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Showing posts from 2022

लेंटर के बोझ से दिल्ली में खिसकी भाजपा की जमीन?

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दिल्ली नगर निगम के लिए हुए चुनाव में बीजेपी की जमीन क्या लेंटर के मसले पर खिसक गई? नतीजे आने के बाद यह चर्चा भी जोर पकड़ रही है। एमसीडी चुनाव-2022 में आम आदमी पार्टी ने स्पष्ट बहुमत हासिल कर लिया है। 250 सदस्यीय सदन में पार्टी ने 134 सीटें जीती हैं। बीजेपी जो 15 साल से यहां सत्तारूढ़ थी, वह 104 सीटों के साथ विपक्ष में आ गई है। दिल्ली में फ्लैट डीडीए डिवेलप करता है, उसे बेचता है और उसके बाद इलाका दिल्ली नगर निगम के हवाले हो जाता है। उसके बाद डीडीए का कोई लेना-देना नहीं रह जाता। रेनोवेशन, री कंस्ट्रक्शन ये चीजें एमसीडी के बिल्डिंग डिपार्टमेंट के तहत चलती हैं। कच्ची कॉलोनियोंं में नक्शे  बनाने का जिम्मा भी एमसीडी के पास है। दिल्ली में दो तरह के लोग हैं, एक मकान मालिक और दूसरा किरायेदार। फर्ज करिये कि किसी ने 20 साल पहले डीडीए या बिल्डर या अनधिकृत इलाके में फ्लैट खरीदा। जब उसे रिपेयर कराने की जरूरत होगी तो नगर निगम की बाबूगिरी में उसे परमिशन ही नहीं मिलेगी। जब निर्माण कार्य शुरू होगा तब वहां भवन विभाग का जेई पहुंचेगा और मुंह बंद रखने और स्थानीय पार्षद को देने के नाम पर वसूली करेगा...

सिकुड़ रहा है अखिलेश यादव के ‘परिवार’ का दायरा?

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अपर्णा यादव ने इस साल यूपी विधानसभा चुनाव के तुरंत पहले जब बीजेपी जॉइन की थी तब यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि अखिलेश अपना परिवार नहीं संभाल पाए। अब कानाफूसी यह हो रही है कि परिवार का सपा प्रमुख अखिलेश यादव के लिए क्या मतलब है?  मुलायम सिंह यादव के निधन की वजह से मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। अखिलेश यादव वहां पूरे मनोयोग से  कैंपेन में लगे हुए हैं। लगातार रैलियां कर रहे हैं। इस चुनाव के लिए उन्होंने आने चाचा शिवपाल सिंह यादव के सार्वजनिक रूप से पैर छुए। कहा जाता है कि इस इलाके में शिवपाल यादव का प्रभाव है। इसी समय रामपुर और खतौली विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव हो रहे हैं, जहां पार्टी प्रमुख होने के नाते अखिलेश यादव को जाना चाहिए था, लेकिन अभी तक नहीं पहुंचे हैं। उनका सारा फोकस मैनपुरी सीट पर है। यह तय करना आसान भी है और नहीं भी कि उनका उद्देश्य अपनी पत्नी को चुनाव जिताना है या मुलायम सिंह यादव की विरासत बचाना। इससे पहले आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में इसी परिवार के धर्मेंद्र यादव सपा से लड़ रहे थे। अखिलेश एक दिन भी प्रचार करने नहीं गए। नतीजे आए तो अखिलेश य...

बक्सर की पहचान क्या सिर्फ भगवान राम से है?

