बिहार में गठबंधनों के अंतर्विरोध
बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा के भाजपा प्रेम के कारण जहां एनडीए में अंतर्विरोध की बात हो रही है, वहीं महागठबंधन में तेजस्वी यादव का नेतृत्व सभी दल स्वीकार कर रहे हैं। वहां ऐसी कोई समस्या नहीं दिखती। लेकिन महागठबंधन में शामिल दल आपस में भी एकमत या सहमत हों, ऐसा भी नहीं लगता। लेफ्ट के नेता कांग्रेस को लेकर असहज हैं तो कांग्रेस के वोटर लेफ्ट खासकर माले को लेकर। यह भी रिपोर्ट है कि राजद के कैंडिडेट सीपीआई नेता कन्हैया कुमार का प्रोग्राम अपने इलाके में नहीं करवाना चाहते,क्योंकि उन्हें सैनिकों के परिवारों का वोट खोने का भय सता रहा है।
लेफ्ट के नेता यह मान रहे हैं कि कांग्रेस ने लड़-झगड़कर क्षमता से अधिक सीटें ले ली हैं। कई जगह पर कांग्रेस के पास तो लड़ाने लायक उम्मीदवार भी नहीं थे। यह बात कुछ हद तक सही भी है। बक्सर जिले की राजपुर (सु) सीट महागठबंधन में कांग्रेस के पास गई है। कांग्रेस ने यहां विश्वनाथ राम को उम्मीदवार बनाया है जो 2015 में यहां से बीजेपी के कैंडिडेट थे और एनडीए के बंटवारे में सीट जेडीयू के पास जाने के कारण खाली हो गए थे। कांग्रेस ने उन्हें दिल्ली ले जाकर पार्टी की सदस्यता दिलवाई और फिर राजपुर का टिकट थमा दिया। विश्वनाथ राम का पूरा पारिवारिक परिवेश भाजपाई है। कांग्रेस समर्थक राजद को वोट करने के लिए तैयार हैं लेकिन माले को सीधे वोट देने में हिचक रहे हैं।
रोजगार या नौकरी का मुद्दा
जो लोग यह कह रहे हैं कि रोजगार या नौकरी बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार मुद्दा बना है, वे बिहार की राजनीति को नहीं जानते। 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में भी निजी तौर पर खोले गए सैकड़ों प्राइमरी स्कूलों को सरकारी कर वहां पढ़ा रहे शिक्षकों को रेग्युलर करने का वादा किया गया था वहीं 1995 के चुनाव में भी यह मसला जोरशोर से उठा था। तत्कालीन सरकार ने इसे बेहतर चारे के रूप में इस्तेमाल किया था जिसके सहारे उन्होंने वोट रूपी मछली फंसा ली थी। उस दौर में जो लोग ऐसे स्कूलों में पढ़ा रहे थे, उन्हें नियमित करवाने के नाम पर सिक्षा माफिया ने हजारों रुपये वलूल लिए थेे।
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