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Showing posts from 2020

किसान उगाना जानते हैं, बेचना सीख लें

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किसान स्थायी दुकान न खोलना चाहें तो मूविंग शॉप भी खोल सकते हैं। आखिर गुड़, आम वे घोड़ागाड़ियों या बैलगाड़ियों पर बेचते ही हैं। सरकार का मुंह देखने के बजाय खुद समाधान सोंचे। बाकी प्रदर्शन करने के लिए हर कोई स्वतंत्र है। कई बार मन में यह सवाल उठता है कि पंजाब समेत जिन इलाको के किसानों ने हरित क्रांति की मलाई खाई, वही बार-बार क्यों आंदोलित होते हैं? हमेशा वही प्रदर्शन करने क्यों दिल्ली आते हैं? हरियाणा और वेस्टर्न यूपी के जाट किसानों की ही अधिकतर भागीदारी इसमें क्यों होती है? अगर ये किसानों के प्रतिनिधि हैं तो बिहार-झारखंड के किसानों को क्यों नहीं बुलाते? क्या उनके पास दिल्ली आने-जाने लायक भी पैसा नहीं है क्योंकि उनमें अधिकतर सीमांत किसान हैं। ईस्टर्न यूपी के किसानों की भागीदारी क्यों नहीं दिखती?  एक सवाल उठता रहता है मन में। किसान खुद को सिर्फ उत्पादन तक क्यों सीमित रखता है? वह भंडारण क्यों नहीं सीखता? वह उत्पादन को बेचने की कला क्यों नहीं डेवलप करता? फिर उसे एमएसपी के पचड़े में पड़ना ही नहीं पड़ेगा। आखिर किसान अपने जानवरों के लिए भूसे  और अपने खाने लायक साल भर के अनाज का...

एक था माराडोना, जो हमेशा जिंदा रहेगा

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फोटो : गूगल से 1983 में क्रिकेट का प्रूडेंशियल वल्र्ड कप जीतने के बाद भारत में  क्रिकेट और भी लोकप्रिय हो रहा था। बालक-युवा सभी इसके दीवाने  थे। शहरों से भी अधिक कस्बाई और ग्रामीण भारत में। उसी समय  1986 में फुटबॉल का विश्व कप मेक्सिको में हुआ। महीने भर का कुंभ। और इस कुंभ से निकले थे डियेगो माराडोना, जिनकी लोकप्रियता का डंका उनके देश से निकलकर भारत समेत पूरी दुनिया में बजने लगा  था। लोग क्रिकेट के साथ फिर से फुटबॉल को तरजीह देने लगे थे। उनकी 10 नंबर की जर्सी ही नहीं बाएं कान की बाली भी हिट हो चुकी थी। 1983 में कपिल देव बनने का सपना देखने वालीं कई आंखें माराडोना बनने का ख्वाब सजाने लगी थीं। छोटे कद के इस  गठीले और फुर्तीले खिलाड़ी ने यह दिखा दिया था कि किस तरह मिड फील्ड से गेंद लेकर न सिर्फ गोलपोस्ट तक पहुंचा जा सकता है, बल्कि गोल भी मारा जा सकता है।  भारत के लोग माराडोना से एक बच्चे की तरह प्यार करते थे। एक ऐसा बच्चा जो बिगड़ा हुआ भी है लेकिन वक्त पर काम आता है। पेले की  लोग इज्जत करते थे, पर माराडोना से प्...

क्या कमज़ोर प्रदर्शन सिर्फ कांग्रेस का है?

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जिस समय बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे फाइनल राउंड की ओर बढ़ रहे थे, उस समय एक जोक वायरल होने लगा था।  जोक यह था- तेजस्वी-भाई हम तो चुनाव हार रहे हैं राहुल-भाई, तू अपनी देख ले, हम तो हर महीने कहीं न कहीं हारते रहते हैं। नतीजे आये और राजद ने हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ दिया। यह कहा गया कि कांग्रेस के कमजोर प्रदर्शन से नहागठबन्धन की यह हालत हुई है। बाद में राजद के शिवानन्द तिवारी ने यहां तक कह दिया कि जब चुनाव हो रहा था तब राहुल गांधी प्रियंका गांधी के घर पर पिकनिक मन रहे थे। हालांकि बाद में राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने इसे तिवारी का व्यक्तिगत बयान बताया था और कहा था कि इसे पार्टी का बयान न माना जाए। सवाल यह है कि कमज़ोर प्रदर्शन सिर्फ कांग्रेस का है? क्या राजद ने पिछले चुनाव से बेहतर परफॉर्म किया है? तेजस्वी यादव ने ऐसा क्या चमत्कार कर दिया है? 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद ने 80 सीटें जीती थी, जब वह 100 या 101 सीटों पर लड़ा था। इस चुनाव में वह 144 सीटों पर लड़ा और 75 सीटें ही जीत पाया। कांग्रेस 2015 में 41 में से 27 सीटें जीत सकी थी जबकि इस बार 70 में 19 पर ही जीत पाई।...