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श्रीराम कर्म भूमि यानी बक्सर। आजकल एक यज्ञ भी हो रहा है वहां, अयोध्या से निकली श्रीराम चरण पादुका यात्रा भी पहुंचेगी, पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के माध्यम से बक्सर और अयोध्या सीधे जुड़ जाएंगे। लेकिन बक्सर की महत्ता क्या सिर्फ श्रीराम से है? ऐसा कहा जाता है कि सिद्धाश्रम जैसा तीर्थ न कभी हुआ है न होगा। अब सवाल यह है कि सिद्धाश्रम क्या है? सतयुग में जो सिद्धाश्रम था, त्रेता में वह वामनाश्रम, द्वापर में वेदगर्भापुरी और कलियुग में व्याघ्रसर हुआ। बक्सर इसी व्याघ्रसर का अपभ्रंश है। काशी, जिसे दुनिया का प्राचीनतम नगर माना जाता है, उसके बहुत पहले से यह स्थान आबाद था। यह मनोरम स्थान देव-दानव सभी को लुभाता था। शानदार वातावरण, मीठे जल की उपलब्धता और रसीले फलों के वृक्षों से भरा इलाका था यह। बहुत बाद में ऋषियों ने इसे तपस्या के लिए चुना। नारद, उद्दालक, भार्गव, गौतम, च्वयन जैसे ऋषि यहां तप करते थे। यहां नारद मुनि पहले से थे, श्रीराम बाद में महर्षि विश्वामित्र के साथ आए। बक्सर की गौरवमयी यात्रा में श्रीराम एक पड़ाव हैं। शहर में कई जगहों पर श्रीराम के धनुष का आकार के स्वागत द्वार बने हुए हैं, लेकिन स्थानीय ...

बिहार उपचुनाव, नतीजे उम्मीद के मुताबिक, पर संदेश गहरे हैं

बिहार में दो सीटों के लिए हुए उपचुनाव में कुछ भी अप्रत्याशित नहीं हुआ। 50 फीसदी से कुछ प्रतिशत अधिक हुए मतदान में सत्ता नहीं बदलती, यह फॉर्म्युला कायम रहा। मोकामा सीट पर अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी और गोपालगंज सीट पर दिवंगत विधायक सुभाष सिंह की पत्नी कुसुम देवी विजयी रहीं। मोकामा में जीत जहां एकतरफा रही, वहीं गोपालगंज में लास्ट राउंड तक रोमांच बना रहा। गोपालगंज सीट पर भाजपा के पक्ष में परिस्थितियां थीं। नहीं तो बीजेपी वहां हार जाती। बीजेपी वहां 1794 वोटों से ही जीती। वहां बीएसपी कैंडिडेट इंदिरा यादव को 8854 मत मिले। इंदिरा यादव तेजस्वी यादव की सगी मामी हैं। उनके नहीं रहने पर यह वोट गठबंधन उम्मीदवार को जाता। एआईएमआईएम के अब्दुल सलाम को 12214 वोट मिले। मुस्लिम वोट बीजेपी को तो मिलने नहीं थे, ये भी राजद कैंडिडेट मोहन प्रसाद गुप्ता को मिलते, लेकिन उनके ये वोट कम हो गए। राजद ने बीजेपी का वैश्य वोट काटने के लिए मोहन गुप्ता को उतारा, यह रणनीति ठीक थी, लेकिन सफल नहीं हो पाई। वैश्य वोट बीजेपी का आधार वोट माना जाता है। लेकिन बड़ी बात है बीजेपी का वहां जीतना। इस समय बिहार में सभी दल एक गठबंधन मे...

कैसे-कैसे रावण !

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राम विमुख अस हाल तुम्हारा,  रहा न कुल कोऊ रोवनिहारा। मानस में तुलसी ने रावण वध के बाद के हालात पर यह चौपाई लिखी है कि राम से विमुख होने पर उसके वंश में कोई रोने वाला नहीं बचा। इसमें थोड़ी अतिश्योक्ति है, क्योंकि विभीषण चिरंजीवी हैं और वह रावण कुल के ही हैं। लेकिन राम से विमुख होने का नुकसान तो रावण को हुआ ही। राम जन-जन में हैं। चैता और चैती गीतों में हैं, कजरी में हैं, शादी के मंडप में बैठे दूल्हे में हैं, जोगियों के निर्गुण में हैं, सुबह-सुबह के अभिवादन में हैं, हारे के सहारे में हैं और श्मशान घाट की ओर जाते हुए सत्य का बोध कराने में हैं। राम ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। सदैव दूसरों की मर्यादा का सम्मान किया। केवट प्रसंग के दौरान राम चाहते तो आराम से चलकर नदी पार कर जाते। केवट कहता है : एहि घाट तेँ थोरिक दूरि अहै कटिलौं जलथाह देखाइहौं जू इस घाट से थोड़ी ही दूर पर कमर तक पानी है, वहां से नदी पार कर जाइये। लेकिन राम को यहां गंगा की मर्यादा की चिंता है। उंस गंगा की, जो उनके चरणों से निकलकर शंकर की जटा में समाई हैं जिन चरणन से निकलि सुरसरि, शंकर जटा समाई जटाशंकरी नाम परयौ है त्र...

