरांव के इस किले में एक समानता है। वह यह कि दोनों जगहों पर राजपरिवार किले के बाहर रहता है और आमलोग किले के अंदर। राजगढ़ के अंदर बांके बिहारी का मंदिर है, जहां शहनाई सीखते बिस्मिल्ला खां का बचपन बीता था। गढ़ के अंदर स्कूल, गैस एजेंसी, पोस्टऑफिस, टेलिफोन एक्सचेंज, बैंक और बड़ी संख्या में लोगों के आवास हैं। 1992 में जब जिले की पहली वर्षगांठ मनाई गई थी तब जिलास्तरीय खेलकूद प्रतियोगिता के तहत यहां बॉलीबॉल का टूर्नामेंट हुआ था।
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