चमकी : लीची बदनाम, मंगल को इनाम

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मंगल पांडेय बिहार में एक बार फिर चुनी हुई सरकार ने शपथ ले ली, लेकिन राज्य के सेहत मंत्री रहे मंगल पांडेय को मंत्री बनाना चौंकाने वाला है। सरकार चाहे जो कहे, बिहार में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्टर कमज़ोर है, यह मानने के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं है। 2017 में जब बक्सर में केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे का बक्सर में पैर टूट गया था, तब सदर अस्पताल में एक्सरे करनेवाली मशीन काम नहीं कर रही थी। उन्हें प्राइवेट डायग्नोस्टिक सेंटर पर ले जाया गया, फिर इस मामूली इलाज के लिए पहले पटना और फिर दिल्ली चले गए। मुजफ्फरपुर का जानलेवा चमकी बुखार सबको याद ही है। स्वास्थ्य विभाग की कमी का ठीकरा लीची के सिर फोड़ दिया गया। मंगल पांडेय चुनाव भी नहीं लड़े, विधान परिषद के सदस्य हैं। फिर पार्टी के सामने उन्हें मंत्री बनाने की क्या मजबूरी थी? क्या इन्हें मंत्री बनाकर बीजेपी अपने ब्राह्मण वोटरों का ईगो शांत कर रही है? बीजेपी ही नहीं, पूरा एनडीए शाहबाद क्षेत्र के चारों जिलों, आरा, बक्सर, कैमूर और रोहतास में करीब-करीब साफ हो गया। सिर्फ आरा से अमरेंद्र प्रताप सिंह और इसी जिले की बड़हरा सीट से राघवेन्द्र प्रताप...

सीमांचल पर बीजेपी की निगाहें

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बीजेपी ने तारकिशोर प्रसाद को विधानमंडल दल का नेता बनाया है, उसका मकसद साफ है। सीमांचल की राजनीति में बीजेपी अब अपनी प्रभावी और सीधी मौजूदगी चाहती है। दूसरा यह कि अगर वह रामविलास पासवान की खाली हुई सीट पर सुशील मोदी को राज्यसभा में भेजती है तो तारकिशोर प्रसाद के बहाने पिछड़ों का जातीय समीकरण उसके साथ रहे। तारकिशोर प्रसाद जिस कटिहार सीट से जीतते हैं, वह पूर्णिया प्रमंडल में आती है। पूर्णिया प्रमंडल में चार जिले हैं, पूर्णिया, कटिहार, अररिया और किशनगंज। यही सीमांचल का इलाका है, जहां कभी किशनगंज वाले तस्लीमुद्दीन के बल पर राजद राज करता था, जो इस बार ओवैसी के पास है। इस इलाके में कहा जाता कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दा चुनाव आते-आते एक ही हो जाता है-हिंदू-मुस्लिम। ओवैसी को बिहार विधानसभा की 5 सीटों पर मिली जीत भी इसकी तस्दीक करती है। अगर अनुभव ही विधानमंडल दल का नेता चुने जाने का आधार होता तो गया के प्रेम कुमार का दावा सबसे अधिक बनता था। वह आठवीं बार जीते हैं और पार्टी में अति पिछड़ा चेहरा भी हैं। इसी तरह पटना साहिब से सातवीं बार जीतने वाले नन्द किशोर यादव का दावा भी बनता, लेकिन उससे पार्टी क...