विरोधी दलों की बारात का दूल्हा कौन?

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अभी जो सीन बन रहा है, उसमें विपक्ष में 3 केंद्र दिख रहे हैं। एक नीतीश कुमार, दूसरे अरविंद केजरीवाल और तीसरे राहुल गांधी।  नीतीश कुमार कह रहे हैं कि वह विपक्ष को एकजुट करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य नहीं है। लेकिन अगर वह प्रधानमंत्री की रेस में शामिल नहीं होंगे तो तेजस्वी यादव का क्या होगा? राजद ने क्या नीतीश कुमार को बिहार का सीएम बनाए रखने के लिए जदयू से गठबंधन किया है? इसका जवाब नहीं है। तो नीतीश कुमार कुछ भी कहें, उन्हें इस रेस में शामिल होना ही पड़ेगा, नहीं तो राजद उन्हें बहुत दिनों तक सपोर्ट नहीं करेगा। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की दो राज्यों, दिल्ली और पंजाब, में सरकार है। बाकी जितने क्षेत्रीय दल हैं, वे पक्ष में हों या विपक्ष में, एक ही राज्य तक सिमटे हुए हैं। कुछ दिनों पहले से अरविंद केजरीवाल देश की बात करने लगे हैं। हरियाणा के हिसार से उनका देश को नम्बर वन बनाने का अभियान शुरू हो चुका है। नरेंद्र मोदी के खिलाफ वह 2014 में बनारस से लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। अति आकांक्षा भी उनके अंदर है। तो वह खुद को पीएम की दौड़ से कैसे बाहर कर लेंगे? इसके बाद हैं राहुल...

क्या कास्ट पॉलिटिक्स की ओर लौट रही है बीजेपी?

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जाटों को कितना साध पाएंगे भूपेंद्र यूपी विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद कहा जाने लगा था कि बीजेपी पहले जाति यानी कास्ट को धर्म से काउंटर करती थी अब इसे क्लास के हथियार से टक्कर दे रही है। हाल के दिनों में पार्टी ने ऐसे कई फैसले लिए जिससे ऐसा लगने लगा है कि बीजेपी कास्ट पॉलिटिक्स की ओर लौट रही है। बीजेपी ने यूपी का प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी को बनाया है जो जाट हैं। किसान आंदोलन के समय से और तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद भी धारणा यही रही कि जाट बीजेपी के खिलाफ हैं। हालांकि इसी साल हुए यूपी विधानसभा के चुनाव में बीजेपी ने हापुड, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर और बुलंदशहर समेत कई जिलों की सभी सीटें जीत ली थी। यह तब था जबकि कहा यह जाता था कि जाट बीजेपी के खिलाफ हैं। जाट पश्चिमी यूपी में प्रभावी हैं, बीजेपी की सीटें कुछ कम हुईं, लेकिन किसान आंदोलन में सिर्फ जाट ही शामिल नहीं थे। बीजेपी एक राष्ट्रीय पार्टी है और प्रदेश के किसी भी हिस्से से वह अपना अध्यक्ष चुन सकती है लेकिन जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बनाने के बाद भूपेंद्र चौधरी को यूपी भाजपा का अध्यक्ष बनाने से ऐसा...

