सासाराम का संदेश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब से थोड़ी देर बाद बिहार में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत सासाराम से करने जा रहे हैं, उसके गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। मंच पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार की मौजूदगी भी उसी रणनीति का हिस्सा होंगे। बिहार चुनाव में यह चर्चा आम है कि जहां-जहां भाजपा के बागी लोजपा के टिकट पर मैदान में हैं, वहां-वहां भाजपा कार्यकर्ता जदयू कैंंडिडेट के बजाय लोजपा उम्मीदवार के साथ दिख रहे हैं। गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह कुछ दिन पहले कह चुके हैं कि जेडीयू ही एनडीए का हिस्सा है और नीतीश ही सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री होंगे, भले ही बीजेपी को जदयू के मुकाबले अधिक सीटें आएं। आज प्रधानमंत्री फिर इस ऊहापोह को खत्म करने की कोशिश करेंगे।
सासाराम, शाहाबाद क्षेत्र की एक शहरी विधानसभा सीट है। 2015 में यहां से राजद के अशोक कुशवाहा भाजपा के जवाहर प्र्साद को हराकर जीते थे। अशोक कुशवाहा अब जदयू में हैं और इसी सीट से तीर छाप पर चुनाव लड़ रहे हैं। जवाहर प्रसाद के बारे में कई मीडिया रिपोर्ट्स है कि वह गठबंधन धर्म निभाते हुए अशोक कुशवाहा का साथ देने के बजाय पूरे राजनीतिक दृश्य से गायब हैं। राजद ने यहां से वैश्य उम्मीदवार विजय गुप्ता को उतारकर भाजपा के वोट बैंक में सेंधमारी की जुगत लगाई है। जेडीयू के लिए यह बहुत चिंता की बात नहीं है। असल चिंता है जिले की नोखा सीट से चार बार के विधायक और बीजेपी के सीनियर लीडर रामेश्वर चौरसिया का यहां से लोजपा के टिकट पर मैदान में उतरना। कहा जा रहा है कि दिनारा की तरह यहां भी बीजेपी के समर्थक और कार्यकर्ता यहां अशोक कुशवाहा का साथ देने के बजाय रामेश्वर चौरसिया के साथ घूम रहे हैं। यह गफलत कहीं एनडीए उम्मीदवारों खासकर जदयू को भारी न पड़ जाए, इसलिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की संयुक्त सभा यहां रखी गई। यहां यह देखना भी दिलचस्प रहेगा कि चिराग तो खुद को मोदी का हनुमान बता रहे हैं लेकिन खुद मोदी उनके बारे में कुछ कहते हैं या नहीं? अगर मोदी चिराग को लेकर कुछ नहीं कहते हैं तो एनडीए के अंदर गफलत और बढ़ेगी।
यह संयोग ही है कि आज ही राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के भी जॉइंट प्रोग्राम हैं, लेकिन महागठबंधन के सामने भ्रम वाल स्थिति नहीं है जो एनडीए के सामने है।
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