बिहार में दो असफल राजनीतिक उत्तराधिकारी

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चिराग पासवान और तेजस्वी यादव में कई समानताएं है। दोनों अपनी इच्छा से जिस फील्ड में गए, वहां असफल रहे। चिराग फ़िल्म इंडस्ट्री में और तेजस्वी क्रिकेट ग्राउंड पर। इसके बाद दोनों को विरासत में राजनीति मिली, जिसे वे सम्भाल नहीं पा रहे। रामविलास पासवान या लालू यादव ने खुद को राजनीति में स्थापित करने के लिए जो संघर्ष किया, उसका दशांश भी ये विरासत को संभालने में भी नहीं कर रहे। चिराग पासवान ने हालिया विधानसभा चुनाव के दौरान जो नकारात्मक और भ्रम की राजनीति की, उसका परिणाम सामने है। 135 पर लड़कर एक पर विजय। अगर उनका उद्देश्य सिर्फ जेडीयू को रोकना था तो उसमें वह जरूर सफल रहे। लेकिन कोई राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए लड़ता है या सिर्फ किसी को हराने के लिए कैंडिडेट उतारता है? तेजस्वी यादव भले यह सोचकर राहत महसूस करें कि राजद बिहार विधानसभा में सबसे बड़ा दल बना है और उसने 75 सीटें जीती हैं। लेकिन उसे यह भी देखना चाहिए राजद राज्य की 144 सीटों पर चुनाव लड़ भी तो रहा था। इसके मुकाबले 110 सीटों पर लड़कर बीजेपी ने 74 सीटें जीतीं। जाहिर हैं कि बीजेपी ने राजद से बेहतर परफॉर्म किया। राजद ने बीजेपी से सिर्फ एक ...

बिहार : एवरेज वोटिंग में सरकारें रिपीट होती ही हैं

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चुनाव का एक बुनियादी फार्म्युला है। कम वोट हो तो वर्तमान सरकार या जनप्रतिनिधि रिपीट होता है। एंटी इनकंबैंसी फैक्टर 65 पर्सेट से कम वोट पर काम नहीं करता। क्षमता से अधिक सीटों पर लड़ने का नुकसान होता है और इससे जीती जा सकनी वाली सीटें भी हाथ से निकल जाती हैं। हारे हुए खिलाड़ियों की टीम बनाकर आप मैच जीत नहीं सकते। अधिकतर लोग शांति के साथ जीना चाहते हैं और वे किसी ऐसी जगह पर वोट नहीं करते, जिसके बाद वे राह चलते सुरक्षित महसूस न करें। पटना की दो सीटों बांकीपुर और कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम वोटिंग हुई। बांकीपुर में 35.85 और कुम्हरार में 35.69 फीसदी वोट पोल हुए। दोनों सीटों पर वर्तमान विधायक दोबारा जीत गए। इस सीट से प्रत्याशी नितिन नवीन लगातार चौथी बार चुनाव जीते। इसी तरह कुम्हरार से बीजेपी के अरुण सिन्हा फिर चुनाव जीते, जबकि मीडिया की निगाह में वह अलोकप्रिय हो चुके थे। बिहार विधानसभा चुनाव के तीनों फेज में औसत मतदान 60 पर्सेंट तक नहीं पहुंचा, ऐसे में एग्जिट पोल और मीडिया में किस तरह सरकार बदल रही थी, यह समझना बहुत मुश्किल था। कांग्रेस ने 2015 में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 ...

सुपौल : मद्य निषेध मंत्री की सीट पर शराबबंदी का कितना असर?

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कोसी बैराज। Photos Sanjay Kumar अब जश्ने जम्हूरियत का फाइनल पैग बचा है यानी बिहार विधानसभा चुनाव में लास्ट राउंड की वोटिंग जो सात नवंबर को है। तीसरे दौर की एक महत्वपूर्ण सीट है सुपौल सदर, जहां से राज्य के मद्य निषेध मंत्री विजेंद्र प्रसाद यादव चुनाव लड़ रहे हैं। राज्य में शराबबंदी का नशा चुनाव परिणाम को किधर ले जाता है, यह इस सीट के रिजल्ट से भी साबित होगा। बिजेंद्र यादव इस चुनाव में जनता दल यू के उम्मीदवार हैं। उनके सामने हैं कांग्रेस के मिन्नत रहमानी। विजेंद्र यादव  इस सीट से 1990 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। 1990 और 1995 में जनता दल के टिकट पर। उसके बाद जेडीयू के प्रत्याशी बनकर। पिछली बार जनता दलयू के दूसरे उम्मीदवारों की तरह इन्हें भी राजद का समर्थन हासिल था और इस बार भाजपा का। चुनाव में सब कुछ वैसे ही है जैसे पहले था लेकिन गोपालगंज के डीएम जी. कृष्णैया की हत्या में उम्रकैद काट रहे आनंद मोहन का राजद को समर्थन इस बार इनके चुनावी गणित पर असर डाल सकता है। कांग्रेस उम्मीदवार कितना राजपूत और यादव वोट ले पाते हैं, इसी में उनकी सफलता का पैमाना छिपा है। दूसरी ओर, वि...