कहे घाघ कुछ होनी होई

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दिन के बद्दर, रात निबद्दर बहे पुरवइया झब्बर-झब्बर कहे घाघ कुछ होनी होई कुआं के पानी धोबी धोई। यह कहावत सावन के महीने के लिए है। दिन में आकाश बादलों से ढंका रहे और रात में आसमान साफ रहे, साथ में पुरवा हवा ललकारे, तो ये अकाल के लक्षण हैं। ताल तलैया सूख जाएंगे और धोबी को कपड़े धोने के लिए कुएं के पानी का इस्तेमाल करना पड़ेगा। इसको सपोर्ट करती दूसरी कहावत है दिन में बदरी, रात में ओस कहे घाघ बरखा सौ कोस इसका अर्थ भी वही है कि दिन में बादल छाए रहे और रात में आसमान साफ हो तो सौ कोस यानी दूर-दूर तक बारिश के आसार नहीं हैं। सावन में पुरुवा हवा कजरी गीतों में ही अच्छी लगती है। हकीकत में सावन में पुरवइया अकाल का संदेश लाती है। सावन मास बहे पुरवइया बरधा बेच ले आव गईया यानी सावन के महीने में लगातार पुरुवा हवा चले तो खेती में कुछ नहीं बचता। इसलिए वैकल्पिक इंतज़ाम कर लेना चाहिए। घर में पैसे न हों तो बैलों को बेच कर गाय खरीद लेनी चाहिए, ताकि साल भर उसका दूध बेचकर परिवार पाला जा सके।

क्या उपराष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी कास्ट और क्लास में उलझ रही है?

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एनडीए की ओर से बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankhar) उपराष्ट्रपति (Vice President) पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया है। कहने के लिए धनखड़ एनडीए (NDA) कैंडिडेट हैं, लेकिन इस गठबंधन का सबसे बड़ा धड़ा होने की वजह से बीजेपी की पसंद और नीतियां ही आमतौर पर चलती हैं। यह चर्चा आम है कि जाट (Jat) वोटरों को साधने के लिए (जो कई कारणों से उससे खफा हैं) भी बीजेपी (BJP) ने धनखड़ को प्रत्याशी बनाया है। हालांकि सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या बीजेपी जिसने यूपी का चुनाव क्लास की राजनीति करके जीता था, अगले साल राजस्थान जीतने के लिए कास्ट की राजनीति कर रही है? लोकसभा के अगले चुनाव के बाद हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव हैं। बीजेपी वहां सत्ता में है लेकिन उसे जाट बेस्ड जननायक जनता पार्टी का सहारा लेना पड़ा है। क्या बीजेपी अगले चुनाव में सिर्फ जेजेपी के सहारे नहीं रहना चाहती? इसी साल यूपी विधानसभा के लिए चुनाव हुआ। जाट वोटरों की नाराजगी दिख रही थी, लेकिन बीजेपी ने जाटों के प्रभाव वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी शानदार प्रदर्शन किया, राज्य में सरकार तो बनी ही। बीजेपी की जीत के कई कारण थे, जिसने बड़े...

शताब्दी वर्ष में दिल्ली यूनिवर्सिटी

इस साल दिल्ल्ली यूनिवर्सिटी का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। कैरियर के लिहाज से इसे बेहतरीन विश्वविद्यालय माना जाता है। शानदार इमारतें और कैम्प्स प्लेसमेंट यहां की खासियत है। आला दर्जे के सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं और खेल प्रतिस्पर्धाएं भी। फैशन का ट्रेंड भी यहां से सेट होता है। दिल्ली 1911 में देश की राजधानी बन गई थी। उसके बाद 11 साल और लगे विश्वविद्यालय बनने में। फ़र्ज़ करिए कि अगर राष्ट्रीय राजधानी कलकत्ता ही रहती तो यहां क्या यूनिवर्सिटी बनती? यह जानना भी दिलचस्प रहेगा कि दिल्ली की मूल आबादी में पढ़ने-लिखने को लेकर कितनी स्वाभाविक ललक थी और है? काशी हिंदू विश्वविद्यालय यानी बीएचयू की स्थापना बनारस में 1916 में हो चुकी थी। डीयू से छह साल पहले। यूपी का पहला विश्वविद्यालय इलाहाबाद यूनिवर्सिटी है, जो 1887 में स्थापित हुआ था। बिहार की बात करें तो यहां पांचवीं शताब्दी में नालंदा और आठवीं-नौंवी शताब्दी में विक्रमशिला विश्वविद्यालय थे। आधुनिक काल में 1917 में पटना यूनिवर्सिटी की स्थापना हो चुकी थी, डीयू से पांच साल पहले। तो क्या यूनिवर्सिटी की जरूरत तब महसूस की गई, जब लगा कि राजधानी बनन...

