कोरोना काल का औसत मतदान

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले फेज की वोटिंग समाप्त हो गई। इस दौरान 54.26 फीसद मतदान हुआ। हालांकि जिन सीटों पर संघर्ष अधिक दिख रहा था, वहां वोट पर्सेंट उत्साहजनक नहीं रहे। जहां व्यक्तिगत प्रतिष्ठा फंसी थी, वहां वोटिंग का रेश्यो जरूर ऊपर गया। 

शाहाबाद का कैमूर जिला, जहां की चारों सीटें बीजेपी ने 2015 के चुनाव में जीती थीं। वहां चैनपुर और रामगढ़ में सबसे अधिक वोटिंग हुई। चैनपुर तो फर्स्ट फेज में सबसे अधिक वोटिंग वाला सीट बन गया। वहां 63.33 प्रतिशत वोट पड़े। पिछली बार यहां बसपा से कांटे की लड़ाई में भाजपा करीब पौने सात सौ वोटों से जीती थी। हालात दोहराए जाने के संकेत मिल रहे हैं। अगर महागठबंधन के प्रत्याशी को भी जबरदस्त वोट मिले होंगे तो वोट पर्सेंट अधिक होने के बाद भी जीत-हार का अंतर अधिक हो जाएगा। फिर पिछली बार की तरह नजदीकी मुकाबला नहीं रह जाएगा। इसी जिले की दूसरी सीट है, रामगढ़। वहां पिछला चुनाव बीजेपी के अशोक सिंह ने जीता था। इस बार उनके सामने राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगतानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह और बसपा से अंबिका यादव हैं। यहां 60 फीसदी वोटिंग हुई है और तीनों उम्मीदवारों को लोगों ने दिल खोलकर वोट दिया होगा तो राजद के सुधाकर सिंह के लिए मुश्किल हो सकती है। यह वही सीट है जिसके बारे में कहा गया कि तेजस्वी यादव के बाबू साहेब वाले बयान का सबसे अधिक असर पड़ेगा। 

सीपीआई एमएल ने पहले फेज में सबसे अधिक 8 उम्मीदवार उतारे और शाहाबाद में उसने पांच कैंडिडेट दिए। माले इस बार पूरे तेवर में है लेकिन जहां उसके कैंडिडेट लड़ रहे हैं, वहां वोट पर्सेंट आश्चर्यजनक नहीं है। फर्स्ट फेज में जिस सीट पर सबसे कम 46 फीसद वोटिंग हुई, वह है काराकाट और वहां से माले का कैंडिडेट है। इसी तरह भोजपुर जिले की तरारी सीट जहां माले का सीटिंग एमएलए है वहां 50.5 फीसद वोट पड़े। यहां से चर्चित सुनील पांडेय निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और उम्मीद थी कि वोट पर्सेटं ऊपर जाएगा। इसी तरह डुमरांव में जहां चोर कोण में लड़ाई दिख रही थी, वहां 52.1 पर्सेंट वोट पड़े। यहां से भी सीपीआई एमएल मैदान में है। आरा में 48.89 फीसद वोट पड़े जहां से माले एक बार लोकसभा का चुनाव भी जीत चुका है। भोजपुर जिले की अगिआंव सुरक्षित सीट पर माले की मौजूदगी में 50.7 पर्सेंट वोट गिरे। 

रोहतास जिले की दो सीटें सासाराम और दिनारा चुनाव प्रचार के दौरान चर्चा में थीं, जहां भाजपा के दो बड़े नेता रामेश्वर चौरसिया और राजेंद्र सिंह बगावत कर लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार बन गए हैं, वहां भी वोट पर्सेंट 50 के आसपास सिमटा रहा। सासाराम में 50.5 जबकि दिनारा में 49.1 पर्सेंट पोलिंग हुई।

हो सकता है कि यह कहा जाए कि कोरोना के साए में हो रहे मतदान में इतने मतदाता घरों से निकले, यही बहुत है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि लाखों लोग बेरोजगार होकर घर पर बैठे हैं और हजारों वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। ऐसे लोग बिहार में भी बड़ी संख्या में हैं। अगर ये लोग जो अभी तक सिर्फ कागजों में राज्य के वोटर थे, इस बार फिजिकली अपने क्षेत्र में मौजूद थे, तो वोट पर्सेंट क्यों नहीं बढ़ा, यह सवाल तो उठेगा ही। सवाल इसलिए भी उठेगा क्योंकि बिहार के डिप्टी सीएम यह सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि राज्य में कोरोना से सिर्फ 950 लोगों की मौत हुई, तो वोटर गए कहां?  सवाल इसलिए भी उठेगा कि रैलियों में उमड़ने वाली भीड़ को देखकर तेजस्वी रोमांचित हुए जा रहे थे, वे ऐन वक्त पर कहां चले गए? यह ठीक है कि औसत मतदान हुआ है लेकिन कोरोना काल में जब सारी गतिविधियां बंद हैं लोग अपने-अपने घरों में हैं, कोई कहीं घूमने या तीर्थाटन करने भी नहीं गया तो वोट इससे अधिक पोल होने चाहिए थे। सवाल इसलिए भी उठेगा क्योंकि तीनों कम्युनिस्ट पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ रही हैं तो उनके समर्थक-विरोधी अधिक संख्या में पोलिंग  सेंटर तक क्यों नहीं गए?

(नोट  : आंकड़े चुनाव आयोग द्वारा रात 11 बजे तक जारी आंकड़ों के आधार पर, इनमें बदलाव भी हो सकता है)

Comments

Unknown said…
चुनावी विश्लेषण तो उम्दा है ही, कोरोना के साइड इफेक्ट का भी सही इस्तेमाल लेख में देखने को मिला

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