कोरोना काल का औसत मतदान

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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए पहले फेज की वोटिंग समाप्त हो गई। इस दौरान 54.26 फीसद मतदान हुआ। हालांकि जिन सीटों पर संघर्ष अधिक दिख रहा था, वहां वोट पर्सेंट उत्साहजनक नहीं रहे। जहां व्यक्तिगत प्रतिष्ठा फंसी थी, वहां वोटिंग का रेश्यो जरूर ऊपर गया।  शाहाबाद का कैमूर जिला, जहां की चारों सीटें बीजेपी ने 2015 के चुनाव में जीती थीं। वहां चैनपुर और रामगढ़ में सबसे अधिक वोटिंग हुई। चैनपुर तो फर्स्ट फेज में सबसे अधिक वोटिंग वाला सीट बन गया। वहां 63.33 प्रतिशत वोट पड़े। पिछली बार यहां बसपा से कांटे की लड़ाई में भाजपा करीब पौने सात सौ वोटों से जीती थी। हालात दोहराए जाने के संकेत मिल रहे हैं। अगर महागठबंधन के प्रत्याशी को भी जबरदस्त वोट मिले होंगे तो वोट पर्सेंट अधिक होने के बाद भी जीत-हार का अंतर अधिक हो जाएगा। फिर पिछली बार की तरह नजदीकी मुकाबला नहीं रह जाएगा। इसी जिले की दूसरी सीट है, रामगढ़। वहां पिछला चुनाव बीजेपी के अशोक सिंह ने जीता था। इस बार उनके सामने राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगतानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह और बसपा से अंबिका यादव हैं। यहां 60 फीसदी वोटिंग हुई है और तीनों उम्मीदवारों...

सॉरी बाबू (साहब) : चुनावी दंगल की क्लियर होने लगी पिक्चर

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बक्सर में सत्ता के लिए लड़ाई 23 अक्टूबर 1764 को लड़ी गई थी। शाहाबाद की इस बार की लड़ाई (वोटिंग) 28 अक्टूबर को लड़ी जाएगी। फोटो गूगल से  चुनाव प्रचार खत्म होने से पहले तक लड़ाई चीन के मोर्चे पर लड़ी गई, सरकारी नौकरियों और रोजगार के लिए लड़ी गई, पलायन के मसले पर लड़ी गई लेकिन आज शाम होते-होते जिस बयान ने सबसे अधिक जोर पकड़ा, वहा तेजस्वी यादव का था। शाहाबाद क्षेत्र में ही एक चुनावी रैली में तेजस्वी ने कहा कि लालूजी के समय में गरीब लोग बाबू साहेब के सामने सीना तानकर चलते थे। इस बयान के बाद राजद के अधिकतर उम्मीदवारों पर तो असर नहीं पड़ रहा, लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी खुद को फंसा हुआ पा रहे हैं। उधर, नीतीश कुमार ने चुनावी सभा में कहा कि, ‘कुछ लोगों को बेटियों पर तो यकीन ही नहीं था। बेटों की उम्मीद में छह-छह, सात-सात बेटियां पैदा कर दिए‘।  चर्चा है कि ऐसे बयान वोटिंग के टर्निंग पॉइंट साबित हो सकते हैं। प्रचार का दौर खत्म होने के साथ ही शाहाबाद क्षेत्र की 22 विधानसभा सीटों पर स्थिति धीरे-धीरे साफ होने लगी है। जिन सीटों पर एनडीए की ओर से बीजेपी का उम्मीदवार है, वहां लड़ाई-आम...