How Can You रोक

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रविवार 26 जून को आजमगढ़ (Azamgarh) में जब लोकसभा उपचुनाव (Loksabha Bypoll) की काउंटिंग चल रही थी, तब सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) का एक विडियो वायरल हुआ, जिसमें वह एक पुलिस अधिकारी को हड़काने की कोशिश करते हुए कह रहे हैं कि How Can You Rok. इस हिंग्लिश का मतलब यह था कि तुम मुझे यानी कैंडिडेट को जाने से कैसे रोक सकते हो? वह पुलिस अधिकारी से उलझे हुए थे और उधर बीजेपी उनके लोकसभा में जाने का रास्ता रोक चुकी थी। नतीजे आए तो सपा 8679 वोटों से हार चुकी थी। इस सीट पर बीजेपी (BJP) कैंडिडेट दिनेश लाल यादव (Dinesh Lal Yadav) निरहुआ (Nirahua) को  3 लाख 12 हजार 768 वोट मिले। सपा कैंडिडेट धर्मेंद्र यादव को 3 लाख 4 हजार 89 और बसपा के गु़ड्डू जमाली को 2 लाख 66 हजार 210 वोट मिले। सपा के लोग कह रहे हैं कि बसपा (BSP) बीजेपी की बी टीम हो गई है और इनके गठबंधन ने सपा को हराया। इसके जवाब में बसपा कैंडिडेट ने कहा कि यह तो मैं भी कह सकता हूं कि सपा की वजह से बसपा हारी। आप मेरे वोट देख लीजिए कि क्या हम बीजेपी की बी टीम हैं? पूरे चुनाव में अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने रामपुर (Rampur) औ...

होली को नष्ट कर रही यह शिष्टता

हरसु ने गुलेल को दुरुस्त कर लिया था। मिट्टी की गोलियां बनाकर उन्हें धूप में सूखा ही नहीं लिया था, बल्कि कंचे भी खरीद लिए थे। कानून-व्यवस्था सम्भालने को चौकस दरोगा की तरह गोलियों की थैली कमर में लुंगी में बांध ली थी। इस प्रक्रिया में लुंगी की लंबाई घुटनों तक आ गई थी। गुलेल शोले के गब्बर सिंह की बंदूक की तरह कंधे पर विराजमान थी। बस अब इंतज़ार था होली का। बस इस बार कोई छेड़े और फिर स्वरचित गलियों के साथ लखेदा-लखेदी शुरू। कई साल से ऐसा होता आ रहा था। हरसु मिठाई की दुकान पर खड़े हैं। कोई उन्हें जलेबी ऑफर करता है तभी पीछे से कोई एक मग चाशनी उनके सिर पर डाल देता है। चाशनी डालने वाला तो भाग जाता लेकिन ऑफर करने वाला उनकी मौलिक गालियों की जद में आ जाता। इसी बीच जब वह आंखों में पड़ी चाशनी को साफ करते रहते, कोई उनकी लुंगी खींच देता। ये अलग बात है कि फिर किसी को पंचायत करनी पड़ती और हरसु को जलेबी के साथ चाय भी पिलानी पड़ती, तभी वह मानते। कुछ साल पहले होली के दौरान मुलाकात हुई थी। अपने दरवाजे पर खड़े नॉनस्टॉप गाली दे रहे थे, लेकिन इस बार गलियों में मौलिकता और उत्साह का तत्व कम था। क्या हुआ? पता चला अपने घर...

