नौकरी करीं सरकारी, ना त बेचलीं तरकारी

1-बिहार विधानसभा के इस चुनाव में ऐसे बहुत सारे लोग वोट करेंगे, जो बिहार के वोटर होते हुए भी मतदान नहीं कर पाते थे। कोरोना काल में वे या तो वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं या फिर नौकरी छूटने पर घर जाकर बैठ गए हैं। उनके लिए पलायन और बेरोजगारी बड़े मुद्दे हैं। इसे भांपते हुए तेजस्वी और चिराग ही नहीं, भाजपा ने भी लाखों रोजगार की बात अपने मैनिफेस्टो में की है। तेजस्वी यादव ने जब दस लाख नौकरियों की  बात की थी, तब नीतीश कुमार ने कहा था कि इसके लिए पैसे का इंतजाम कहां से होगा? अब जब बीजेपी अपने संकल्प पत्र में 19 लाख नौकरियों की बात कह रही है तो नीतीश कुमार न सवाल पूछने लायक रहे न जवाब देने लायक। डिप्टी सीएम सुशील मोदी भी अब यह ट्वीट कर रहे हैं कि उनकी पार्टी ने पांच साल में 19 लाख जॉब की बात कही है। इसमें पांच लाख आईटी सेक्टर में, एक लाख हेल्थ सेक्टर में, 10 लाख एग्रीकल्चर सेक्टर में, तीन लाख एजुकेशन सेक्टर में होगा। राजद पहले ही दिन दस लाख जॉब देने की बात कह रहा है जिसके लिए वह पैसे कहां से लाएगा?


2-सारण की परसा विधानसभा सीट पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी जनसभा में हूटिंग होने पर आपा खो बैठे। बुधवार को हुई इस रैली में सीएम ने हंगामा करने वालों से कहा कि तुम्हें वोट नहीं देना है तो मत दो लेकिन डिस्टर्ब मत करो। मैं जानता हूं कि तुम किसके आदमी हो? उन्होंने ऐसे लोगों को सभा से निकालने को भी कहा। 2019 में हरियाणा विधानसभा चुनाव चल रहा था। एक सभा में सीएम मनोहरलाल ने अपने ही एक कार्यकर्ता का गला काट देने की बात मंच से कही थी, जब वह उन्हें मुकुट पहना रहा था। नतीजे आए तो बीजेपी की 2014 के हरियाणा विधानसभा चुनावों के मुकाबले सात सीटें कम आई थीं। इससे एक दिन पहले औरंगाबाद की सभा में महागठबंधन के सीएम फेस तेजस्वी यादव पर किसी ने चप्पलें फेंकी। तेजस्वी ने तत्काल अपने समर्थकों को चेताया कि उस व्यक्ति के साथ कोई दुर्वय्वहार नहीं करेगा। मीडिया रिपोर्टस है कि उस शख्स को भी समर्थक सभास्थल से दूर ले गए।क्या दो सीएम फेस नेताओं का अलग-अलग व्यवहार कुछ कहता है? नीतीश कुमार पुराने राजनीतिज्ञ हैं, फिर आपा क्यों खो रहे हैं? क्या उन्हें लगता है कि भाजपा भले उनके साथ गठबंधन में है लेकिन वह लोजपा के संपर्क में भी है। भाजपा के कई बड़े नेता पार्टी छोड़कर लोजपा से चुनाव लड़ रहे हैं और वहां भाजपा समर्थक अभी खुलकर जेडीयू के पक्ष में नहीं आ रहे हैं या लोजपा कैंडिडेट के साथ दिख रहे हैं। क्या राजग के अंदर का यह अंतर्विरोध नीतीश के गुस्से में झलका? दूसरी ओर महागठबंधन है जिसके सभी घटक दल साथ हैं और वह तेजस्वी यादव को अपना नेता मान रहे हैं।

3-महागठबंधन के पोस्टरों से लालू यादव गायब क्यों हैं? क्या यह खतरा है कि लोग लालू का चेहरा देखकर गठबंधन को वोट नहीं देंगे? लेकिन तेजस्वी इससे इनकार कर रहे हैं। उनका कहना है कि 2015 का चुनाव भी हमलोगों ने नीतीश कुमार का चेहरा आगे रखकर लड़ा था। लालू यादव की दुमका कोषागार मामले में हुई सजा की अवधि 9 नवंबर को पूरी हो रही है। चाईबासा कोषागार में हुई सजा की आधी अवधि बीत जाने के कारण उन्हें जमानत मिल चुकी है।दुमका मामले में भी जमानत के लिए लालू परिवार कोशिश करेगा ही। क्या महागठबंधन को यह डर है कि कहीं राजग ने चुनाव में इसे प्रचारित करना शुरू किया कि लालू को बेल मिल गई और बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी तो पटना में बैठकर लालू यादव ही सरकार चलाएंगे, तो फिर वैसे लोगों को समझाना मुश्किल हो जाएगा जिनके सत्ता विरोधी होने पर अपने पाले में आने की उम्मीद महागठबंधन को है।

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