नोखा के साथ अनोखा खेल

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फोटो - गूगल से कहा जाता है कि सोनाचुर चावल का खेत भी गमकता है और पकने के बाद इसकी खुशबू से मन भी तृप्त हो जाता है। बिहार के रोहतास जिले की चुनावी सभा में शुक्रवार को प्रधानमंत्री ने कैमूर के सोनाचुर चावल का जिक्र किया। प्रधानमंत्री का यह भाषण लाइव सुनने के लिए नोखा बस स्टैंड के पास बने एनडीए के चुनावी दफ्तर पर मूवेबल स्क्रीन लगाई गई थी। प्रधानमंत्री जहां इस सभा को संबोधित कर रहे थे, वहां से थोड़ी दूर ही है नोखा विधानसभा क्षेत्र।नोखा कभी जाना जाता था अपने राइस मिलों के कारण। पड़ोसी जिले औरंगाबाद में राइस मिल ओनर रह चुके ऋषि बताते हैं कि नोखा और उसके पांच-सात किमी के दायरे में कभी दो-ढाई सौ राइस मिलें हुआ करती थीं। थीरे-धीरे ये  बंद होने लगीं। अब 40-50 बची हैं। मिलों के बंद होने का सिलसिला जंगलराज में भी जारी रहा और सुशासन काल में भी। जब ये मिलें चलती थीं तब हजारों लोगों को सीधे रोजगार मिला था। इसके अलावा बाहर के व्यापारियों के ब्रोकर थे, जो मु्ख्यत: सासाराम में रहते थे। सासाराम, डिहरी, औरंगाबाद के ट्रक ओनर्स को यहां से बंधा-बंधाया बिजनेस मिलता था। ट्रक दक्षिण बिहार (अ...

बिहार में गठबंधनों के अंतर्विरोध

बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा के भाजपा प्रेम के कारण जहां एनडीए में अंतर्विरोध की बात हो रही है, वहीं महागठबंधन में तेजस्वी यादव का नेतृत्व सभी दल स्वीकार कर रहे हैं। वहां ऐसी कोई समस्या नहीं दिखती। लेकिन महागठबंधन में शामिल दल आपस में भी एकमत या सहमत हों, ऐसा भी नहीं लगता। लेफ्ट के नेता कांग्रेस को लेकर असहज हैं तो कांग्रेस के वोटर लेफ्ट खासकर माले को लेकर। यह भी रिपोर्ट है कि राजद के कैंडिडेट सीपीआई नेता कन्हैया कुमार का प्रोग्राम अपने इलाके में नहीं करवाना चाहते,क्योंकि उन्हें सैनिकों के परिवारों का वोट खोने का भय सता रहा है। लेफ्ट के नेता यह मान रहे हैं कि कांग्रेस ने लड़-झगड़कर क्षमता से अधिक सीटें ले ली हैं। कई जगह पर कांग्रेस के पास तो लड़ाने लायक उम्मीदवार भी नहीं थे। यह बात कुछ हद तक सही भी है। बक्सर जिले की राजपुर (सु) सीट महागठबंधन में कांग्रेस के पास गई है। कांग्रेस ने यहां विश्वनाथ राम को उम्मीदवार बनाया है जो 2015 में यहां से बीजेपी के कैंडिडेट थे और एनडीए के बंटवारे में सीट जेडीयू के पास जाने के कारण खाली हो गए थे। कांग्रेस ने उन्हें दिल्ली ले जाकर पार्टी की सदस्यता दिल...