यूपी : यह तो होना ही था, पर सीटें इतनी कम !

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10 फरवरी 2022 को नोएडा से दादरी के चिटेहरा जाते हुए इस रास्ते से जाना हुआ। दूर तक फैले खेत और बीच में एक कमरे पर लहराता भाजपा का झंडा। चारों तरफ फसलें लहलहा रही थीं और मानो कह रही थीं कि ये सामान्य फसलें नहीं, वोट की फसलें हैं। और जब परिणाम आए तो यह गलत भी साबित नहीं हुआ। यूपी संग्राम का पहला चरण जहां 10 फरवरी को वोटिंग हुई थी, उसमें नोएडा-बुलंदशहर, गाजिियाबाद, हापुड़ और मधुरा जिले की सभी सीटें बीजेपी ने जीत ली। हापुड़ की धौलाना सीट तो बीजेपी पहली बार जीती। यह वही सीट है, जिस इलाके में एआईएमआईएम चीफ असद्दुदीन ओवैसी की कार पर फायरिंग हुई थी। हालांकि इतनी योजनाओं के बाद भी बीजेपी की इतनी कम सीटें क्यों आईं, यह बहस का मसला है। साफ-साफ दिख रहा था कि यूपी में कास्ट और क्लास की लड़ाई चल रही है। इसमें क्लास को जीतना था वह जीता। (क्या थी कास्ट और क्लास की लड़ाई, जानने के लिए पढ़ें ब्लॉग http://boldilse.blogspot.com/2022/02/blog-post.html  बीजेपी : हालांकि बीजेपी को उतनी सीटें नहीं मिलीं, जितनी क्लास वाले फॉर्म्युले के मुताबिक मिलनी चाहिए थी। अगर किसान सम्मान निधि प्रभावी थी, तो हर सीट...

यूक्रेन-अफगानिस्तान और यूपी चुनाव का सातवां चरण

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बनारस के अस्सी में पप्पू की अड़ी (दुकान) पर मिनी पार्लियामेंट चल रही है। कल प्रधानमंत्री यहां से चाय पीकर जा चुके हैं। इस पार्लियामेंट की खासियत यह है कि यहां मुद्दे के मुताबिक सदन के अध्यक्ष बदलते रहते हैं। चाहे अपनी सीट पर से बोलो चाहे वेल में जाओ, कोई पाबंदी नहीं है। हर-हर महादेव। शंकर जी के त्रिशूल पर बसे इस नगर में भी रूस और यूक्रेन के बहाने लोकल चुनाव और कैंडिडेट चर्चा में हैं। लोग गाजीपुर जिले की एक सीट को यूक्रेन बता रहे हैं और वहां के एक उम्मीदवार को जेलेन्सकी। यूक्रेन की तरह यह प्रत्याशी भी रूस से अलग हुए हैं और अब उसी को आंखें दिखाते हुए लाल-पीले हो रहे हैं। प्रत्याशी के बड़बोलेपन पर लोग मज़े ले रहे हैं और उन्हें मंच से गाने के बोल सुनाते देख दाद दे रहे हैं। लोग बतिया रहे हैं कि इन्हें भी किसी नाटो ने चढ़ा दिया है। अब यह सबकी गर्मी शांत करने की धमकी दे रहे हैं। अगर चुनाव के बाद नाटो कही कमज़ोर पड़ा तो इसका क्या होगा? वैसे भी जो समीकरण है, उसमें इस जेलेन्सकी की सीट जहुआ (भोजपुरी शब्द जिसका अर्थ गड़बड़ाना होता है) रही है।  बनारसियों की निगाह में मऊ जिले की एक सीट अफगानिस्तान हो गई...

