बक्सर : हॉट सीट का तमगा लुटा

बक्सर-पटना हाइवै फोर लेन हो रहा है और क्षितिज पर
उम्मीद का सूरज चमक रहा है। फोटो : रजनीकांत चौबे
बक्सर सोहनी पट्टी निवासी पंडित अशर्फी उपाध्याय की 1948 में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी ‘विलक्षण उपन्यास’। दस आने (साढ़े 62 पैसे) की इस किताब में वह लिखते हैं कि बक्सर एक विलक्षण शहर है। यहां कभी-कभी महाजन दान देते हैं तो आचरण हीन और खुशामदी ब्राह्मणों को ही देते हैं। पीठ की रगड़ से जो खटमल मारते हैं और थप्पड़ से मच्छर, वे खुद को पहलवान मानते हैं। हिंदू लोग मुर्गी का अंडा खाते हैं, लेकिन मुर्गी नहीं पालते। उन्होंने भले ही यह बात किसी और संदर्भ में लिखी हो लेकिन विलक्षण बात यहां चुनावों में भी दिखती है। यहां इंटरनैशनल स्तर पर चर्चित और करीब-करीब कन्फर्म हो चुके शख्स का टिकट कट जाता है। ढाई-तीन दशक से चुनाव लड़ रहे एनसीपी कैंडिडेट विशेश्वर पांडेय का पर्चा गलत या अपूर्ण भरे होने की वजह से रिजेक्ट हो जाता है और परशुराम व राम यहां के चुनावी रण क्षेत्र में आमने-सामने खड़े दिखते हैं। संयोग यह कि दोनों की जाति भी वही है, जो त्रेता में थी। आज बात बक्सर विधानसभा सीट की।

चुनाव की घोषणा होने के साथ ही बक्सर की सीट पूरे राज्य में हॉट हो गई थी। कारण था यहां डीजीपी पद से वीआरएस ले चुके गुप्तेश्वर पांडेय के चुनाव लड़ने की चर्चा। 8 अक्टूबर को नॉमिनेशन की लास्ट डेट थी और 7 तक जब बीजेपी और जेडीयू दोनों ने उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की तो उसमें कहीं भी गुप्तेश्वर पांडेय का नाम नहीं था। हॉट सीट होने का तमगा लुट चुका था, पांडेय जी का चुनावी दफ्तर बंद हो चुका था और परशुराम चतुर्वेदी बीजेपी का सिंबल लेने पटना चले गए थे। गुप्तेश्वर पांडेय फेसबुक पर लिख चुके थे कि वह यह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं और उन्हें फोन कर परेशान नहीं किया जाए। कुल मिलाकर हॉट सीट ठंडी पड़ चुकी थी। कांग्रेस से हालांकि यहां सिटिंग एमएलए मुन्ना तिवारी को ही टिकट दिया गया है लेकिन कांग्रेस ने भी यह सीट घोषित करने में पर्याप्त देरी की। 

यहां कैंडिडेट हालांकि 14 हैं लेकिन अभी तक मुख्य मुकाबला परंपरागत रूप से एनडीए और महागठबंधन में ही दिख रहा है। जय और तय, जय और विजय के नारे दोनों ओर से लग रहे हैं। रालोसपा और भारतीय सबलोग पार्टी ने भी कैंडडेट उतारे हैं, लेकिन उन्हें लड़ाई में आने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी। वैसे इस दौरान चौंकाने वाली परफॉर्मेंस एक निर्दलीय उम्मीदवार रामजी सिंह की दिख रही है। उनके जनसंपर्क अभियान में जुट रही भीड़ यदि वोटों में तब्दील हुई तो वह किसी का भी गणित गड़बड़ाने के लिए काफी होगी।

बक्सर में कई स्थानीय मुद्दे हैं जो मसले बन सकते हैं लेकिन बड़ी पार्टियां अभी इन पर खुद को फोकस नहीं कर रही हैं। लाइट एंड साउंड का पुनर्रुद्धार, केंद्रीय विद्यालय की अपनी इमारत, शहर के बीच में स्वास्थ्य सेवा आदि। इन सबके बीच पर्यावरण का मसला भी है।

बक्सर-पटना फोर लेन हाइवे बन रहा है और इसके बाद यहां से पटना का सफर स्पीडी हो जाएगा। लेकिन इस फोर लेन को बनाने में रोड किनारे लगे जो छायादार और फलदार पेड़ काटे गए, उनकी भरपाई नहीं हो रही। स्थानीय लोगों को बताया गया है कि  डिवाइडर पर सजावटी पौधे लगाए जाएंगे लेकिन उन पर न तो परिंदे घोंसला बना सकेंगे और न ही बरसात में बच्चे उनके नीचे से जामुन बीन (चुन) सकेंगे। फेफड़े कमज़ोर हुए तो कोरोना जैसी लंग्स को प्रभावित करने वाली बीमारियों का असर और ज्यादा होगा, इसलिए नए दरख्त लगाने पर चर्चा करनी होगी।

सीट का हॉट होने का तमगा भले लुट चुका हो लेकिन क्या आने वाले लोकसभा चुनाव में यहां बीजेपी की राजनीतिक विरासत किसी और के पास शिफ्ट होगी, यह चर्चा इस चुनाव में तो हो ही रही है। और इस विलक्षण शहर के लोगों को उम्मीद है कि उनकी सीट फिर हॉट हो जाएगी।



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