तरारी : जहां दिखता है लोजपा का भाजपा प्रेम

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लोक जनशक्ति पार्टी के चीफ चिराग पासवान ने कुछ दिनों पहले कहा था कि मैं मोदी का हनुमान हूं और जरूरत पड़ने पर वह इसे दिखा भी सकते हैं। भोजपुर जिले की तरारी विधानसभा सीट पर चिराग का मोदी और भाजपा प्रेम साफ-साफ दिखता है। एनडीए के बंटवारे में यह सीट बीजेपी के पास चली गई तो चिराग ने यहां कैंडिडेट नहीं उतारा, जबकि लोजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष और चार बार के विधायक रहे सुनील पांडेय खुद यहां से चुनाव लड़ना चाहते थे। वह पार्टी से इस्तीफा देकर निर्दलीय लड़ रहे हैं। चिराग को उनका पार्टी छोड़ना मंजूर था, लेकिन भाजपा के खिलाफ कैंडिडेट देना नहीं। सुनील पांडेय आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं, लेकिन जिताऊ उम्मीदवार भी माने जाते हैं। उनके भाई हुलास पांडेय लोजपा के टिकट पर बक्सर जिले की ब्रह्मपुर सीट से लड़ रहे हैं। पिछले असेंबली इलेक्शन में जब सीपीआई एमएल ने यह सीट जीती थी तब सुनील पांडेय की पत्नी गीता पांडेय तरारी से लोजपा उम्मीदवार थीं और कांटे की लड़ाई में एमएल के सुदामा प्रसाद किसी तरह 272 वोटों से जीत सके थे। तब यह राज्य की ऐसी सीट बनी थी, जहां सबसे कम मतों से हार-जीत हुई हो। बीजेपी ने यहां कौशल कुमार विद्यार्...

सासाराम का संदेश

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब से थोड़ी देर बाद बिहार में अपने चुनावी अभियान की शुरुआत सासाराम से करने जा रहे हैं, उसके गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। मंच पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार की मौजूदगी भी उसी रणनीति का हिस्सा होंगे। बिहार चुनाव में यह चर्चा आम है कि जहां-जहां भाजपा के बागी लोजपा के टिकट पर मैदान में हैं, वहां-वहां भाजपा कार्यकर्ता जदयू कैंंडिडेट के बजाय लोजपा उम्मीदवार के साथ दिख रहे हैं। गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह कुछ दिन पहले कह चुके हैं कि जेडीयू ही एनडीए का हिस्सा है और नीतीश ही सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री होंगे, भले ही बीजेपी को जदयू के मुकाबले अधिक सीटें  आएं। आज प्रधानमंत्री फिर इस ऊहापोह को खत्म करने की कोशिश करेंगे। सासाराम, शाहाबाद क्षेत्र की एक शहरी विधानसभा सीट है। 2015 में यहां से राजद के अशोक कुशवाहा भाजपा के जवाहर प्र्साद को हराकर जीते थे। अशोक कुशवाहा अब जदयू में हैं और इसी सीट से तीर छाप पर चुनाव लड़ रहे हैं। जवाहर प्रसाद के बारे में कई मीडिया रिपोर्ट्स है कि वह गठबंधन धर्म निभाते हुए अशोक कुशवाहा का साथ देने के बजाय पूरे राजनीतिक दृश्य से गाय...

नौकरी करीं सरकारी, ना त बेचलीं तरकारी

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1-बिहार विधानसभा के इस चुनाव में ऐसे बहुत सारे लोग वोट करेंगे, जो बिहार के वोटर होते हुए भी मतदान नहीं कर पाते थे। कोरोना काल में वे या तो वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं या फिर नौकरी छूटने पर घर जाकर बैठ गए हैं। उनके लिए पलायन और बेरोजगारी बड़े मुद्दे हैं। इसे भांपते हुए तेजस्वी और चिराग ही नहीं, भाजपा ने भी लाखों रोजगार की बात अपने मैनिफेस्टो में की है। तेजस्वी यादव ने जब दस लाख नौकरियों की  बात की थी, तब नीतीश कुमार ने कहा था कि इसके लिए पैसे का इंतजाम कहां से होगा? अब जब बीजेपी अपने संकल्प पत्र में 19 लाख नौकरियों की बात कह रही है तो नीतीश कुमार न सवाल पूछने लायक रहे न जवाब देने लायक। डिप्टी सीएम सुशील मोदी भी अब यह ट्वीट कर रहे हैं कि उनकी पार्टी ने पांच साल में 19 लाख जॉब की बात कही है। इसमें पांच लाख आईटी सेक्टर में, एक लाख हेल्थ सेक्टर में, 10 लाख एग्रीकल्चर सेक्टर में, तीन लाख एजुकेशन सेक्टर में होगा। राजद पहले ही दिन दस लाख जॉब देने की बात कह रहा है जिसके लिए वह पैसे कहां से लाएगा? 2-सारण की परसा विधानसभा सीट पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी जनसभा में हूटिंग होने पर आपा खो बैठे।...