परिवारवाद बढ़ा रहे छोटे दल

1989 में केंद्र की राजीव गांधी सरकार के पतन और बाद में वीपी सिंह की परफॉर्मेंस से निराश वोटरों ने छोटे दलों को उनके विकल्प के रूप में स्वीकार करना शुरू किया। बिहार में लालू यादव, नीतीश कुमार यूपी में मुलायम सिंह यादव और मायावती का उदय हो चुका था।  हालांकि कम्युनिस्ट पार्टियां तब तक अप्रासंगिक नहीं हुई थीं। हालांकि लोगों का मोहभंग भी जल्दी ही क्षेत्रीय पार्टियों से होने लगा, जब स्पष्ट जनादेश नहीं मिलने के कारण 1996, 1998 और 1999 में लोकसभा चुनाव हुए। अस्थिरता का दौर शुरू हुआ। इसके बाद फिर एनडीए की सरकार आई जिसने अपने कार्यकाल पूरा किया। इसे बीजेपी लीड कर रही थी। उसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व में दो बार यूपीए की सरकार बनी। फिर दो बार से बीजेपी अपने दम पर सरकार बना रही है। अभी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं। यूपी में अपना दल (एस) का गठबंधन भाजपा के साथ है। अपना दल (एस) की प्रमुख अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री हैं। उनकी बहन पल्लवी पटेल और मां कृष्णा पटेल का दूसरा संगठन है जिसका नाम अपना दल (क) है।  पिछले दिनों जब प्रतापगढ़ सदर सीट से अपना दल (क) से कृष्णा पटेल उम्मीदव...

पिंडरा : चर्चा में कोई और, हालात कुछ और संकेत दे रहे हैं

बनारस जिले की पिंडरा विधानसभा सीट। यह क्षेत्र पार्टी से अधिक प्रत्याशियों के नाम से चर्चा में रहता है। फिलहाल पिंडरा कहते ही कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय का नाम पहले आता है, जो कि पूर्व विधायक हैं और पिछला चुनाव हार चुके हैं। 2012 में यह सीट अस्तित्व में आई थी, उसके पहले यह कोलअसला सीट थी, जिस पर सीपीआई के उदल नौ बार विजयी हुए थे। तब कोलअसला सीट सीपीआई से अधिक उदल के नाम से जानी जाती थी। बीजेपी प्रत्याशी अवधेश सिंह भले यहां के सिटिंग एमएलए हों, लेकिन चर्चा में अजय राय आगे हैं। वह भी तब जबकि पिछली बार अजय राय तीसरे नंबर पर रहे थे और उन्हें 50 हजार वोट भी नहीं मिले थे। 2017 के चुनाव में बसपा दूसरे नंबर पर रही थी। सपा ने इस बार यह सीट गठबंधन के तहत अपना दल कमेरावादी को दी है। अजय राय 2019 में भी चर्चा में आए थे,जब उन्होंने बनारस संसदीय सीट से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ा था। इस बार की राजनीति करखियांव गांव में बन रहे अमूल दूध के प्लांट के इर्द-गिर्द घूमती दिख रही है। बीजेपी इसे जहां क्षेत्र का विकास मानते हुए अपने पक्ष में मान रही है, वही विपक्षी दलों का कहना है कि बीजेपी इसी मिल्क प्ला...

जहूराबाद : वर्तमान और भूतपूर्व विधायकों में अभूतपूर्व लड़ाई

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फोटो गूगल से साभार  बहादुरशाह जफर का शेर है : जाहिर हैं क्या जहूर के मजहर नए-नए, जलवे हैं उसके पर्दे के अंदर नए-नए जहूर के मजहर देखने का विचार थोड़ी देर मुल्तवी कर चलते हैं गाजीपुर जिले की जहूराबाद विधानसभा सीट पर, जहां नए नजारे दिखाने की बात कही जा रही है, जुबानी फिसलन ताड़ी घाट तक जाकर भी रुकती नहीं दिखती, दिलदारों का नगर (दिलदारनगर) पास में ही है, लेकिन कमजर्फो साफ दिख रही है। यहां वर्तमान और दो भूतपूर्व विधायकों के बीच अभूतपूर्व जंग है। सीट जिले के लिहाज से गाजीपुर में है और संसदीय क्षेत्र के हिसाब से बलिया में। इस सीट से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर खुदै गठबंधन के उम्मीदवार हैं। मीडिया रिपोर्ट्स है कि हाल ही में उन्होंने गाजीपुर की सभा में कहा था कि वह सीएम योगी को लखनऊ की गद्दी से हटाकर वहां भेजेंगे, जहां भीख मांगने की ट्रेनिंग दी जाती है। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कई बार कहा कि जब वह योगी सरकार में मंत्री थे तब भी मुख्तार अंसारी से मिलने पंजाब की रोपड़ जेल में जाते थे। प्रदेश की बांदा जेल में भी उनसे कई बार मुलाकात हुई।  ओमप्रकाश राजभर भले आत्...

