तरारी : जहां दिखता है लोजपा का भाजपा प्रेम
लोक जनशक्ति पार्टी के चीफ चिराग पासवान ने कुछ दिनों पहले कहा था कि मैं मोदी का हनुमान हूं और जरूरत पड़ने पर वह इसे दिखा भी सकते हैं। भोजपुर जिले की तरारी विधानसभा सीट पर चिराग का मोदी और भाजपा प्रेम साफ-साफ दिखता है। एनडीए के बंटवारे में यह सीट बीजेपी के पास चली गई तो चिराग ने यहां कैंडिडेट नहीं उतारा, जबकि लोजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और चार बार के विधायक रहे सुनील पांडेय खुद यहां से चुनाव लड़ना चाहते थे। वह पार्टी से इस्तीफा देकर निर्दलीय लड़ रहे हैं। चिराग को उनका पार्टी छोड़ना मंजूर था, लेकिन भाजपा के खिलाफ कैंडिडेट देना नहीं। सुनील पांडेय आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं, लेकिन जिताऊ उम्मीदवार भी माने जाते हैं। उनके भाई हुलास पांडेय लोजपा के टिकट पर बक्सर जिले की ब्रह्मपुर सीट से लड़ रहे हैं। पिछले असेंबली इलेक्शन में जब सीपीआई एमएल ने यह सीट जीती थी तब सुनील पांडेय की पत्नी गीता पांडेय तरारी से लोजपा उम्मीदवार थीं और कांटे की लड़ाई में एमएल के सुदामा प्रसाद किसी तरह 272 वोटों से जीत सके थे। तब यह राज्य की ऐसी सीट बनी थी, जहां सबसे कम मतों से हार-जीत हुई हो।बीजेपी ने यहां कौशल कुमार विद्यार्थी कौ उतारा है, रालोसपा से संतोष सिंह चंद्रवंशी और जाप के संजय राय भी हैं, लेकिन माना जा रहा है कि वोट माले के समर्थन और विरोध में पड़ेंगे। निर्दलीय सुनील पांडेय भले तरारी को औद्योगिक क्षेत्र बनाने की बात करें लेकिन उम्मीद यही है कि जो माले को हराने की पोजिशन में होगा, वही उसके सामने लड़ाई में रहेगा। फिलहाल त्रिकोणीय लड़ाई की बात समीक्षक मान रहे हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में माले पहले, लोजपा दूसरे और कांग्रेस उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे थे। इस बार माले और कांग्रेस एकसाथ हैं। राजद का वोट तो माले को शिफ्ट हो सकता है लेकिन कांग्रेसी वोट ट्रांसफर हो जाएगा, इसमें संदेह है। पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा राजग का हिस्सा थी। पहले इस सीट का नाम पीरो था तब वहां से 1990 में आईपीएफ भी चुनाव जीत चुका है। आईपीएफ का बाद में सीपीआई एमएल में विलय हो गया था। जिस सीट पर नक्सली विचारधारा को इतना खाद-पानी मिलता हो उसके बड़े नेता सुदामा प्रसाद सिर्फ 272 वोटों से जीतें तो इससे साफ है कि माले नए वोटर नहीं जोड़ पा रहा है। इस सीट पर फिलहात तो माले के समर्थन और उसे रोकने की लड़ाई वैसी ही दिख रही है, जैसे कभी सीवान में होती थी। माले और शहाबुद्दीन। राजद 2019 के लोकसभा चुनाव में इस इलाके में माले प्रेम दिखा चुका है, जब उसने इस संसदीय सीट से पार्टी कैंडिडेट राजू यादव के खिलाफ अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था। माले ने भी पाटलिपुत्र सीट पर इसका रिटर्न गिफ्ट राजद को दिया था। वहां सीपीआई एमएल ने राजद कैंडिडेट मीसा भारती को सपोर्ट किया था, हालांकि मीसा इसके बाद भी हार गई थीं। राजू यादव भी चुनाव नहीं जीत सके थे।
फोटो गूगल से
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