शाहाबाद किसे करेगा आबाद? (चुनावी चकल्लस)

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गुप्ता धाम जाने में फोटो क्लिक की बक्सर सोहनी पट्टी निवासी रंजन कुमार ने बिहार का शाहाबाद, जहां कैमूर की सुरम्य और दुर्गम पहाड़ियां भी हैं और गंगा और सोन के ऊपजाऊ मैदानी इलाके भी। यहां दुर्गावती भी बहती है और कर्मनाशा भी। कथाएं बताती हैं कि यहां  के गुप्ताधाम में भस्मासुर से बचने के लिए कभी शिव छिपे थे तो स्थानीय लोगों के मुताबिक, बगल का रोहतासगढ़ कभी नक्सलियों के छिपने का ठिकाना बना हुआ था। गुप्ता धाम जहां चैत और सावन में बहुत सारे शिवभक्त जाते हैं। जयपुर में जयगढ़ और नाहरगढ़ का किला देखने जाने वाले कभी रोहतासगढ़ के किले की जानकारी लेते नहीं दिखते, जो भारत का सबसे प्राचीन और भव्य किला माना जाता है। बंजारी सीमेंट यहीं का प्रॉडक्ट है। डालमियानगर इसी क्षेत्र का हिस्सा है। जिस तरह एमपी के चंबल, भिंड, मुरैना में लोग बीहड़ में जाकर बागी बन जाते थे, उसी तरह समाज और सिस्टम से निराश और हताश लोग कभी कैमूर पहाड़ी पर चले जाते थे और वहां या तो खुद का गैंग बनाते थे या किसी डकैत गैंग में शामिल हो जाते थे। मीलों लंबाई और चौड़ाई में फैली पहाड़ी जो आज तक पर्यटक स्थल नह...

रामगढ़ : जीत या हार, जगता बाबू जिम्मेदार

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बक्सर लोकसभा सीट के तहत एक महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र है, रामगढ़। यूपी के सीएम योगी आदित्यचनाथ ने इसी सीट से बिहार में अपने चुनवाी कैंपेन की शुरुआत मंगलवार यानी आज दोपहर से की। यह बक्सर की इकलौती सीट है जो बीजेपी के पास है। अशोक कुमार सिंह यहां से विधायक हैं जिन्होंने पिछली बार राजद के अंबिका सिंह को परास्त किया था। बसपा के पप्पू सिंह तीसरे नंबर पर रहे थे। रामगढ़ का चुनावी परिदृश्य समझने के लिए 2010 के विधानसभा चुनाव के दौर में चलना पड़ेगा। 2010 में यहां बीजेपी के कैंडिडेट सुधाकर सिंह थे, जो राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगतानंद सिंह के बेटे हैं और फिलहाल रामगढ़ से ही राजद के कैंडिडेट भी। 2010 में जब वह मैदान में थे तब जगतानंद सिंह ने उनके खिलाफ राजद के तत्कालीन प्रत्याशी अंबिका सिंह का प्रचार किया था।  अंबिका सिंह चुनाव जीते थे, निर्दलीय अशोक सिंह दूसरे और बीजेपी के सुधाकर सिंह तीसरे नंबर पर रहे थे।  इससे इस सीट पर जगतानंद सिंह के प्रभाव को समझा जा सकता है। जगतानंद सिंह यहां से हर चुनाव जीते हैं, भले ही वह लोकदल के उम्मीदवार हों या जनता दल के अथवा राष्ट्रीय जनता दल के।   ...

राजपुर : फिर निशाने पर लगेगा तीर?