मऊ में सब बंद है, राजनीति चालू है

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यह है मऊ सदर विधानसभा क्षेत्र। पूर्वी उत्तर प्रदेश की चर्चित सीटों में से एक। यहांं का राज पैलेस सिनेमाहॉल बंद है, बुनकरों के इस इलाके में स्वदेशी कॉटन मिल दशकों से बंद है, बीजेपी की किस्मत का ताला इस सीट पर आज तक बंद है और स्थानीय विधायक 2005 से जेल में बंद है। दूसरी तरफ, राजनीतिक गलियारा यहां बन रहे हाइवे की तरह खुला है। यह अलग बात है कि मिर्जा हादीपुरा से पेट्रोल टँकी क्रास कर बलराई मोड़ तक पहुंचते-पहुंचते राजनीतिक गलियारे का स्वरूप बदल जाता है, समर्थन और विरोध का सुर बदल जाता है। दूसरी सीटों से बदला हुआ नजारा यहां दिखता है, जब यहां योगी-अखिलेश से अधिक प्रत्याशियों की चर्चा होती है। इस बदलाव पर थोड़ा और गौर करें तो 1996 से यहां के विधायक बन रहे मुख्तार अंसारी की राजनीतिक विरासत बदल गई है। अब उनके बेटे अब्बास अंसारी को यहां से प्रत्याशी बनाया गया है। बदलने पर एक और बात याद आ रही है, मुख्तार अंसारी के पार्टी बदलने की। कभी बसपा से, कभी निर्दलीय, कभी खुद के कौमी एकता दल से और इस बार सुभासपा से चुनाव लड़ने की तैयारी थी। विमर्श के माध्यम बदल रहे हैं। बलराई मोड़ से रैनी की ओर जाने वाले तिर...

यूपी में बीजेपी क्लास की राजनीति कर रही है, सपा कास्ट की

उत्तर प्रदेश के चुनाव के दो चरण हो चुके हैं। यह कहना तो उचित नहीं होगा कि कौन जीत रहा है और किसकी सरकार बन रही है। हालांकि राजनीतिक दलों ने जो तैयारी की है, जो उनके वोटर हैं, उसके आधार पर अंदाजा जरूर लगाया जा सकता है। बीजेपी : भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव में वोटरों का एक क्लास यानी वर्ग तैयार किया है, जिसकी काट फिलहाल किसी दल के पास नहीं है। यह अलग बात है कि इस क्लास का कितना वोट बीजेपी ले पाती है? इस क्लास में वे लोग शामिल हैं जो आयुष्मान योजना में कवर हो रहे हैं,  जिनके घर में किसान सम्मान निधि आ रही है, जिनके घर प्रधानमंत्री आवास योजना में बन रहे हैं और जिनके घर में कोरोना काल में मुफ्त का राशन आ रहा है। यह एक ऐसा क्लास है जिसके लोग एक दूसरे को नहीं जानते, लेकिन वे एक कॉमन मसले पर वोट कर सकते हैं। बीजेपी ने एक तरह से कम्युनिस्ट पार्टियों के कैडर वोट को इस क्लास में ला दिया है और यह वर्ग अगर बीजेपी के पक्ष में झुका तो खामोशी से उसे दोबारा सत्ता में स्थापित करवा देगा। यह तो पार्टी के विरोधी भी मान रहे हैं कि यह मदद हिंदू-मुस्लिम, अगड़ा-पिछड़ा, शहरी-देहाती में नहीं बंटी है। यह ...