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बक्सर जिले की सुरक्षित विधानसभा सीट, जो आमतौर पर समीक्षकों व विश्लेषकों की दिलचस्पी का केंद्र नहीं है। इस बार यह सीट चर्चित है क्योंकि यहां जेडीयू की प्रतिष्ठा फंसी है। जेडीयू यहां हैट्रिक लगा चुका है और यहां से उसने फिर अपने परिवहन मंत्री संतोष निराला को उम्मीदवार बनाया है। उनके सामने हैं महागठबंधन की तरफ से कांग्रेस उम्मीदवार विश्वनाथ राम जो  पिछले चुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी थे। तब जेडीयू और राजद का गठबंधन बीजेपी के सामने था। इस बार बंटवारे में यह सीट जेडीयू के हिस्से में चली गई तो वि‌श्वनाथ राम ने नॉमिनेशन के दौरान दिल्ली जाकर कांग्रेस जॉइन की और उम्मीदवार बन गए। यानी महागठबंधन के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं था जिसे वह यहां से उतार सके। कांग्रेस प्रत्याशी विश्वनाथ राम ने 11 अक्टूबर को जेपी जयंती पर उन्हें नमन किया है। उन्होंने जेपी को स्वतंत्रता सेनानी बताया लेकिन उस फेसबुक पोस्ट में इमरजेसी का जिक्र नहीं किया है। पोस्टर पर जेपी के साथ-साथ सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियका गांधी के भी फोटो हैं। कांग्रेस पार्टी का सिंबल भी जेपी के फोटो के साथ दिख रहा है। यह एक दुर्लभ संयोग ह...

डुमरांव का नारा, टारगेट पर दिनारा

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आज दोपहर में बक्सर जिले के डुमरांव विधानसभा क्षेत्र में बिहार के डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने एक चुनावी सभा में कहा कि स्थानीय प्रत्याशी सिर्फ जदयू या नीतीश कुमार की प्रत्याशी नहीं हैं। वह भाजपा की भी प्रत्याशी हैं और नरेंद्र मोदी की भी। हम की भी प्रत्याशी हैं और वीआईपी की भी। सभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी थे। यह सभा नावानगर में हुई जिससे थोड़ा आगे मलियाबाग है और वहां से दिनारा जाया जा सकता है। सुशील मोदी को उम्मीद रही होगी कि उनकी नावानगर में कही गई बात दिनारा तक जरूर पहुंच जाएगी। इससे एक दिन पहले अमित शाह ने भी कहा था कि भाजपा की जदयू से अधिक सीटें आईं तब भी सीएम नीतीश कुमार ही बनेंगे। उन्होंने साफ किया कि चिराग पासवान और लोजपा एनडीए के हिस्सा नहीं हैं। सवाल यह है कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं को यह बार-बार क्यों कहना पड़ रहा है? बड़े नेता जो भी कह रहे हैं, क्या वह सन्देश नीचे तक नहीं जा रहा? क्या भाजपा के कार्यकर्ता जो बरसों से यह सवाल कर रहे थे कि बीजेपी अपना नुकसान कर नीतीश कुमार को क्यों आगे बढ़ा रही है, क्या उनके हिसाब से इसके उत्तर का समय आ रहा है? इस सवाल का जवाब समझने के लिए बक्सर ...

बक्सर : हॉट सीट का तमगा लुटा

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बक्सर-पटना हाइवै फोर लेन हो रहा है और क्षितिज पर उम्मीद का सूरज चमक रहा है। फोटो : रजनीकांत चौबे बक्सर सोहनी पट्टी निवासी पंडित अशर्फी उपाध्याय की 1948 में एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी ‘विलक्षण उपन्यास’। दस आने (साढ़े 62 पैसे) की इस किताब में वह लिखते हैं कि बक्सर एक विलक्षण शहर है। यहां कभी-कभी महाजन दान देते हैं तो आचरण हीन और खुशामदी ब्राह्मणों को ही देते हैं। पीठ की रगड़ से जो खटमल मारते हैं और थप्पड़ से मच्छर, वे खुद को पहलवान मानते हैं। हिंदू लोग मुर्गी का अंडा खाते हैं, लेकिन मुर्गी नहीं पालते। उन्होंने भले ही यह बात किसी और संदर्भ में लिखी हो लेकिन विलक्षण बात यहां चुनावों में भी दिखती है। यहां इंटरनैशनल स्तर पर चर्चित और करीब-करीब कन्फर्म हो चुके शख्स का टिकट कट जाता है। ढाई-तीन दशक से चुनाव लड़ रहे एनसीपी कैंडिडेट विशेश्वर पांडेय का पर्चा गलत या अपूर्ण भरे होने की वजह से रिजेक्ट हो जाता है और परशुराम व राम यहां के चुनावी रण क्षेत्र में आमने-सामने खड़े दिखते हैं। संयोग यह कि दोनों की जाति भी वही है, जो त्रेता में थी। आज बात बक्सर विधानसभा सीट की। चुनाव की घोषणा होने के साथ ही बक्...